एक से बढ़कर एक साड़ियों में लिपटी और हमेशा ख़ुशबू से महकती मेमसाब को देखकर उसे कुमार साहब बहुत ऊंचे दिखते थे, इतने ऊंचे कि गर्दन उठाकर देखा ना जा सके… शायद इसी ऊंचाई की ख़्वाहिश उसे पिछले महीने एक हज़ार का नुक़सान करा चुकी थी.
"रामदीन, पहले शर्मिला के यहां से उसे लेना है फिर क्लब जाना है." मिसेज़ कुमार ने गाड़ी में बैठते हुए आदेश दिया.
"जी मेमसाब." गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते हुए सुगंध का एक तीव्र झोंका रामदीन को सराबोर कर गया.
एक से बढ़कर एक साड़ियों में लिपटी और हमेशा ख़ुशबू से महकती मेमसाब को देखकर उसे कुमार साहब बहुत ऊंचे दिखते थे, इतने ऊंचे कि गर्दन उठाकर देखा ना जा सके… शायद इसी ऊंचाई की ख़्वाहिश उसे पिछले महीने एक हज़ार का नुक़सान करा चुकी थी.
"ये देखो, कइसी गजब साड़ी और सेंट लाए हैं तुम्हारे लिए… पहनकर आओ." परबतिया को सामान थमाकर रामदीन 'पत्नी को मेमसाब जैसा देखने वाले' सपने में खोया था कि दुर्गंध का भभका नाक से टकराया.
"ई का गिरा आई हो एत्ती क़ीमती साड़ी पर… फ़ूहड़!"
"कुछ गिराए नहीं है," परबतिया ने भोलेपन से सफ़ाई दी, "मुन्ना मूत दिहिस…"
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बस उसी दिन से रामदीन को लगा कि उसका क़द साहब से दो इंच और कम हो गया है और धीरे-धीरे घिसता ही जाएगा…
"फिर क्या सोचा तुम लोगों ने लोनावला वाले बंगले के लिए? कुमार का क्या कहना है इस बारे में?.." शर्मिला ने गाड़ी में बैठते ही कोई बात छेड़ दी. रामदीन के कान खड़े हो गए.
"कुमार क्या कहेंगे इस बारे में? उनकी मर्ज़ी से सूरज नहीं उगता मेरे घर में… वो बंगला मैं ख़रीद रही हूं, वो चाहे या नहीं, माइ फुट!" मेमसाब की अंग्रेज़ी पल्ले भले ना पड़ी रामदीन के, लेकिन तेवर तो स्पष्ट थे…
"तब भी यार! अगर कुमार ने डील होते समय कोई नाटक किया तो..?" शर्मिला ने थोड़ा-सा और घी डाला.
"तो दरबान से कहकर बाहर फिंकवा दूंगी कुमार को…"
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रामदीन की कल्पना ने उड़ान भरी. उसे सब साफ़ दिख रहा है; जब मेमसाब नौकरों से कहकर कुमार साहब को धकिया रही हैं, साहब का क़द छोटा होकर सिकुड़ने लगा है… ठीक उसी समय रामदीन अपने एक कमरे के घर में बैठा परबतिया के हाथ से खाना खा रहा है और इतना ऊंचा होता जा रहा है कि वहां से साहब चींटे जैसे दिख रहे हैं!
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