किसी के क़दमों के निशां जब दूसरों के लिए मंज़िल का पता बन जाते हैं, तब यह एहसास होना लाज़मी है कि यह शख़्स मामूली तो बिल्कुल भी नहीं है. जिसकी नज़र सूरज पर हो और आसमान को क़दमों पर झुका देने का साहस, जिसके हर दांव पर विरोधी भी अदब से सर झुका रहे हों और जिसका नाम आज बेहद गर्व और ग़ुरूर से ले रही है दुनिया, आज की तारीख़ में वो शख़्स स़िर्फ एक ही है- बजरंग पुनिया!
जी हां, एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में फ्रीस्टाइल 65 किलोग्राम के वर्ग में बजरंग ने भारत को गोल्ड दिलाकर देश का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया है. यह कीर्तिमान उन्होंने दक्षिण कोरिया के ली सुंग चुल को हराकर रचा. यह मुकाबला आख़िरी राउंड तक गया और शुरुआत में पिछड़ने के बावजूद बजरंग आख़िर में अपने रंग में ही नज़र आए और सामनेवाले पहलवान को धूल चटाकर देश के लिए पहला गोल्ड लाए. उनकी इस अद्भुत जीत पर कई नामी हस्तियों के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बधाई दी. इस जीत को लेकर और कुश्ती के खेल को लेकर क्या कुछ कहते हैं बजरंग, आइए उनसे ही जानते हैं.
किस तरह की ख़ास तैयारी की थी आपने?
तैयारी तो हर टूर्नामेंट से पहले करते हैं. लगातार प्रैक्टिस और ट्रेनिंग चलती रहती है, लेकिन अपने होम ग्राउंड पर मैच खेलने का अलग ही जोश होता है और लोगों की भी उम्मीद होती है कि हम होम ग्राउंड पर कुछ बेहतर करेंगे, इसलिए बस मन में ठान रखा था कि गोल्ड लेना ही है, क्योंकि जब मेडल जीतने के बाद अपना राष्ट्रगान बजाया जाता है, तो अलग ही किस्म के गर्व का अनुभव होता है. मुझे भी लग रहा था कि इस बार अपना राष्ट्रगान सुनना है, चाहे जो हो जाए.
यह एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में पहला स्वर्ण पदक है, क्या वजह है कि गोल्ड के लिए इतना इंतज़ार करना पड़ा?
कुश्ती भी एक गेम है और गेम में हार-जीत लगी रहती है. कोशिश तो करते ही हैं कि हम हमेशा बेहतर करें, पर कभी कामयाबी मिलती है, तो कभी नहीं मिलती. यह है कि हमारे प्रयासों में कमी नहीं आनी चाहिए. कोशिश जारी रहेगी, तो एक क्या और भी गोल्ड ज़रूर मिलेंगे.
भारत में कुश्ती के भविष्य को लेकर क्या कहना चाहेंगे?
पहले से तो काफ़ी बढ़ा है गेम, इसके फॉलोअर्स भी बढ़े हैं. यह अपनी मिट्टी से जुड़ा खेल है, तो हमें अपने देसी खेल पर गर्व होना चाहिए और मैं यह देख रहा हूं कि लोगों में कुश्ती के प्रति जागरूकता, सजगता और लगाव अब बढ़ रहा है. हमें लोग पहचानते हैं, प्यार करते हैं और रेसलिंग से अब लोगों को काफ़ी उम्मीदें भी हैं. कुल मिलाकर यही कहा जाएगा कि कुश्ती का भविष्य बहुत उज्ज्वल है.
लीग के आने से क्या फ़ायदा हुआ है?
लीग से काफ़ी फ़ायदा हुआ है, क्योंकि इसमें वर्ल्ड के बेस्ट रेसलर्स पार्टिसिपेट करते हैं और उन पहलवानों से जब हमारा सामना होता है, तो हमें अपनी कमियां भी पता चलती हैं और अपनी स्ट्रेंथ भी. हम अपनी कमज़ोरियों पर और काम करते हैं और अपनी स्ट्रेंथ को और बेहतर कर सकते हैं.
कुश्ती को लेकर क्या विश्व स्तर की सुविधाएं भारत में हैं?
जी हां, सुविधाएं काफ़ी अच्छी हैं. कहीं कोई कमी नहीं. हमें सामने से कहा जाता है कि आपको क्या चाहिए बताओ... हर सुविधा मिलेगी आप बस मेडल लेकर आओ. तो सुविधाओं की कोई कमी नहीं है, चाहे ट्रेनिंग को लेकर हो या खाने-पीने को लेकर सब सही दिशा में चल रहा है.
आप फिटनेस के लिए क्या ख़ास करते हैं?
हफ़्ते में एक-दो बार जिम करता हूं और मैं फुटबॉल व बास्केट बॉल भी खेलता हूं, क्योंकि दूसरे स्पोर्ट्स से आपकी स्ट्रेंथ बढ़ती है और आप मेंटली भी फ्रेश महसूस करते हैं. इसके अलावा बेसिक ट्रेनिंग तो होती ही है.
डायट किस तरह की लेते हैं?
बहुत ही सिंपल. मैं वेजीटेरियन हूं, तो शुद्ध देसी भोजन करता हूं.
हमने सुना है कि भारतीय पहलवान चूंकि नॉन वेज नहीं खाते, तो उनकी फिटनेस का स्तर विदेशी पहलवानों से थोड़ा कम होता है, यह बात कितनी सही है?
जी नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. शाकाहार में भी शक्ति होती है. अगर ऐसा नहीं होता, भारतीय पहलवान दुनिया में विश्वस्तर पर इतना नाम नहीं कमाते. आप इसी से अंदाज़ा लगा लीजिए कि हाथी सबसे शक्तिशाली जानवर होता है और वो शुद्ध शाकाहारी है. यह सब कहने की बात है, वेज-नॉन वेज तो पर्सनल चॉइस है. इसका फिटनेस से कोई ख़ास लेना-देना नहीं है.
अपने फैंस को कुछ कहना चाहते हैं?
फैंस को धन्यवाद कहना चाहूंगा, अब तक सपोर्ट किया. आगे भी सपोर्ट करते रहें. कुश्ती सबसे पुराना खेल है, देसी गेम है. फैंस जितना फॉलो करेंगे, उतना ही गेम को बढ़ावा मिलेगा.
योगेश्वर दत्त आपके गुरु भी हैं, भाई भी हैं, दोस्त भी हैं और मार्गदर्शक भी, उनके लिए कुछ कहना चाहेंगे.
योगी भइया के लिए तो मेरे पास शब्द नहीं हैं. जो हूं, उनकी ही वजह से हूं. उन्हें दिल से धन्यवाद कहूंगा. बाकी तो अगर मैं उनके बारे में कुछ कहना चाहूं तो, शब्द कम पड़ जाएंगे. उनका सहयोग ही है, जो मुझे हौसला देता है.
आगे के गेम्स के लिए क्या तैयारी है? अगले ओलिंपिक्स के लिए कुछ गेम प्लान होगा?
अभी तो वर्ल्ड चैंपियनशिप है, बाकी भी इवेंट्स हैं, उनमें अच्छा करना है. चाहे ओलिंपिक्स हो या अन्य इवेंट बस यही ध्यान रखना है कि इंजिरी न हो. चोट से बचना ही सबसे बड़ा चैलेंज है, वरना तैयारी तो पूरी है.
- गीता शर्मा