
इतिहास गवाह है कि जब-जब अंग्रेज़ों ने हिंदुस्तानियों पर छल, धोखे से अपना स्वार्थ पूरा किया है, तब-तब उन्हें मुंह की खानी पड़ी है. इसी की बानगी प्रस्तुत करती है जलियांवाला बाग नरसंहार पर बनी ‘केसरी चैप्टर २- द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग' फिल्म. यूं तो इसे अक्षय कुमार की ‘केसरी’ फिल्म का सीक्वल कहकर प्रचारित किया गया है, पर निर्देशक करण सिंह त्यागी ने बिल्कुल अलग और बेहतरीन अंदाज़ में पूरी फिल्म को फिल्माया है. वाक़ई में वे बधाई के पात्र हैं. अक्सर सत्य घटनाओं पर आधारित कहानियों पर फिल्म बनाने में तमाम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जो निर्देशक ने रिसर्च के साथ पूरी ईमानदारी से किया है.

शुरू से ही फिल्म अपनी पकड़ बनाए रखती है, ख़ासकर शुरुआती कुछ समय तो दिलोदिमाग़ को सुन्न कर देते हैं. साल १९१९ के १३ अप्रैल बैसाखी के दिन हज़ारों की तादाद में लोग अमृतसर के जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए हैं. यूं तो वे ब्रिटिश हुकूमत के रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होते हैं. एक परिवार है, जहां मां बेटे से बहन के लिए गजक लाने के लिए कहती है. प्रदर्शन करने के साथ पारिवारिक भावनाओं को संवेदनशीलता के साथ दिखाया गया है. लेकिन जैसे ही बेटा गजक लेने पहुंचता है, इसी बीच ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर अपनी पूरी सशस्त्र सेना की फौज के साथ वहां आता है. लोगों को संभलने का ना मौक़ा और ना ही कोई चेतावनी दिए बैगर बस वह एक शब्द “फायर...” कहते हुए तमाम निर्दोष लोगों को गोलियों से भून देता है. और वो मासूम बच्चा अपनी मां को पुकारता लाशों की ढेर में दबता चला जाता है. डायर की क्रूरता की पराकाष्ठा तो देखिए जब लाशों को रखने की जगह न होती, तो ख़ून से लतपथ जिस्मों को नालों में फेंकवा देने का ऑर्डर दे देता है.
अक्षय कुमार ने दर्शकों से अपील की थी कि फिल्म की शुरुआत को मिस न करें. सच में पूरी फिल्म के खाके को तैयार करता है जलियांवाला बाग के नृशंस हत्याकांड के वे दृश्य. हर भारतीय का खून खौल उठता है डायर के उस भयानक नरसंहार को देख. लाशों का दर्दनाक मंजर, दीवारों के आरपार होती गोलियां, कुंएं में जान बचाने के लिए कूदते मासूमों का दर्दनाक अंत... बच्चे, बुर्ज़ुग, महिलाएं, युवा हर उम्र, हर तबके के निर्दोष क्रांतिकारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
इसी के साथ एक कहानी जाने-माने वकील सी. शंकरन नायर की भी चल रही थी, जो अंग्रेज़ों के बार काउंसलर में एकमात्र भारतीय क़ाबिल वकील हैं. वह पहले अंग्रेज़ों को न्याय दिलाने के लिए क़ानूनी दांव-पेंच चलाते रहे, विशेषकर कृपाल सिंह को दोषी साबित कर तोहफ़े के रूप नाइटवुड सर की उपाधि से भी सुशोभित किए जाते हैं.
जलियांवाला बाग के नरसंहार की ख़बर को दबाने के लिए तमाम अख़बारों की प्रतियों को जला दिया जाता है. मीडिया को रोका जाता है, ताकि भारतीय विद्रोही होकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ न हो जाए. हज़ारों की संख्या में हुए मौतों को सैकड़ों में दर्शा बेगुनाह लोगों को आंतकवादी बताकर लीपापोती की जाती है. पीड़ित लोग आवाज़ न उठाए इसके लिए २५ रुपए का मुवाआज़ा देने के साथ-साथ जांच के लिए कमीशन भी बैठा दिया जाता है, जिसके एक सदस्य के रूप में शंकरन भी हैं. लेकिन परत-दर-परत बहुत सी बातें खुलती जाती हैं. चालबाज़ियों का पता चलने बेगुनाह मासूमों के सच को दिलरीत गिल, अनन्या पांडे से जानने पर नायर डायर के ख़िलाफ़ केस लड़ने की जंग छेड़ देते हैं. बस, यही से शुरुआत होती है दिलचस्प कोर्टरूम ड्रामे की.

