कुछ शेष नही अब बीच हमारे
फिर भी जाने क्या है जो ख़त्म नहीं होता
मैं रोज़ जलाती हूं यादों को
इक लम्हा है जो भस्म नही होता
क्या है जो ख़त्म नहीं होता?
तोड़ दिए हर मोह के धागे
फिर भी जाने क्यों
तुम से दिल का कुछ हिस्सा जुड़ा हुआ है अब तक
दिल के उस हिस्से में स्पंदन बंद नही होता
क्या है जो ख़त्म नहीं होता?
है ख़बर मुझे भी कि तुम गैर हो अब मेरे लिए
पर आज भी तुम्हे सोचने का अंत नही होता
हर सोच में शामिल हो ऐसे
जैसे ओम बिना कोई मंत्र नही होता
क्या है जो ख़त्म नहीं होता?..
- प्रज्ञा पांडेय (मनु)

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Photo Courtesy: Freepik
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