Close

कहानी- पति (Short Story- Pati)

उसे कोई शिकायत नहीं है. कोई शिकवा नहीं, उसकी कोई मांग नहीं, कोई फ़रमाइश नहीं. कमला को अपने पति की इस चुप्पी से बड़ी खीझ होती. वह तो कभी कोई शिकायत भी नहीं करता. बोलता भी कम है. पता नहीं उसका दिमाग़ कहां रहता है.

उस दिन वह फिर पीकर आया था. कमला कब की सो चुकी थी. शाम को कमला ने रोटी बनाई थी. बच्चों के खा लेने पर उसने ख़ुद भी खा लिया था. सबने बैठकर टीवी सीरियल देखा और फिर दूध गरम करके बच्चों को देने के बाद कमला ने रसोई के सारे जूठे बर्तन साफ़ कर लिए थे. वह अब भी नहीं आया था. वह ऐसा ही करता है. जिस दिन किसी के साथ बैठ जाए, फिर वहीं आधी रात कर देगा, घर तो जैसे याद ही नहीं रहता.

रात को वे गेट पर ताला लगा देते थे, ताला लगाने का काम वही करता है. जिस दिन देर हो जाए, गेट को बस यूं ही बंद कर दिया जाता है चाहे कोई अंदर घुसकर बर्तन-भांडे सब ले जाए. एक बार कमला की आंख लग जाए, फिर उसे किसी चीज़ का होश नहीं रहता था.

जिस दिन उसका पीने का प्रोग्राम हो, यह ऐसे ही देर रात घर लौटता था. धीरे से गेट को खोलेगा. बिना आवाज़ किए फ्रिज पर पड़ी चाबी उठाकर गेट को ताला लगा देगा. फिर रसोई में जाकर गैस जलाएगा. फ्रिज में से सब्ज़ी वाला डोंगा निकालकर एक कटोरी में सब्ज़ी गरम कर लेगा. कटोरदान में से रोटियां निकालकर हाथ पर ही रख लेगा, रसोई में खड़े-खड़े ही रोटी निगलेगा. बीच में ही टोटी से पानी का ग्लास भर कर पी लेगा. सब कुछ धीरे-धीरे करता है, बिना आवाज़.

कभी-कभी कमला जाग रही होती है. उसे सब सुनाई दे रहा होता है कि वह अब क्या कर रहा है, अब क्या करेगा. फिर वह चुपचाप जाकर अपने अलग कमरे में पड़ जाता है. सुबह चुपचाप ही घर का कामकाज चलने लगता है. उसे कोई शिकायत नहीं है. कोई शिकवा नहीं, उसकी कोई मांग नहीं, कोई फ़रमाइश नहीं.

कमला को अपने पति की इस चुप्पी से बड़ी खीझ होती. वह तो कभी कोई शिकायत भी नहीं करता. बोलता भी कम है. पता नहीं उसका दिमाग़ कहां रहता है.

इससे तो अच्छा था कि वह उसे झिड़कता और मारता. उसकी झिड़कियों में एक अपनत्व तो होता था. कभी-कभी बैठकर वह मीठी-मीठी बातें भी करता था. जब चाहता था तो इतना चाहता था मानो कमला कोई खिलौना हो. वह उस खिलौने के साथ जी भर कर खेलता, उसे उछाल देता, पकड़ता, परे रख देता. लेकिन फिर उठा लेता जैसे खेल खेल कर बच्चे का चाव पूरा न होता हो.

यह भी पढ़ें: शादी के बाद कैसे होती है रियलिटी चेंज जानें इन 12 बातों से… (Know from these 12 things how reality changes after marriage…)

कमला को यह सब कितना पसंद था. कमला को याद है, उसकी बेरुखी तो उसी दिन शुरू हो गई थी, जिस दिन वह मास्टरनी उनके घर आई थी. किसी ज़माने में वह मास्टरनी उसे चिट्ठियां लिखा करती थी. बेशुमार चिट्ठियां लिखीं, वह भी लिखता. तब वह कुंआरा था. ख़ुद ही बताया करता था. कमला ने कहां देखी थीं वे चिटि्ठयां. उसने तो कभी यह भी नहीं पूछा था कि चिटि्ठयों में वे क्या बातें लिखते थे. उसका फोटो भी था उनके घर में, संभालकर रखा हुआ. वह उस फोटो को अपनी आलमारी में रखता. छोटे, सुनहरे फ्रेम में जड़कर रखा हुआ फोटो. वह सोचती शादी से पहले लड़कों की सौ बातें होती हैं. होगी यह कोई लड़की. यह कहां पता था कि अब इतने बरसों के बाद वही लड़की आकर उनके वैवाहिक जीवन में खलल डाल देगी. उसके पत्ति को खा ही जाएगी. कमला से वह खलल बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था.

