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कहानी- और भी हैं राहें… (Short Story- Aur Bhi Hain Rahen…)

“एक उम्र के रूमानी आकर्षण और सच्चे प्यार में फ़र्क़ समझना बहुत ज़रूरी है. रूमानी आकर्षण जीवनभर अपने एहसास से हमें गुदगुदाता रहता है. कभी अकेलेपन में इसकी यादें होंठों पर मुस्कुराहट भी ला देती हैं. लेकिन सच्चा प्यार जीवन को आधार देता है, साथ का आश्वासन देता है. बेटा वह लड़का भी तेरा प्यार नहीं था, तभी दूसरी लड़की की ओर आकर्षित हो गया. तू भी उसका दुख मत मना.”

जूही कॉलेज से घर लौटी, तो हमेशा की तरह चहकती हुई नहीं आई, बल्कि गुमसुम सी थी. दादी ने जैसे ही उसके लिए दरवाज़ा खोला, रोज़ की तरह जूही ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उस मुस्कुराहट के पीछे एक अनमनापन, एक उदासी छिपी हुई थी. आज उसने आते ही हल्ला नहीं मचाया कि दादी बहुत ज़ोर से भूख लगी है, खाने को क्या है? बल्कि चुपचाप हाथ-मुंह धोने कमरे में चली गई. दादी अर्थात पुष्पाजी की अनुभवी आंखों ने भांप लिया कि कुछ तो गड़बड़ है, या तो किसी ख़ास सहेली से कुछ मनमुटाव हुआ है या फिर...
पुष्पाजी विचारों पर विराम लगाकर जूही के लिए खाना गरम करने के लिए किचन में चली गईं. आज उन्होंने उसकी पसंद के छोले-कुलचे बनवा कर रखे थे कुक से. जब जूही हाथ-मुंह धोकर डाइनिंग टेबल पर आई,  तो ऐसा लग रहा था जैसे वह रोकर आई है. उसकी आंखें हल्की सी लाल और सूजी हुई थीं, लेकिन वह हंसने और मुस्कुराने की ज़ोरदार कोशिश कर रही थी. पुष्पा को अनायास ही वह ग़ज़ल याद आ गई- तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो... क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो...
पुष्पा ने प्लेट में गरमागरम छोले-कुलचे, जीरा राइस और मेयोनीज़ सलाद परोस कर जूही को दिया. और कोई दिन होता, तो जूही ख़ुशी से उछल पड़ती, “वाओ दादी थैंक्स!” मगर आज वह चुपचाप खाने लगी और मोबाइल में कॉमेडी शॉर्ट्स देखकर हंसते हुए दादी को भी दिखाने लगी. पुष्पा उसका साथ देने के लिए हंसने लगी, मगर उनके मन में जूही के लिए चिंता बनी रही.
नाज़ुुक सुंदर सी जूही उनकी इकलौती पोती थी. उनके पति, बेटा-बहू तीनों ही छोटे से पारिवारिक व्यवसाय में व्यस्त रहते हैं. जूही को उन्होंने अपने बच्चे की तरह पाला है छह महीने की उम्र से. तभी तो उसके चेहरे पर दुख की ज़रा सी छाया वे सहन नहीं कर पातीं. जूही भी दिल से अपनी दादी के बहुत निकट है और स्कूल-कॉलेज की छोटी से छोटी बात उन्हें बताती है. लेकिन पुष्पाजी समझती हैं कि जूही अब उस आयु में पहुंच गई है, जहां बच्चे कुछ-कुछ छुपाने लगते हैं. कुछ रहस्य उनके मन के ऐसे होते हैं, जो बस उनके ही होते हैं, किसी से बताए नहीं जाते. आख़िर वह भी तो उस उम्र से गुज़र कर ही यहां तक पहुंची हैं. लेकिन हल्की-फुल्की पूछताछ के अलावा उन्होंने उसे अधिक नहीं कुरेदा, सोचा शायद दो-एक दिनों में उसका मन आप ही ठीक हो जाए.
जूही सिरदर्द का बहाना बना अपने कमरे में सोने चली गई. रोज़ तो वह अपनी दादी के आगे-पीछे घूमते हुए कॉलेज में घटी छोटी से छोटी बात भी बताती रहती, किस टीचर ने क्या पढ़ाया, ठीक पढ़ाया या नहीं पढ़ाया. उसकी क्लास के एक-एक स्टूडेंट का नाम पुष्पाजी जानती थीं. इतनी बार उन सबके बारे में सुन चुकी थीं वह कि बिना मिले ही सबको पहचानती थीं.
पुष्पाजी भी आकर अपने कमरे में लेट गईं. बीए फाइनल में पढ़ रही जूही ने अभी आयु के बीसवें वर्ष में प्रवेश किया है. पिछले कुछ दिनों से वह कुछ अधिक ही ख़ुश दिख रही थी. आते-जाते पुष्पाजी के गले में झूल जाती. हर समय मुस्कुराती-गुनगुनाती रहती और आज...
जूही पलंग पर लेटी थी, लेकिन उसकी आंखों में नींद नहीं थी. वह तो आंखें खोल शून्य में ताकते हुए करवटें बदल रही थी. ना उसका लेटने का मन कर रहा था और ना उठने का. आख़िर वह उठकर स्टडी टेबल पर एक किताब खोलकर बैठ गई, मगर उसका ध्यान पढ़ने में नहीं था. वह खिड़की के बाहर फैले उदास आसमान को देख रही थी. बादल भी जैसे थके-हारे से जाने कहां से चले आ रहे थे और जाने कहां को जा रहे थे. हवा भी आंगन में लगी बोगनवेलिया और मधु मालती के पत्तों पर चुपचाप बैठी थी. उसे सारी प्रकृति अपने जैसी उदास और दुख में डूबी लग रही थी.

