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पहला अफेयर: हमसफ़र (Pahla Affair: Humsafar)

Pahla Affair: Humsafar
पहला अफेयर: हमसफ़र (Pahla Affair: Humsafar)

मेरे साथी, एक साथ एक रास्ते पर चलते-चलते कई बरसों का सफ़र तय कर लिया है. जिन रास्तों पर से हम दोनों गुज़रे हैं, उनमें कई अंधे मोड़ आए और कई घुमावदार पड़ाव भी. उस समय लगा था कि तुम्हारा हाथ और तुम्हारा साथ छूट जाएगा और हम दोनों की राह भी जुदा होगी. कितनी बार हम दोनों के फैसले ग़लत साबित हुए. ढेरों बार हम एक-दूसरे को कोसते नज़र आए. सोचा कि तुमसे वास्ता ही न रखूं. ऐसा ही तुमने भी सोचा था. अनेक बार हमने तंगदिली दिखाई, सैकड़ों बार संगदिल की तरह पेश आए, पर हमारे बीच ऐसा क्या था, जो दोनों को बांधता रहा?

याद है, एक बार तो लगभग क़दम बढ़ने को हो गए, हमने एक घर को दो देशों की तरह बांटा और अपनी हदें तय कीं. अपनी आज़ादी को भरपूर जिया, मैंने तुम्हें और तुमने मुझे यह दिखाने में कोई कसर बाकी न रखी कि एक-दूसरे के बिना हम ज़्यादा बेहतर ज़िंदगी जी सकते हैं. पर यह फॉर्मूला भी बकवास साबित हुआ. हताश होकर फिर एक-दूसरे के कंधे पर ढहे और सरहदें मिट गईं. क्या ऐसा औरों के साथ भी होता है? इतनी नफ़रत के बाद भी एक होते हैं लोग. हमें तो यह एहसास साफ़ था कि हम दोनों एक-दूसरे के लिए परफेक्ट मैच नहीं हैं. यह तब भी पता था, जब हम दोनों ने एक नए रिश्ते की नींव रखी थी. कभी अपने प्यार को दिखाया नहीं. हर बार यही कहा कि यह तो नहीं है, पर क्या वाकई नहीं था या अब भी नहीं है? जिस रूमानियत के न होने के लाख दावे हमने किए थे, उसको अपने अंदर क्या हम खोज पाए थे?

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क्या परफेक्ट मैच न होना हमारे लिए फ़ायदेमंद और हमारे रिश्ते के लिए कहीं अधिक बेहतर साबित हुआ. जब हम दोनों अपनी राह पर अलग-अलग, लेकिन चल रहे थे, तो यह कहां पता था कि मंज़िल एक ही होगी. जितने जतन किए, वो बेकार गए. अब जब ज़ुल्फ़ों में स़फेदी बसर हो गई है, तब भी हम उस एक बात को कहने में झिझकते हैं. दूसरे तरीक़ों से, आंखों के इशारों से, हमने उस रूमानियत को जिया है, पर ज़ुबां से कहा नहीं. इसलिए मैं इस ख़त के ज़रिए आज तुमसे यह कहना चाहती हूं कि बस, तुम और स़िर्फ तुम ही मेरे हमराज़, मेरे हमसफ़र और मेरा प्यार हो... हां, तुम ही मेरा प्यार हो. मेरा पहला और आख़िरी प्यार. तुम्हारे अलावा सच्चा प्यार किसी से नहीं हुआ. दिखावटी मोहब्बत का नाटक तो ख़ूब किया, लेकिन दिल की गहराई में जो समंदर था, उसमें लहरों का उफ़ान बस तुम्हारे कारण ही आया.

मैं भी यह जानती हूं कि इसे पढ़कर तुम्हारी आंखों में चमक जागेगी और फिरतुम एकदम गंभीर हो जाओगे. भीतर उमड़े तूफ़ान को चश्मे की आड़ में छिपा लोगे. पर तुम्हारी ख़ुशी दमकेगी और यह छिपाए न छिपेगी. कल ही तुमने कहा था कि पच्चीस बरस हमारे साथ को हो रहे हैं, मुझे क्या गिफ्ट देनेवाली हो? तुम्हारा तोहफ़ा... मेरी मोहब्बत...! यही चाहूंगी कि बस तुम भी यही तोहफ़ा मुझे दो. बस, उन जादुई शब्दों की बारिश कर दो. तुम्हारी हमसफ़र!

- राजेश्‍वरी शुक्ला

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