मीडिया ने आए दिन कहीं न कहीं आत्महत्या की ख़बरें सुनाई देती हैं. कभी कोई आर्थिक तंगी के कारण, तो कभी कोई रिश्तों में धोखा खाने के कारण ऐसा करता है. हाल ही में बैंगलुरू के ऑटोमोबाइल एक्ज़ीक्यूटिव सुभाष अतुल की आत्महत्या के पहले शूट किए गए वीडियो ने एक बार फिर इस गंभीर समस्या की ओर सबका ध्यान खींचा है. आत्महत्या के मामलों में सबसे ज़्यादा चौंकानेवाली बात ये है कि ये ज़्यादातर मामले युवाओं में देखे जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि हमारे देश में 15 से लेकर 35 साल तक के युवाओं द्वारा आत्महत्या के मामले पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा हैं, जो साल-दर-साल बढ़ते जा रहे हैं. क्या बतौर परिवार और समाज हम फेल हो रहे हैं या पारिवारिक बुनियादों पर टिके हमारे रिश्ते कमज़ोर होने लगे हैं? आख़िर क्या हैं, आत्महत्या के पीछे के कारण, आइए जानते हैं.

आत्महत्या के चौंकानेवाले आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने साल 2022 के लिए आत्महत्या के जो आंकड़े पेश किए हैं, वो काफ़ी चौंकानेवाले हैं. आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2022 में हमारे देश में 1 लाख 71 हज़ार लोगों ने आत्महत्या की थी. इससे भी ज़्यादा चौंकानेवाली ख़बर यह है कि इन आंकड़ों में युवाओं की संख्या सबसे ज़्यादा है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट्स के मुताबिक़ भारत में युवाओं की आत्महत्या के आंकड़े पूरी दुनिया की तुलना में दोगुना हैं. जहां दूसरे देशों में यह आंकड़ा 1 लाख की जनसंख्या पर 13 युवाओं की आत्महत्या के मामलों का है, वहीं हमारे देश में यह आंकड़ा 26 है.
क्या हैं आत्महत्या के सीक्रेट कारण?
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक अब तक आत्महत्या के मामलों को रोकने के लिए उनका पूरा फोकस मेंटल हेल्थ पर रहा है, पर अब वो इसका दायरा बढ़ाकर इससे जुड़े दूसरे फैक्टर्स को भी इसमें शामिल करना चाहते हैं, ताकि इसे रोकने में जल्दी राहत मिले. ग़रीबी, क़र्ज़, घरेलू हिंसा और नशा ये कुछ ऐसे कारण हैं, जिनके बारे में लगभग हर किसी को जानकारी है, पर इसके अलावा ऐसा क्या है, जिसकी ओर अक्सर लोगों का ध्यान नहीं जाता. आइए जानते हैं क्या हैं वो सीक्रेट कारण?
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फोर्स्ड जनरेशन
युवाओं में आत्महत्या के बढ़ते मामलों का एक बड़ा कारण आज की पीढ़ी का फोर्स्ड जनरेशन होना है. फोर्स्ड जनरेशन इसलिए, क्योंकि इस पीढ़ी पर बहुत दबाव है. दबाव है, परिवार की अपेक्षाओं का, दोस्तों से ज़्यादा क़ाबिल बनने का, हर जगह अव्वल आने का, सोशल मीडिया पर मशहूर होने का, दोस्तों की तरह लाइफस्टाइल जीने का, कुछ अलग कर दिखाने का, ख़ुद की उम्मीदों पर खरे उतरने का... आदि. ये दबाव ही हैं, जो युवाओं को आत्महत्या की ओर धकेल रहे हैं.
बायो न्यूरोलॉजिकल बदलाव
मनोचिकित्सकों की मानें, तो आत्महत्या का विचार प्राकृतिक नहीं है, यह हमारे मस्तिष्क में होनेवाले बायो न्यूरोलॉजिकल बदलाव के कारण होता है. इस बदलाव के कारण व्यक्ति को लगने लगता है कि जीवन में कुछ बचा नहीं है, सब ख़त्म हो गया है और यही विचार उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है. यह बदलाव उन लोगों में ज़्यादा देखा जाता है, जो डिप्रेशन के शिकार होते हैं और जिनके परिवार में पहले किसी ने आत्महत्या की हो यानि यह जेनेटिक भी होता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी जींस के ज़रिए आगे बढ़ता है.