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पांच बजे जब दादी ने उसके सामने टेबल पर चाय का कप रखा, तो वह चौंक गई. रोज़ शाम की चाय वह बनाती थी. आज अपनी सोच में वह ऐसी डूबी कि उसे समय का पता ही नहीं चला.
“सॉरी दादी, आज समय का ध्यान ही नहीं रहा.” जूही ने कहा.
“कोई बात नहीं बेटा. पढ़ते हुए अक्सर यदि विषय में मन लग गया तो ऐसा ही होता है.” पुष्पा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.
रोज़ दोनों साथ ही बैठकर चाय पीती थीं. लेकिन आज पुष्पा उसे स्पेस देना चाहती थी, ताकि वह अपने भीतर घुमड़ रहे बादलों को बरस कर हल्का होने का समय दे सके.
जूही भीतर से शर्मिंदा सी हो गई थी कि दादी सोच रही हैं कि पढ़ाई में मन लग जाने के कारण उसे समय का ध्यान नहीं रहा जबकि उसने तो एक अक्षर नहीं पढ़ा. उसका मन तो जाने कहां था. कुछ अपने दर्द और कुछ अपराधबोध के कारण उसकी आंखें भर आईं.
अगले दिन वह सिरदर्द का बहाना बनाकर कॉलेज ही नहीं गई. उसके अगले दिन शनिवार था. आज जूही की मां सुमन भी घर पर ही थी. जूही के दादाजी और पिताजी जब काम पर चले गए तब तीनों ने खाना खाया. खाना खाकर जूही पढ़ाई का कहकर अपने कमरे में चली गई और सुमन घर के कुछ काम निपटाने लगी.
पुष्पाजी भी अपने कमरे में आकर थोड़ी देर एक किताब लेकर पढ़ने लगीं, लेकिन उनका ध्यान जूही पर ही लगा रहा. आख़िर उनसे रहा नहीं गया और वह उठकर उसके कमरे की ओर गईं. दरवाज़े का पर्दा हटा कर देखा तो जूही टेबल-कुर्सी पर बैठी थी. वे धीरे से उसके पास जाकर खड़ी हो गईं. टेबल पर किताब खुली रखी थी, लेकिन जूही किताब में ना देखकर जाने कहां शून्य में देख रही थी. चेहरे पर ढेर सारी उदासी तैर रही थी.
“जूही...” पुष्पाजी ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा.


