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इनकी परवरिश कैसे करें? * कुछ तरह की एबनॉर्मिलिटी का तो कुछ हद तक इलाज संभव है, जैसे- हायपर थॉयराइड़िज़्म की वजह से उपजी असामान्यता अथवा दिमाग़ में पानी भर जाने की वजह से बच्चे में विकार आ जाना. * किन्तु अधिकतर केसेस में किसी भी इलाज से किसी भी बच्चे की बौद्विक अक्षमता को बदलना मुश्किल साबित होता है. * ऐसे बच्चों के माता-पिता को बहुत त्याग, धैर्य और सावधानी से उनकी देखभाल करनी पड़ती है. * सबसे पहले अभिभावकों को यह पता होना बेहद ज़रूरी है कि उनके बच्चे की असामान्यता किस श्रेणी में आती है. थोड़ी आसान और सुधारने योग्य है अथवा जटिल है. उसी के अनुसार उन्हें अपने बच्चे की देखभाल करनी चाहिए. * यूं तो मनोविज्ञान भी कहता है कि माता-पिता अपने उसी बच्चे को अधिक प्यार करते हैं, जो सबसे कमज़ोर होता है. (यह कमज़ोरी शारीरिक, मानसिक अथवा भौतिक भी हो सकती है). * किन्तु मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रभात सिठोले के अनुसार, असामान्य बच्चे को स़िर्फ प्यार द्वारा ही हैंडल नहीं किया जा सकता है. कई बार बच्चों के साथ कठोर अनुशासन की भी ज़रूरत पड़ती है. * केवल प्यार और सहानुभूति से बच्चे अपनी दिनचर्या की सामान्य बातें सीखने की कोशिश भी छोड़ देते हैं. * असामान्य बच्चों की देखभाल में माता-पिता तो पूरी तरह से समर्पित होते ही हैं, साथ ही घर के अन्य सदस्यों को भी उनके सहयोग देना चाहिए. * बाहर से आनेवाले परिचितों अथवा रिश्तेदारों को भी ऐसे बच्चे की नज़ाकत को समझते हुए ही उनके साथ व्यवहार करना चाहिए. * बच्चे को बेचारा समझकर अधिक सहानुभूति नहीं जतानी चाहिए. * यूं तो ऐसे बच्चों की परवरिश अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन सौभाग्यवश हमारे देश में ऐसी अनेक संस्थाएं अथवा स्कूल्स खुल गए हैं, जहां इस तरह के बच्चों की पूरी तरह देखभाल करने के साथ-साथ उन्हें सुधारने की कोशिश भी की जाती है. * संस्थाओं द्वारा फैमिली थेरेपी का कोर्स भी चलाया जाता है, जिसका उद्वेश्य होता है परिवार के सभी सदस्यों को मानसिक अथवा शारीरिक विकलांगता के बारे में बताना तथा उसकी संवेदनशीलता से लोगों को अवगत कराना. * कुछ अभिभावकों का धैर्य कुछ दिनों बाद जवाब देने लगता है, क्योंकि ऐसा बच्चा अधिक समय और ध्यान की मांग करता है. अतः ऐसे अभिभावकों के लिए इन स्कूलों में मनोवैज्ञानिकों द्वारा काउंसलिंग की भी व्यवस्था है. * इसमें बताया जाता है कि किस तरह वे अपने बच्चे की देखभाल बिना किसी ग़ुस्से, चिढ़ अथवा अपराधबोध के धैर्य और संतुलन के साथ करें.- गीता सिंह
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