"आपको कब शादी करनी है? क्या आपको मैं अच्छी लगती हूं. मैं आपको दो साल से जानती हूं और आप मुझे." मोहन निशब्द था. उसने कभी यह सोचा ही न था.
"अगर आप हां बोलो तो मैं उस रिश्ते को ना कह दूं."
मोहन, सुरेंद्र और मीना की पहली मुलाक़ात ऑफिस में हुई थी. तीनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए.
सुरेंद्र और मोहन दोनों ही आकर्षक व्यक्तित्व के थे. मीना की मुस्कान और मृदु बोलने के व्यवहार से दोनों ही प्रभावित थे. ऑफिस में तीनों अक्सर बातें करते, लेकिन उनके दिलों में एक अनकही बात थी.
मोहन की सरकारी नौकरी दिल्ली में लगी थी, वह रुड़की में एम. टेक कर रहा था. पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर उसने नौकरी ज्वाइन कर ली. उसका निर्णय शायद ग़लत था, क्योंकि नौकरी में उन्नति के मौक़े कम ही थे,.पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी नौकरी मिल जाती.
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दिल्ली में उसने एक कमरा किराए पर ले लिया. पास में ही एक ढाबा था. उसका जीवन सही बीत रहा था. लेकिन उसे अपनी नौकरी से संतुष्टि नहीं थी. वह अच्छी नौकरी की पढ़ाई करने में लगा रहा.
उसके रिश्ते के बड़े भाई भाभी भी लाजपत नगर में रहते थे. ऑफिस की छुट्टी वाले दिन वह उनके पास चला जाता था. मोहन एक आकर्षक व्यक्तित्व के साथ-साथ मृदुभाषी भी था. कोई बुरी आदत सिगरेट, शराब की नहीं थी.
ऑफिस में सुरेंद्र व मोहन साथ-साथ ही रहते. लंच दोनों ऑफिस की कैंटीन में साथ-साथ ही करते थे. ऑफिस में मीना, सुरेंद्र व मोहन सब चाय एक साथ बैठकर पीते थे.
सुरेंद्र पंजाबी था और मीना भी पंजाबी थी.
मोहन उन तीनों में टेक्निकल पद पर ओर उनसे बड़े पद पर था.
मीना बहुत अच्छी लड़की थी. हंसती तो गालों में गढ्ढे पड़ते थे. मोहन अपने करियर बनाने में व्यस्त था.
एक दिन सुरेंद्र मोहन से बोला, "यार मुझे मीना बहुत अच्छी लगती है. शादी करने की सोच रहा हूं. उससे कई बार इशारों में कह चुका हूं, पर वह कोई संकेत ही नहीं दे रही."
मोहन बोला, "कोशिश करते रहो प्यारे, कभी न कभी वह मान ही जाएगी."
एक दिन मीना बहुत गंभीर लग रही थी. न हंस रही थी, न ही ज़्यादा बोल रही थी. सुरेंद्र के बार-बार पूछने पर बोली, "मेरे रिश्ते की बात चल रही है ओर मुझे ही हां या ना कहना है, लड़का मुझे पसंद कर गया है."
सुरेंद्र बोला, "अगर लड़का पसंद हो तो हां कर दो, वरना हम भी तैयार हैं." मीना मुस्कराई, पर कुछ बोली नहीं. मोहन भी बोला, "सुरेंद्र भी बढ़िया रहेगा." वह कुछ नहीं बोली.
सुरेन्द्र किसी कार्य से बाहर गया हुआ था. तब मीना मोहन के पास आई ओर बोली, "आपको कब शादी करनी है? क्या आपको मैं अच्छी लगती हूं. मैं आपको दो साल से जानती हूं और आप मुझे." मोहन निशब्द था. उसने कभी यह सोचा ही न था.
"अगर आप हां बोलो तो मैं उस रिश्ते को ना कह दूं."
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मोहन ने थोड़ी देर सोचा फिर बोला, "मेरा करियर अभी बना नहीं है. मैं अभी शादी के बारे में सोच ही नहीं सकता."
वह बोली, "मै इंतज़ार कर लूंगी."
मोहन फिर निशब्द… खामोश था. कुछ सोचकर बोला, "अगर करियर न बना तो पता नहीं कब तक इंतज़ार करना पड़े. आप सुरेंद्र के बारे में सोच सकती हो."
मीना बोली, "सोचा था, लेकिन उसका करियर सीमित है. कोइ तरक़्क़ी नहीं है. वैसे बहुत अच्छा है."
मोहन बोला, "आप उस ही लड़के को हां कर दो." यह कहकर वह वहां से चल दिया.
मीना के विवाह में सुरेंद्र व मोहन दोनों गए. सब ही ख़ामोश, निशब्द, निश्चल मोहब्बत के बारे में सोच रहे थे, जिसमें किसी को भी कोई नहीं मिल पाया.
- मोहन कृष्ण
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