इस वक़्त उस मास्टरनी की उम्र पैंतीस साल से ऊपर होगी. सुना है, अभी तक उसकी शादी नहीं हुई है. वह सोचती, अब तक तो उसका ब्याह हो जाना चाहिए था. शादी हो गई होती तो अब तक उसकी गोद में चार बच्चे होते. शादी क्यों नहीं हुई? ज़ाहिर है कि किसी लड़के ने उसके साथ शादी की ही नहीं होगी. इस तरह की लड़कियों के झांसे में कौन लड़का आएगा? सारी उम्र इश्क़ ही किए होंगे, ब्याह की ज़रूरत ही क्या है. एक को छोड़कर दूसरे को जा पकड़ती होगी. अब और कोई नहीं रह गया, तो आ दबोचा तीन बच्यों के बाप को. उसने भी क्या देखा इस अधपकी दाढ़ी वाले में! जिसकी स्त्री के तीन बच्चे हैं. यह भी भला कोई उम्र है इसकी- चल पड़ता है हाथ में बैग पकड़ कर तो दो दो रातों तक घर में नहीं घुसता. दो बार तो वह कुलटा भी यहां रातें गुज़ार गई है. कमला का सब्र आज टूटा, कल टूटा. मर्द नहाया घोड़ा होता है. पर काहे को! इस मूरख पर तो कोई असर ही नहीं होता.

कमला को पति की नित्य की झिड़क-मार बुरी लगती थी. बड़ा ग़ुस्सैल स्वभाव था उसके पति का. क्षणों में ही दूध के उबाल की तरह होश-हवास के किनारों से बाहर हो जाता. ग़ुस्से में इतना अंधा कि उसे बुरी तरह पीट डालता. यह भी न देखता कि उसके हाथ में क्या है और वह उसे कहां लगता है. ग़ुस्से का उबाल ठंडा होने पर नीचे बैठ जाता और फिर पुत्रकारने लगता, जैसे अपनी ग़लती के लिए माफ़ी मांग रहा हो. वह तो इतना भोला बादशाह था कि कमला का सिर दबाने बैठ जाता, कभी-कभी तो टांगें भी दबा देता. कमला को वह बहुत अच्छा लगता, पर कभी बहुत बुरा भी. वह धीरज रखती, जहां दो बर्तन होंगे, ठनकेंगे ही. घर-घर का यही हाल है. औरत-मर्द के घरेलू झगड़े तो धुर-दरगाह से बने आए हैं.

मगर यह क्या! जिस दिन से वह चुडै़ल इसके पीछे पड़ी है, वह घर में चुप-चुप सा क्यों रहता है? न किसी बात पर ग़ुस्सा होता है और न ही मोह- प्यार की कोई बात करता है, जैसे इस घर के साथ उसका कोई रिश्ता ही न रह गया हो. रोटी-पानी, खाने-पीने और मेहमानों की तरह रात काटने के सिवा और क्या संबंध रह गया है उसका इस घर के साथ अब? बच्चे उसके चेहरे की तरफ़ डरे-डरे, सहमे-सहमे झांकते रहते हैं.

यह भी पढ़ें: 5 शिकायतें हर पति-पत्नी एक दूसरे से करते हैं (5 Biggest Complaints Of Married Couples)

तनख्वाह मिलती है तो महीने भर का ख़र्च थमा देगा, पहले की तरह ख़ुद क्यों नहीं लाता चीज़ें ख़रीद-ख़रीद कर? धुर-बेगानों की तरह ख़ुद ही रोटी उठा कर खा लेना, यह भी कोई बात हुई भला? कभी कोई शिकायत नहीं करता. इसका क्या पता किसी दिन इस घर का रास्ता ही न भूल जाए. मर्द के मन को कैसे बूझा जाए अब? बदकार औरत के पास सौ चरित्र हैं.