“क्या बात है? कहां खोई हो, क्या हुआ है?”
“जी दादी कुछ भी तो नहीं.” जूही ख़ुद को संभालते हुए बोली.
“कुछ दिनों से देख रही हूं तू बहुत गुमसुम सी है. अपनी दादी को नहीं बताएगी क्या बात है.” पुष्पाजी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरकर उसे अपने पास पलंग पर बिठा लिया.
थोड़ी-बहुत पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई वह ठीक वैसी ही थी जैसा पुष्पाजी  को अंदाज़ा था.
एक लड़का जिसे जूही प्यार करने लगी थी और समझती थी कि वह भी उसे प्राणपण से प्यार करता है. सात जन्मों का साथ, जीने-मरने की क़समें. बहुत कुछ फिल्मों जैसी फीलिंग की. बस वही सारी दुनिया है और कुछ नहीं, और फिर...
पुष्पाजी को उसकी बातों पर हंसी आ रही थी, लेकिन उन्होंने ख़ुद को रोक लिया.
“अब दादी पिछले कुछ दिनों से वह मुझे अवॉयड करने लगा था और चार दिन पहले मैंने उसे कैंटीन और गार्डन में दूसरी लड़की के साथ घूमते देखा. अब वह मुझसे बात भी नहीं कर रहा. उसने मुझे धोखा दिया. क्या वे सारी क़समें, वादे सब झूठ था? मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा.” जूही की आंखों से आंसू बहने लगे.

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“हां वह सब झूठ था. क़समे-वादे, सात जन्मों का साथ, यह सब प्यार में होता है जूही.” पुष्पा ने कहा.
“प्यार ही तो करता था वह मुझे दादी.” जूही आश्चर्य से बोली.
“प्यार को होने और निभाने के लिए एक पूरी उम्र लगती है बेटा. जो आज हो और चार दिन बाद ख़त्म होकर दूसरे से हो जाए, वह प्यार नहीं होता. जिसे तुम प्यार समझ रही हो, वह बस एक ऊपरी आकर्षण भर था और कुछ नहीं. इस उम्र में सभी को हो जाता है. तुम अकेली नहीं हो इस दौर से गुज़रने वाली. लगभग हर लड़की इस भावनात्मक दौर से गुज़रती है. और फिर आज तुम दर्द और आंसू बहा रही हो ना, पंद्रह-बीस बरस बाद जब तुम आज के बारे में सोचोगी, तो तुम्हें ख़ुद पर हंसी आएगी कि मैं कितनी पागल थी जो एक लड़के के पीछे रो रही थी.
जब मैं सोलह बरस की थी ना तब हमारे मोहल्ले में एक लड़का मुझे बहुत अच्छा लगता था. पुष्पा के चेहरे पर पुरानी यादों की ख़ुशी सी तैर गई.
“दादी आप?” जूही ने घोर आश्चर्य से पूछा.
“क्यों क्या मैं सीधे तेरी दादी ही पैदा हुई थी क्या?” पुष्पाजी बिगड़ कर बोलीं. फिर हंसते हुए कहने लगीं. “मैं भी तो कभी किशोरावस्था में थी, जब मेरे दिल में भी प्यार का एहसास जाग रहा था, दिल में प्रेम की कलियां खिलने लगी थीं. मैं कमरे की खिड़की या बरामदे से चुपके से उसे आते-जाते देखती रहती. साइकिल चलाते हुए वह भी मेरे मकान की तरफ़ ताकता रहता. मैं स्कूल जाती थी, तो किसी पेड़ के नीचे खड़ा साइकिल की चेन ठीक करने के बहाने मुझे देखता. कभी चने वाले या बेर वाले को पैसे देकर मुझे चने या बेर की पुड़िया भिजवा देता था और मैं खट्टे बेरों को कुतरते हुए उसके प्यार की मिठास में खो जाती थी. सपनों में उसकी साइकिल के पीछे बैठ ना जाने कहां-कहां घूम आती.” पुष्पाजी के चेहरे पर वही किशोरवय वाली ख़ुशी तैर रही थी.
“कितने रोमांचक दिन थे वह!”
“हां, फिर आपकी उनसे शादी हो गई. वह दादाजी ही हैं ना? आपकी लव स्टोरी तो पूरी हो गई, तभी आप इतना ख़ुश हैं, लेकिन मैं अपने दर्द में...” जूही की आंखें पुनः भर आईं.