कोर्ट में सही-ग़लत नहीं हार और जीत होती है... कहनेवाले नायर की आंखें खुलती है कि कितनी गफ़लत में वो जी रहे थे.
जनरल डायर को क़ानूनी कठघरे में खड़े करने के साथ कई लड़ाइयां लड़ते-लड़ते आख़िरकार बैरिस्टर नेविल मैककिनले, आर. माधवन उन्हें मात देते हैं. उनका भी एक अतीत है, जिसमें नायर की दोस्ती भी है. माधवन की एंट्री मध्यांतर के कुछ पहले होती है, पर अपने सशक्त अभिनय से वे स्थिति-परिस्थितयों में जान फूंक देते हैं.
क्या नायर बेगुनाहगारों को निर्दोष साबित कर पाते हैं?.. क्या वे जनरल डायर को उनके अपराधों की सज़ा दिला पाते हैं?.. इसे जानने के लिए आपको फिल्म ज़रूर देखनी होगी.
अक्षय कुमार, आर. माधवन, अनन्या पांडे, कृष्ण राव, अमित सियाल, रेजिना कैसेंड्रा, मौमिता पाल, रोहन वर्मा, जयप्रीत सिंह हर कलाकार ने लाजवाब अभिनय किया है.
अंग्रेज़ों की फ़ेहरिस्त में स्टीवन हार्टले, सैमी जोनास हेनी, मार्क बेनिंगटन, एलेक्स ओनेल, एलेक्जेंड्रा मोलोनी, ल्यूक केनी ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है. स्पेशली डायर के रोल में साइमन पैस्ले डे ख़तरनाक खलनायक के क़िरदार को बख़ूबी निभाते हैं. भारतीयों को लेकर नफ़रत जो बचपन से उनके हकलाने को लेकर हुर्ई बुलिंग के साथ एक अलग ही खौफनाक भविष्य की नींव रखती है.
देबोजीत रे की सिनेमैटोग्राफी लाजवाब है. नितिन बैद ने भी एडिटिंग के पहलू को इस कदर निभाया की पूरी फिल्म कसी हुई लगती है. तेरी मिट्टी में मिल जावा... गाना जो ‘केसरी’ में था, वो तो है ही बेमिसाल, जिसे बैकग्राउंड में सुनना काफ़ी प्रभावित करता है. ज़ी म्यूज़िक कंपनी के तहत शाश्वत सचदेवा के संगीत के साथ कित्थे गया तू साइयां... व शेरा... गाने भी फिल्म को गति देने के साथ-साथ देशभक्ति के जज़्बे को पैदा करते हैं.
फिल्म की कहानी निर्देशक करण ने अमृतपाल सिंह बिंद्रा के साथ मिलकर लिखी है. सुमित सक्सेना के संवाद दिल को चोट करने के साथ-साथ बहुत कुछ सोचने पर भी मजबूर करते हैं.
सी. शंकरन नायर के पड़पोते रघु पलट व उनकी पत्नी पुष्पा पलट की बुक ‘द केस दैट शुक द एम्पायरः वन मैन्स फाइट फॉर द ट्रुथ अबाउट द जलियांवाला बाग मैसेकर’ पर आधारित ‘केसरी चैप्टर २’ हमें अतीत का वो आईना दिखाती है, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता था.

धर्मा प्रोडक्शन, लियो मीडिया कलेक्टिव, केप ऑफ गुड फिल्म्स के बैनर तले बनी ‘केसरी चैप्टर २- द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग' के निमार्ताओं की तो पूरी फौज रही है, जिसमें हीरू यश जौहर, अरुणा भाटिया, करण जौहर, आदर पूनावाला, अपूर्वा मेहता, अमृतपाल सिंह बिंद्रा व आनंद तिवारी हैं.
क़रीब सवा दो घंटे की यह फिल्म इस कदर बांधे रखती है कि हर अगले पल क्या होगा जानने को हम उत्सुक हो जाते हैं. इतिहास में हुए ज़ुल्म को कैसे एक अकेले वकील ने अपने दम पर ब्रिटिश हुकूमत के क़ातिल डायर को उसके कर्मों की सज़ा दी, वो देखने काबिल है.
इसके साथ यह भी मांग की जा रही है कि अंग्रेज़ इसके लिए माफ़ी मांगे... कहे ‘सॉरी’... भले ही इस बात को अरसा बीत गया हो, पर ज़ख़्म आज भी हरे हैं.
फिल्म के अंत में जलियांवााला बाग के सभी शहीदों को याद करते हुए उनके नाम दिए गए हैं. लोगों नेे खड़े होकर नम आंखों से उन्हें याद किया. इंकलाब ज़िंदाबाद... भारत माता की जय... के नारे लगाए गए. यक़ीनन यह सब देख यूं प्रतीत होता है कि सही मायने में अब उन क्रांतिकारियों, आज़ादी के सच्चे सपूतों को श्रद्धांजलि दी गई. हर हिंदुस्तानी को यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए, ताकि हम अपने इतिहास को और भी अच्छी तरह से समझ सकें.
- ऊषा गुप्ता
https://www.instagram.com/p/DIk4rI6TgMO/?igsh=YzM1aTMzZjVxaGxi

Photo Courtesy: Social Media
अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का गिफ्ट वाउचर.