घर की सुरक्षित चारदीवारी के बाद बच्चे का पहला क़दम उठता है स्कूल की ओर. सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा स्कूल से डरे या घबराए नहीं. शर्म या संकोच के कारण औरों से पीछे न रह जाए, बल्कि आत्मविश्वास से भरा सफल व क़ामयाब विद्यार्थी बने. वैसे तो हर बच्चे का एक व्यक्तिगत स्वभाव होता है, किंतु कुछ कोशिश तो इस दिशा में पैरेंट्स भी कर ही सकते हैं, ताकि बच्चे का स्कूली जीवन आत्मविश्वास व उत्साह से परिपूर्ण रहे.
* छोटे बच्चे अक्सर स्कूल जाने के नाम से ही घबराने लगते हैं. उनकी इस घबराहट या डर को दूर करना पैरेंट्स का काम है.
* हो सकता है बच्चा आपसे देर तक दूर रहने का डर महसूस करता है, इसलिए उसे कितनी देर दूर रहना होगा यह कहने की बजाय उसके कार्यक्रम को वर्णित करें, जैसे- पहले प्रार्थना होगी, फिर टीचर कुछ खेल खेलाएंगी. फिर ये होगा, वो होगा और जैसे ही म्यूज़िक होगा, इसके बाद आप घर आ जाओगे.
* बच्चा स्कूल बस में अकेले जाने से डर सकता है. अतः उसे ड्राइवर या कंडक्टर के साथ बातचीत करना सिखाइए. बस स्टॉप पर साथ जानेवाले बच्चों से भी उसका परिचय कराइए.
* बच्चों के मन में टीचर के प्रति भी एक डर का एहसास होता है. उन्हें बताइए कि टीचर वहां आपकी मदद के लिए होते हैं. * उन्हें समझाएं कि स्कूल में स़िर्फ पढ़ाई या खेल नहीं होते हैं, बल्कि बहुत-सी अन्य बातें भी सीखते हैं. * ‘मैं खो जाऊंगा’, रास्ता भूल जाऊंगा’ जैसे ख़्याल भी उन्हें आते हैं, अतः रास्तों का परिचय, दाएं-बाएं की दिशा बताते हुए ये भी बताएं कि यदि रास्ता भूल जाएं तो क्या करें? * नए बच्चों के लिए भी व अन्य बच्चों को भी उत्साहित करने के लिए तैयारी ऐसी हो कि बच्चे स्कूल खुलने का इंतज़ार करें.
* बच्चों के साथ स्कूल-स्कूल खेलें. कभी आप टीचर बनें, कभी उसे टीचर बनाएं, ताकि उसे थोड़ा-बहुत स्कूली माहौल समझ में आ सके व वो स्कूल का कार्य समझ सके.
* बच्चों को मानसिक रूप से स्कूल के लिए तैयार करें. उनकी दिनचर्या से हफ़्तेभर पहले से कुछ ऐसा शामिल करें, जिससे वो स्कूल जाने का इंतज़ार करने लगें.
* जूते, बैग, बॉटल जैसी चीज़ें स्कूल खुलने के दो दिन पहले ही ख़रीदें, ताकि इस्तेमाल के लिए वो उत्सुक होने लगें.
* टिफिन में क्या देना है पहले दिन से सोकर तैयारी कर लें. बेहतर होगा कि पूरे हफ़्ते का प्लान बना लें और बच्चे को बता दें टिफिन में क्या होगा? टिफिन की वेरायटी के बारे में सोचकर ही बच्चे उत्साहित हो जाते हैं.
* कई मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि स्कूल के पहले दिन स्कूल गेट पर बच्चे की फोटो खींचकर लगाने से बच्चा स्कूल को भी अपनी ख़ास जगह समझने लगता है.
* स्कूल में बच्चे का आत्मविश्वास व आत्मसम्मान बना रहे, इसके लिए कपड़ों व उसकी अन्य वस्तुओं का चुनाव भी महत्वपूर्ण है.
* बच्चों में भी संवेदना और दूसरों की नज़रों में प्रशंसा, सम्मान या तिरस्कार जैसे भावों को पहचानने की शक्ति होती है. किसी भी तरह के बुरे व्यवहार से उनकी भावनाएं आहत न हों, इसका ध्यान भी पैरेंट्स को रखना चाहिए.बच्चे के विकास के लिए पैरेंट्स इन बातों पर भी ध्यान दें-
- बच्चों को कुछ समय अकेले भी खेलने दें. भले ही वो आधा घंटा तक बाल्टी में पानी भरता है और फेंकता है. डॉ. भट्टाचार्य के अनुसार, हर बच्चा स्वभाव से वैज्ञानिक होता है. - बच्चों को बताएं कि ज़िंदगी में सीखना इतना आसान नहीं होता है, उन्हें जूझने दें. उनकी क्षमता विकसित होने दें. मदद के लिए तुरंत हाथ न बढ़ाएं. उन्हें बताएं कि ग़लतियां जीवन का एक हिस्सा हैं. ग़लतियों से इंसान सीखता है. स्कूल लर्निंग की जगह तो है, लेकिन वहां भी परेशानी महसूस हो सकती है. - हॉबी विकसित करें. यदि विषय में रुचि है, तो लर्निंग आसान हो जाती है और कक्षा में वो अपनी कला के कारण ख़ास पहचान भी बना सकता है. मेंटल गेम, मेमोरी, पज़ल, क्रॉसवर्ड जैसी मेंटल एक्सरसाइज़ मस्तिष्क को एक्टिव रखती हैं. - विभिन्न प्रकार की चीज़ों में रुचि उत्पन्न करने के लिए हर दिन कुछ अलग अवसर दीजिए, जैसे- एक दिन कलरिंग, दूसरे दिन क्राफ्ट, पिक्चर कटिंग आदि. - बच्चों की कल्पनाशक्ति को उभारने के लिए भी पैरेंट्स को शुरू से ही कोशिश करनी चाहिए. छोटे बच्चों को खिलौना दिखाकर छुपा दें, फिर उसे सोचने दें. छुपाई हुई जगह से निकालकर दिखाएं, फिर छिपा दें. दो मिनट बाद बच्चा ढूंढ़ने की कोशिश में लग जाएगा. तरह-तरह की चीज़ें इकट्ठा करना, उन्हें मैच करना आदि बातों से बच्चे की कल्पनाशक्ति व रचनात्मकता दोनों ही बढ़ती है. - बच्चों को हर समय स्पर्धा करना न सिखाएं, बल्कि लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना सिखाएं. स्कूल मात्र प्रतियोगिता का मैदान नहीं है, बल्कि जीवन के हर पहलू को विकसित करने की पाठशाला है. लक्ष्य तक पहुंचने का ज़रिया है. वैसे भी हर बच्चा अपने आप में अलग है, तो उसके लक्ष्य भी अलग होंगे. क़ामयाबी की सीढ़ियां भी अलग होंगी.- प्रसून भार्गव
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