“अरे नहीं रे पूरी कहां से होती, उस समय पिता का कितना दबदबा रहता था कि मुंह खोलने की हिम्मत ही नहीं हुई. बस वह तो दिलों की भावनाएं थीं, दिलों में ही रह गईं.” पुष्पाजी ने बताया.
“ओह, तब तो आप भी मेरी जैसी ही अनलकी हो. आपका प्यार भी मेरी तरह ही अधूरा रह गया.” जूही ने दादी का हाथ पकड़ कर सहलाया, मानो उन्हें सांत्वना देना चाहती हों.

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“अरे नहीं बेटा, वह तो टीनएज का आकर्षण था बस. आज सोचती हूं तब समझ आता है कि अच्छा ही हुआ कि उसके साथ बात आगे नहीं बढ़ी. ना वह पढ़ाई में अच्छा था, ना संस्कारों में. आख़िर थक-हारकर उसके पिताजी ने उसे एक कपड़े की दुकान पर काम पर लगा दिया. उस उम्र में अक्ल तो होती नहीं है. जीवन की समझ भी नहीं होती, बस अपना दर्द ही सब कुछ लगता है.” पुष्पा ने जूही को समझाया.
“फिर क्या हुआ दादी?” जूही ने उत्सुकता से पूछा, क्योंकि उसने कभी भी दादी को दुखी नहीं देखा था. वह तो हमेशा बहुत प्रसन्न व संतुष्ट लगती हैं जीवन और रिश्तों से.
“जब तेरे दादाजी से शादी हुई तब वास्तव में पता चला कि प्यार क्या होता है. एक उम्र के रूमानी आकर्षण और सच्चे प्यार में फ़र्क़ समझना बहुत ज़रूरी है. रूमानी आकर्षण जीवनभर अपने एहसास से हमें गुदगुदाता रहता है. कभी अकेलेपन में इसकी यादें होंठों पर मुस्कुराहट भी ला देती हैं. लेकिन सच्चा प्यार जीवन को आधार देता है, साथ का आश्वासन देता है. बेटा वह लड़का भी तेरा प्यार नहीं था, तभी दूसरी लड़की की ओर आकर्षित हो गया. तू भी उसका दुख मत मना. देखना आज से दस साल बाद तुझे भी आज के दिन को सोचकर हंसी ही आएगी. जीवन ने तेरे लिए तेरी सोच से भी बहुत अच्छा कोई सोच रखा है, जैसे मेरे लिए तेरे दादाजी को सोच रखा था. जिस दिन वह तुझे मिलेगा, उसके सच्चे प्यार में तेरा जीवन संवर जाएगा.” पुष्पाजी ने जूही के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा.
“जैसे मुझे तेरे पिताजी मिले.” अचानक सुमन ने चाय की ट्रे थामे हुए कमरे में प्रवेश किया.
“मां आप? अब यह मत कहना कि आपको भी कोई पसंद था पहले.” जूही ने सुमन को देखते हुए कहा.
“क्यों मुझे कोई पसंद क्यों नहीं आ सकता? क्या मैं कभी सत्रह-अठारह साल की नहीं थी? लेकिन मुझे भी इसी तरह तेरी दादी ने ही समझाया था. जब वह मुझे तेरे पिताजी के लिए देखने आई थीं तब मेरा उतरा चेहरा देखकर दूसरे कमरे में ले जाकर अकेले में इन्होंने मुझे पूछा और मैंने सब बता दिया था. तब मुझे गले लगाकर इन्होंने मुझे समझाया और फिर मुझे एक समझदार जीवनसाथी ही नहीं इतनी प्यारी मां भी मिली.” सुमन ने पुष्पा के कंधे पर सिर रखते हुए कहा.
“और तब से हम दोनों अकेले में उन यादों को याद कर कभी-कभी हंस लेते हैं.” पुष्पाजी ने सुमन का गाल थपथपाते हुए कहा.
“अब हम तीनों हंसा करेंगे.” जूही ने हंसते हुए कहा. अब वह ब्रेकअप वाले दर्द से पूरी तरह उबर चुकी थी और आकर्षण और प्यार का फ़र्क़ उसे समझ आ गया था.
गरम चाय के साथ तीन पीढ़ियों की स्त्रियों की सम्मिलित हंसी से कमरा भी खिलखिला उठा.

अश्लेषा राहुरीकर


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