अकेलापन और एकांतता
अकेलापन धीमे ज़हर की तरह व्यक्ति को भीतर ही भीतर ख़त्म करने लगता है. अगर आपके आसपास कोई बच्चा या व्यक्ति हमेशा अकेले ही दिखाई दे या फिर दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ समय बिताने की बजाय हमेशा एकांत में रहने की ज़िद करे, तो उसकी ओर ख़ास ध्यान रखें. ये आत्महत्या के शुरुआती लक्षणों में से एक है.
डिस्ट्रेस है बड़ा कारण
वैसे स्ट्रेस दो तरह के होते हैं, एक हेल्दी और पॉज़िटिव स्ट्रेस और दूसरा है डिस्ट्रेस. जहां पॉज़िटिव स्ट्रेस या थोड़ा हेल्दी प्रेशर हमें पॉज़िटिव अप्रोच के साथ काम पूरा करने के लिए प्रेरित करता है, वहीं डिस्ट्रेस नेगेटिव होता है, जो हमें बीमार बनाता है. आजकल ज़्यादातर लोग डिस्ट्रेस के शिकार होते हैं, जिसके कारण असमय बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. ये बीमारियां जीवन में निराशा पैदा करती हैं, जो आत्महत्या का कारण बनता है.
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भावनाओं पर नियंत्रण नहीं
इंस्टेंट नूडल्स खानेवाली जनरेशन हर समस्या का इंस्टेंट सोल्यूशन चाहती है, इसीलिए उनमें सब्र की कमी आमतौर पर देखी जा सकती है. युवा पीढ़ी अपनी भावनाओं पर भी नियंत्रण नहीं रख पाती, क्योंकि उन्हें सब कुछ एक्स्ट्रीम लगता है. प्यार करते हैं, तो जुनून की हद तक और नफ़रत करते हैं, तो सारी हदें पार कर जाते हैं. भावनाओं पर नियंत्रण न होने के कारण ये ऐसे कठोर क़दम उठा लेते हैं.
एकल परिवार
जॉइंट परिवारों में बच्चों की देखभाल के लिए माता-पिता के अलावा कई लोग होते थे, जो उन्हें सपोर्ट और गाइड करते थे, लेकिन आजकल के एकल परिवारों में पैरेंट्स का वर्किंग होना बच्चों को बचपन से ही अकेला कर रहा है. यही कारण है कि बच्चों में ज़िद, अहंकार और नकारात्मक प्रतिस्पर्धा कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई है. पहले दादा, दादी, चाचा या बुआ समझाने के लिए मौजूद होते थे, पर अब उनकी कमी ऐसे मामलों में साफ़ देखी सजा सकती है.

क्या कहता है क़ानून?
आत्महत्या के बढ़ते मामलों की तरफ़ सरकार का भी ध्यान है और केंद्र व राज्य सरकारें इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम भी उठा रही हैं. कई हेल्पलाइन नंबर्स और वेबसाइट्स हैं, जहां पीड़ित को मदद मिल सकती है. आत्महत्या की कोशिश पर क्या कहता है क़ानून, आइए जानते हैं.
अब आत्महत्या की कोशिश अपराध नहीं
पुराने क़ानून भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत आत्महत्या की कोशिश करना अपराध माना जाता था और उसके लिए एक साल तक जेल की सज़ा का प्रावधान भी था, लेकिन नए क़ानून भारतीय न्याय संहिता में इसे शामिल नहीं किया गया है, जिसका साफ़ मतलब है कि अब यह अपराध नहीं है. हालांकि भारतीय न्याय संहिता में एक धारा ऐसी है, जिसके तहत सरकारी अफसर के काम में रुकावट पैदा करने के लिए आत्महत्या की कोशिश को अपराध माना गया है.
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मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017
आत्महत्या की कोशिश करनेवाले ज़्यादातर लोग डिप्रेशन या किसी मानसिक बीमारी के शिकार होते हैं, ऐसे समय में उन्हें देखभाल और सहारे की ज़रूरत होती है, जबकि भारतीय दंड संहिता के तहत उन्हें अपराधी घोषित करके और उन्हें सज़ा देकर हम स्थिति को और बिगाड़ देते हैं. मेंटल हेल्थ के महत्व को समझते हुए और इसे तवज्जो देते हुए केंद्र सरकार ने साल 2017 में यह क़ानून पारित किया. इस क़ानून की धारा 115 के अनुसार, आत्महत्या की कोशिश को बहुत ज़्यादा स्ट्रेस का परिणाम समझना चाहिए और व्यक्ति को सज़ा नहीं दी जानी चाहिए. इसके साथ ही इस धारा में सरकार पर यह ज़िम्मेदारी डाली गई कि अगर कोई आत्महत्या की कोशिश करनेवाला व्यक्ति अस्पताल में भर्ती किया जाता है, तो उसे इलाज के ज़रिए मानसिक रूप से स्थिर करने, मनोचिकित्सक को दिखाने और मामले के जांच की ज़िम्मेदारी सरकार की है.
हेल्पलाइन नंबर्स
अगर कोई पीड़ित मदद चाहता है, तो वह सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय की हेल्पलाइन- 1800-599-0019 या फिर इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यमून बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज के हेल्पलाइन नंबर्स-9868396824, 9868396841, 011-22574820 या फिर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस के नंबर 080-26995000 पर संपर्क कर सकता है.
- ऐड अनीता दिनेश सिंह

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