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कितने दानी हैं आप? (The Benefits Of Charity)
कर्ण, राजा हरिश्चंद्र, दधीचि... भारत में ऐसे कई दानी हुए जिन्होंने दुनिया के सामने दान की मिसाल कायम की. हमारे देश में आज भी कई अवसरों पर दान देने की प्रथा है. लेकिन हम क्या सही मायने में दान करते हैं?
बच्चे का जन्मदिन, शादी-ब्याह, प्रमोशन, माता-पिता की बरसी, पित्र पक्ष... दान करने के हमारे पास कई मौके होते हैं. कई बार तो हम बिना वजह भी दान करते हैं, लेकिन हर बार क्या हमें दान करने की ख़ुशी और संतुष्टि मिल पाती है? नहीं, क्योंकि हर बार हम निस्वार्थ भाव से दान नहीं करते. ज़्यादातर मौक़ों पर हम अपनी ख़ुशी के लिए नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ और झूठी शान बघारने के लिए दान करते हैं. ऐसे दान से हमें वाहवाही भले ही मिल जाए, लेकिन आत्मिक संतुष्टि नहीं मिलती.
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क्या है दान का सही अर्थ?
यूं ही नहीं कहा जाता कि एक हाथ से दान करो, तो दूसरे हाथ को पता नहीं चलना चाहिए यानी निस्वार्थ भाव से बिना किसी प्रदर्शन के किया गया दान ही सही मायने में दान कहलाता है. उदाहरण के लिए- यदि कोई गरीब बच्चा पढ़ाई में बहुत तेज़ है, लेकिन पैसे के अभाव में वो आगे पढ़ाई नहीं कर पा रहा है. ऐसी स्थिति में यदि आप चुपचाप उसकी मदद करते हैं, तो आपका ये दान उस बच्चे का भविष्य तो संवारेगा ही, साथ ही आपको भी बहुत संतुष्टि देगा. इसी तरह शारीरिक रूप से असक्षम, बुज़ुर्ग, अनाथ-असहाय, ज़रूरतमंद आदि लोगों के लिए किया गया कोई भी काम दान की श्रेणी में आता है और सही मायने में दान कहलाता है.
इस दान का कोई महत्व नहीं
यदि आप किसी दबाव या दिखावे के लिए दान करते हैं, तो आपके दान का कोई मतलब नहीं. जैसे-
* ईश्वर के डर से किया गया दान.
* खोखली मान्यताओं के नाम पर किया गया दान.
* झूठी शान बघारने के लिए.
* मनोकामना पूरी होने के लालच में.
* दौलत का प्रदर्शन करने के लिए.
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क्यों ज़रूरी है दान करना?
दान करने के कई फ़ायदे हैं. दान करने से हम न स़िर्फ दूसरों का भला करते हैं, बल्कि अपने व्यक्तित्व को भी निखारते हैं. दान करने से हम उदार बनते हैं, सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं, मन और विचारों की शुद्धि होती है, मोह और लालच कम होता है... दान के सच्चे सुख को अनुभव करने के लिए बिना किसी स्वार्थ या लालसा के दान करके देखिए. यकीन मानिए, किसी के लिए कुछ करने की ख़ुशी से बढ़कर कोई सुख नहीं.
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