पहला अफेयर: प्रेम-सुमन महक रहे हैं (Pahla Affair: Prem Suman Mahak Rahel Hain)
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पहला अफेयर: प्रेम-सुमन महक रहे हैं (Pahla Affair: Prem Suman Mahak Rahel Hain)
हथेलियों पर चढ़ी मेहंदी की रंगत, मेरे प्यार की गहराई का एहसास कराती तो होगी. उसकी भीनी ख़ुशबू, तुम्हारी सांसों को महकाकर मेरे क़रीब होने का एहसास तो कराती होगी. गोरी कलाइयों में खनकती कांच की चूड़ियां, मेरे नाम से तुम्हारे कानों में गुनगुनाती होंगी. क्यों तुम्हें लगता है कि मैं तुमसे दूर हूं? मुझे तो तुम हर पल मेरे दिल के क़रीब ही लगती हो...
अमेरिका से आए पतिदेव के ख़त को पढ़कर मैं कुछ पलों के लिए खो गई. फ़ोन पर उनसेे बातें तो होती थी, लेकिन प्यार के रंग में रंगे हुए उनके इस प्रेम-पत्र और उसमें अभिव्यक्त किए गए एक-एक शब्द की गहराई मेरे प्रति जिस प्रेम को व्यक्त कर रही थी... उस प्रेम की बारिश में मैं पल-पल भीग रही थी.
मेरी आंखों के सामने गुज़रे हुए पल झिलमिलाने लगे, जब कॉलेज से लौटने पर मां ने बताया कि तुम्हें लड़केवाले देखने आ रहे हैं. यह सुन कर तो मैं घबरा-सी गई. माथे पर पसीने की बूंदें तैरने लगीं. पहली बार ऐसी परिस्थिति से सामना जो हो रहा था. वो शख़्स कैसा होगा? क्या पूछेगा? यह सोचकर ही मेरे शरीर में एक सिहरन-सी दौड़ जाती. शाम को मन में अनगिनत ख़्वाहिशें और सवाल लिए मैं अजनबियों के बीच सकुचाते-शरमाते हुए पहुंच गई.
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एकांत में मुझे उनसे बात करने का मौक़ा मिला. छुईमुई-सी, नज़रें झुकाए हुए मैं उनके सामने बैठी थी, तभी एक मिश्री-सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, "जरा मेरी ओर करम तो फ़रमाइए... मुझे अच्छी तरह से देख लीजिए, वरना बाद में शिकायत होगी..." यह सुनते ही मेरी दृष्टि बरबस ही उनकी ओर खिंची चली गई. सांवला रंग, बड़ी-बड़ी आंखें, ग़ज़ब की मुस्कान, सौम्य व्यक्तित्व, मैंने शरमाकर अपनी आंखें झुका लीं. उस पल मुझे ऐसा लगा, जैसे मैं तो युगों से इनको पहचानती हूं. मेरी "हां" को मम्मी-पापा भलीभांति जान गए और इनके घरवालों के "हां" कहते ही शादी की तारीख़ तय हो गई.
एक ओर बाबुल का आंगन छूट जाने का दुख मन को सता रहा था तो दूसरी ओर मेरे मन में प्रेम की तरंगें उठने लगीं. कितने सतरंगी एहसास हृदय को गुदगुदाने लगे थे. इनका नाम ज़ुबां पर आते ही दिल की धड़कनें ब़ढ़ती-सी महसूस होतीं. ङ्गयही तो प्यार हैफ सहेलियों ने चिढ़ाया. एक दिन मां ने एक ख़त दिया. ख़त को पढ़ते-पढ़ते मन झूम उठा. आख़िर भावी पतिदेव ने मेरी प्रशंसा में कविता लिखकर अपने प्यार का इज़हार जो किया था. एक-एक शब्द मुझे मोती के समान लग रहा था. अपने प्रेम की अनमोल भेंट उन्होंने ल़फ़्ज़ों में जो
लपेटकर भेजी थी. उसके सामने तो हर गहना कम था.
शादी के बाद जब नए जीवन की शुरुआत की, तब भी पतिदेव के प्रेम से मेरा रोम-रोम सराबोर होता रहा. प्रेम-सुमन से मेरा घर-आंगन महकने लगा. जैसे-जैसे बरस बीतते गए... हमारे प्रेम की रंगत निखरती गई.
एक दिन ऑफ़िस से आकर इन्होंने कहा, "मुझे ऑफ़िस की ओर से 2 साल के लिए अमेरिका जाना होगा. तुम्हें और बच्चों को मैं छुट्टियों में ले जाऊंगा." यह सुनते ही मेरी आंखें भर आईं. इनसे दूर रहने की तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. एयरपोर्ट पर विदा लेते समय ये बोले, "हमारे मन-प्राण तो सदैव एक हैं. देखना, व़क़्त कैसे पंख लगाकर उड़ जाएगा और मैं फिर तुम्हारे पास आ जाऊंगा." मैंने बुझे मन से कहा, "पल-पल आपकी याद आएगी और मेरे दिल को सताती रहेगी. आपसे बस इतनी गुज़ारिश है, जैसे शादी से पहले अपने ख़तों द्वारा मेरे दिल में अपने प्रेम की दुनिया आबाद की थी, वैसे ही फिर से ख़तों द्वारा हमारे प्रेम-सुमन को महकाते रहिएगा." इनकी मुस्कुराहट इस बात का सबूत थी कि ये पुनः हमारे प्यार के उन सुनहरे पलों को दोबारा से लौटा लाएंगे. आज पतिदेव का यह ख़त फिर से बीता समय साथ लेकर आ गया. मैं ख़ुशनसीब हूं कि मेरा पहला प्यार आने वाले कई जन्मों तक मेरे साथ रहेगा.
- राजेश्वरी शुक्ला
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