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घरेलू कामों से बच्चे बनते हैं कॉन्फिडेंट (Involvement Of Children In Housework Boost Their Self-esteem)

Kids household work
अक्सर देखा गया है कि रविवार या किसी भी छुट्टी के दिन बच्चे स़िर्फ खेलने-कूदने में ही बिज़ी रहते हैं या फिर टीवी रिमोट लेकर पलंग पर पसर जाते हैं और घंटों टाइमपास करते हैं. हालांकि उनका ज़्यादा टीवी देखना या आलस्य में पड़े रहना पैरेंट्स को सही तो नहीं लगता, लेकिन वो कुछ कर भी नहीं पाते. ऐसे में पैरेंट्स के पास एक अच्छा ऑप्शन है, बच्चों से घर के छोटे-मोटे काम करवाना, जो उन्हें आत्मविश्‍वासी भी बनाएगा और उनके समय का सही इस्तेमाल भी हो जाएगा.
* घरेलू कामों को करते समय उचित-अनुचित, सही-ग़लत की कसौटी को आंकने या समझने से उनकी तर्कशक्ति का विकास होता है. * साथ ही व्यावहारिक व सामाजिक मूल्यों की समझ भी बढ़ जाती है. * वो हर काम के साथ क्यों, क्या व कैसे पर नज़र रखने लगते हैं. * धीरे-धीरे नैतिक व अनैतिक विकल्पों को भी समझने लगते हैं. * काम के साथ बच्चों को समय की क़ीमत पहचानना आ जाता है. * वो समझने लगते हैं कि खाली बैठकर समय बर्बाद करने या आलस्य में पड़े रहकर समय गंवाने से कहीं अधिक श्रेयस्कर है कुछ करना.
काम करवाएं, मगर ध्यान दें
बच्चों को घरेलू कामों में शामिल करने के निश्‍चय ही अनेक लाभ हैं, लेकिन साथ में कुछ ऐसी बातों को भी ध्यान में रखना होगा, जो संभवतः बच्चे पर पॉज़ीटिव व नेगेटिव प्रभाव डाल सकती हैं और बच्चे के व्यक्तित्व को अलग दिशा दे सकती हैं. परफेक्शन की आशा न रखें- शुरुआत में बच्चों के काम में परफेक्शन की आशा नहीं रखनी चाहिए. काम ऐसा हो कि बच्चे उसे खेल की तरह एंजॉय कर सकें. साथ ही आवश्यक तथा महत्वपूर्ण बातों को सीख भी सकें. जिस काम को करने में कठिनाई महसूस हो या आपको लगातार उसे सिखाना या ठीक करना पड़े, तो ऐसे काम से बच्चे जल्दी ही ऊब जाते हैं. उनके द्वारा किए गए काम को उनके सामने आप दोबारा न करें, न ही आलोचना करें. ऐसा करने से उनके आत्मविश्‍वास को ठेस लगती है. प्रशंसा में देर न करें- कभी-कभी पैरेंट्स काम देने के बाद प्रशंसा करने के लिए उसके ख़त्म होने का इंतज़ार करते हैं. बेहतर होगा कि शाबाशी देने में लंबा इंतज़ार न करें. बच्चे तो काम शुरू करते ही पैरेंट्स के चेहरे पर प्रोत्साहन, शाबाशी व प्रसन्नता के भाव देखना चाहते हैं. अतः शुरुआत के साथ ही प्रशंसा कीजिए, ताकि उसका आत्मविश्‍वास व उत्साह बढ़े. रुचिकर तरी़के से कार्य दें- काम इस तरह से करवाएं कि उस कार्य में उसकी रुचि बढ़े. सीधे-सीधे आज्ञा देने, ‘चलो काम में हाथ बंटाओ’ की बजाय बेहतर होगा कि कहें, ‘हमें तुम्हारी हेल्प चाहिए’. इस तरह बच्चे की प्रक्रिया सहयोगात्मक होगी और वो काम में रुचि भी लेंगे. चार्ट बनाएं- इसमें तीन कॉलम रखे जा सकते हैं- क्या करना है, काम कब तक पूरा होना चाहिए और कब पूरा हुआ. समय से पहले काम पूरा होने पर प्रोत्साहन स्वरूप कुछ गिफ्ट या इनाम दिया जा सकता है. देर से किए जाने पर हल्की-फुल्की सज़ा हो सकती है. हां, सज़ा ऐसी न हो कि बच्चे की काम करने की इच्छा ही ख़त्म हो जाए. बच्चे की उम्र व क्षमता का ध्यान रखें- काम देने से पहले अपने बच्चे की उम्र, शक्ति व क्षमता को ध्यान में रखना ज़रूरी है और फिर उसी के अनुरूप काम दिया जाना चाहिए. तुलना न करें- कभी भी दो बच्चों के काम, काम के तरी़के, बच्चे की योग्यता व क्षमता की तुलना न करें. हर बच्चा अलग है, इसलिए उसका तरीक़ा, योग्यता व क्षमता भी अलग ही होती है. निर्देश देते समय सही शब्दों का प्रयोग करें- जो भी काम करवाना चाहते हैं, उसे उचित शब्दों के साथ स्पष्ट रूप से कहें, जैसे- ‘अपना कमरा साफ़ करो’ कहने की बजाय इस तरह कहें- ‘कपड़े आलमारी में रखो, क़िताबें शेल्फ में रखो, खिलौने बास्केट में रखो.’ इस तरह उसे समझ में आएगा कि कमरा कैसे साफ़ किया जा सकता है. उदाहरण देकर सिखाएं- जैसा काम आप करवाना चाहते हैं, पहले आप ख़ुद उस तरी़के से काम को करें, ताकि वो देखकर बच्चे सीख सकें. अपने साथ-साथ ही बच्चों से काम करवाएं. धीरे-धीरे वे आपके कहे बिना ही अकेले काम करने लगेंगे. काम और पैसा- आज के बच्चे काम के साथ थोड़ा बहुत मॉनिटरी गेन यानी पैसों की आशा करते हैं, तो क्या पुरस्कार स्वरूप रुपए दिए जाने चाहिए? इस विषय पर दो राय हो सकती है, एक तो इस तरह अलाउन्स बढ़ाना या रुपए देना मेहनत व परिश्रम के प्रति रुचि पैदा कर सकता है, दूसरे हो सकता है कि बच्चे हर काम को पैसों से तोलने लगें. अतः बच्चों की आदतों को देखते हुए पैरेंट्स को ख़ुद ही तय करना चाहिए. पैसों की बजाय उनकी मनपसंद वस्तु दिलाना भी एक विकल्प हो सकता है.  

- प्रसून भार्गव

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