मैं तो सच में मदहोश हो गई. गाने के हर लफ़्ज़ के साथ जैसे एक डोर वास्तव में मन को उनके साथ बांध रही थी. पहली बार कोई चेहरा था, जिस पर से नज़रें नहीं हट रही थीं.

बड़ा रूमानी सा गाना था. संगीत सुनना मुझे शुरू से ही बहुत अच्छा लगता था. घर में भी पढ़ाई करने के बाद बजाय टीवी देखने के मैं आंखें बंद कर म्यूज़िक सिस्टम पर गाने ही सुनती रहती थी. उस पर रूमानी गाने मुझे बेहद पसंद थे. तब मैं एम.एससी फाइनल ईयर में थी. मेरी सहेली विद्या शास्त्रीय व सुगम संगीत में पारंगत थी. मुझे सुनने का शौक था और उसे गाने का. कई बार वो गाने गाती रहती और मैं सुनती. वो शहर के कुछ ऐसे समूहों से भी जुड़ी हुई थी, जो महीने में एक बार शाम के समय किसी जगह या होटल के किसी हॉल में इकट्ठे होकर गाने गाते, फिर रात में वहीं डिनर करते और फिर अपने-अपने घर चले जाते.
एक बार विद्या मुझे भी अपने साथ ले गई. होटल आदित्य के रूफ टॉप पर बने हॉल में संगीत संध्या समूह का प्रोग्राम था. मैं और संध्या दूसरी पंक्ति में बैठे थे. कुछ लोगों से उसने पहचान कराई. फिर कार्यक्रम शुरू हो गया और जिसका नाम पुकारा जाता, वो आगे आकर गाना गाता.
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विद्या ने पहले एक सोलो गाया. उसके बाद एक नाम पुकारा गया- राजेश. पीछे वाली पंक्ति से कोई उठकर सामने आया. लंबा, गोरा, हैंडसम एक युवक था वो. आंखों में जाने क्या कशिश थी कि मैं देखती ही रह गई उन्हें. हल्का सा सिर झुकाकर उन्होंने सबका अभिवादन किया और माइक उठाकर गाने लगे- ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए, मुझे डोर कोई खींचे तेरी ओर लिए जाए...
क्या आवाज़ थी उनकी. ऐसा लग रहा था कि स्वयं किशोरजी ही गा रहे हैं. मैं तो सच में मदहोश हो गई. गाने के हर लफ़्ज़ के साथ जैसे एक डोर वास्तव में मन को उनके साथ बांध रही थी. पहली बार कोई चेहरा था, जिस पर से नज़रें नहीं हट रही थीं.
गाते हुए दो बार मुझसे भी उनकी नज़रें मिलीं. मेरा दिल धड़क उठा और पलकें झुक गईं. गाना गाकर वो पीछे जाकर बैठ गए. मैं फिर किसी का भी गाना सुन ही नहीं सकी. कानों में बस उनकी ही आवाज़ सुनाई देती रही. बाद में उन्होंने एक और गाना गाना गाया. वो भी दिल में उतर गया.
डिनर के समय भी मैं सबकी नज़रें बचाकर उन्हें देख लेती. घर आने के बाद देर रात तक मुझे नींद ही नहीं आई. कानों में उनकी ही आवाज़ सुनाई देती रही. जैसे-तैसे एक महीना गुज़रा और फिर विद्या के साथ कार्यक्रम में पहुंची.
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इस बार मैं ज़िद करके सबसे पीछे की पंक्ति में बैठी, ताकि वो जब भी आएं मैं उन्हें देख सकूं. वो आधे घंटे बाद आए और बाईं तरफ़ तीसरी पंक्ति में बैठ गए. गानों के बीच मैं बस उन्हें ही देखती रही. अपने जीवन में मैंने इतना सुंदर युवक नहीं देखा था. उस दिन उन्होंने गाया- माना हो तुम बेहद हसीन ऐसे बुरे हम भी नहीं, देखो कभी तो प्यार से...
दिल में एक हसरत जागी, काश ये गाना राजेश मेरे लिए गा रहे हों. उस दिन उन्होंने तीन रूमानी गाने गाए. सुरों भरी उस शाम के वो नगमें दिल पर दस्तक देते रहे. प्रेम रूमानी नगमें बन मेरी रग-रग में उतर रहा था. वो मेरे सपनों पर छाने लगे. मेरे दिन उनकी याद करते गुज़रने लगे. उनके गाने मैं मोबाइल पर रिकॉर्ड कर लेती और अकेले में सुधबुध खोकर उन्हें ही देखती-सुनती रहती.
जो कभी वो गाते हुए नज़र भर मुझे देख लेते तो दिल खिल जाता. बाकी लोग क्या गाते, मुझे कुछ पता न रहता. मैं बस उन्हें एक नज़र देखने और उन्हें ही सुनने जाती. मन में उनके प्रति प्रेम गहराई तक रच-बस गया था. जाने क्यों लगता था कि वे भी मुझे चाहते हैं. उनकी आंखों में क्षण भर के लिए ही सही अपने लिए कुछ तो ख़ास देखा था मैंने. लेकिन जाने वो प्यार था या मेरा भम्र.
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जब विद्या को पता चला तो उसने बताया कि राजेश की तो पहले ही शादी हो चुकी है और दो साल का बेटा भी है. मन में उस दिन जाने क्या टूट गया था. पहला प्यार और वो भी अधूरा रह गया. उसके बाद मैं कभी उस समूह में नहीं गई न ही राजेश से मिली, मगर आज भी सुरों भरी उस शाम के नगमें कानों में गूंजते रहते हैं और मन उसी शाम के पास कहीं ठहर गया है.
- विनीता राहुरीकर

Photo Courtesy: Freepik
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