कमला सोचती तो सोचती ही रह जाती. चिंता उसके दिमाग़ को फेल कर देती और फिर वह कुछ भी न सोच पाती. आख़िर क्या करें वह? उसने कितनी ही बार मीठी-मीठी शिकायत की है उससे, उसकी इस बेरुखी के बारे में, पर वह तो एक शब्द भी मुंह से नहीं निकालता. कमला ने कभी भरयि कंठ से मुश्किल से कुछ कहा, तब भी वह चुप रहा.

कमला का सिर दुखने लगता. कनपटियां फटने को हो आतीं, जैसे किसी ने उनमें लोहे की कीलें ठोक दी हों. वह गांव में जनमी-पली है, देसी इलाज करती. चिंदी पर गीला आटा लगाकर कनपटी से चिपका लेती. आटा सूख जाता तो नसों के कसने से कनपटी का दर्द घटने लगता, मगर चिंदियां उसके मानसिक तनाव का इलाज नहीं थीं. चिंदी जैसे उनके माथे का नसीब बन गई हो. एक चिंदी सूख कर उतर जाती तो वह दूसरी लगा लेती. उसके पेट की भूख का आटा चिंदियों की खुराक बनता रहता. बड़े बेमन से बेला-कुबेला एक रोटी वह गले से नीचे उतार लेती थी.

उस दिन वह फिर पीकर आया था. उसके पीने या न पीने का कमला की मनःस्थिति से कोई संबंध नहीं था. पर फ़र्क़ यह था कि उस रात उसने गेट खोला. फ्रिज से चाबी उठाई और ताला लगा दिया. फिर आंगन में खड़े होकर आवाज़ लगाई, "कमला..."

वह बोली नहीं. नींद नहीं खुली होगी. लड़खड़ाते कदमों के साथ वह अंदर कमरे में आया और फिर बोला, "कमला..."

उसने उठ कर ट्यूबलाइट जलाई. देखा, वह नशे में धुत था. खड़े-खड़े हाथी की तरह झूल रहा था. टांगें उसका भार नहीं झेल पा रही थीं. उसके हाथ में एक लिफ़ाफ़ा था. लिफ़ाफ़ा उसने कमला की तरफ़ बढ़ाया. उसने ले लिया. देखा, उसमें आम थे.

यह भी पढ़ें: बेस्ट रिलेशनशिप टिप्सः ताकि रिश्ते में न हो प्यार कम (Best Relationship Advice for Couples to Enhance Love in a Relationship)

"रोटी दे..." वह दहाड़ा.

कमला फ्रिज खोलने लगी.

वह अपने कमरे में जाकर बैठ गया. बिजली जला कर पंखा भी खोल लिया था. वह प्लेट में रोटी लेकर आई. उसने देखा, वह दा़त पीस रहा था. फिर वह गालियां बकने लगा, "ओए..."

एक निवाला मुंह में डाला और भड़क उठा, "यह कद्दू... हमारे लिए और सब्ज़ियां..."

वह उसके ज़रा निकट हो कर बैठने लगी तो उसने उसके कंधे पर धौल जमा दी. शराबी हंसी, "यह कदू हैं? कुतिया औरत है तू..."

चार-पांच कौर ही खाए होंगे. पानी पी कर बेड पर टेढ़ा हो गया, जैसे हवा को गालियां दे रहा हो, "अरी कुतिया, तेरा कहीं भला नहीं होगा."

"न हो मेरा भला, तुम्हारा भला करे परमात्मा." बर्तन उठाते हुए वह कह रही थी.

"ओए, तुझे नहीं कह रहा हूं मैं, मैं तो उस..." इससे आगे उससे बोला नहीं गया. उसे हिचकी आ रही थी.

कमला पानी का ग्लास ले आई और उसे कंधे से पकड़कर बैठाया और ग्लास उसके मुंह से लगा दिया. पानी पीकर वह गालियां बकते-बकले सो गया और फिर खरटि लेने लगा.

कमला ने काफ़ी कुछ समझ लिया था. उसकी जूठी छोड़ी सब्ज़ी और रोटियां लेकर वह बैठ गई. अपने कमरे में रोटी खा रही कमला दिमाग़ी तौर पर हल्का-हल्का महसूस कर रही थी.

अगले दिन उसने अपनी कनपटी पर चिंदी नहीं लगाई.

- राम सरूप अणखी

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का गिफ्ट वाउचर.

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/