फिर से एक छोटी बच्ची हो गई हूं मैं
मां नहलाती है, पाउडर लगती है
कपड़े पहनाकर, बाल बनाती है
उंगली पकड़कर साथ टहलाती है
अपने जीवन के सुख-दुख और अनुभव सुनाती है
इस कठिन समय में थोड़ी कच्ची हो गई हूं मैं
हां, फिर से एक छोटी बच्ची हो गई हूं मैं...
दीदी प्यार से गाल सहलाती है
भाभी मनुहार से खिलाती है
भाई का प्यार सब्ज़ियों से झलकता है
तो पापा का ख़्याल फल और जूस से छलकता है
मेरे शरारती बच्चे मेरी खातिर थोड़ा कम शोर मचाते हैं
समय-समय पर आकर सिर और पांव भी दबाते हैं
सबके प्यार और दुलार से अच्छी हो गई हूं मैं
हां, फिर से एक छोटी बच्ची हो गई हूं मैं...
जीवन के सफ़र में अनोखा मोड़ आया है
लगता है फिर से बचपन लौट आया है
मन करता है इन लम्हों को चुराकर अपने पास रख लूं
कुछ दिन और ख़ुद से यूं ही प्यार कर लूं
पता है वक़्त का मरहम तन के घावों को भर जाएगा
पर इन मीठी यादों के लिए मन बार-बार ललचाएगा
एक नन्ही-मुन्नी गुड़िया की तरह सच्ची हो गई हूं मैं
हां, फिर से एक छोटी बच्ची हो गई हूं मैं...
- ऐड. अनीता सिंह

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