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कहानी- कलंक नहीं ये प्यार है (Short Story- Kalank Nahi Yeh Pyar Hai)

मैं एक फौजी की पत्नी हूं. इतनी कमज़ोर नहीं हो सकती. मैं अपने बच्चे को जन्म दूंगी और इसे अकेले ही पालूंगी. भले ही कुछ भी हो जाए. अब मैंने निर्णय ले लिया है.

एनडीआरएफ की टीम मुस्तैदी से ड्यूटी पर तैनात थी. अचानक ही एक ग्लेशियर का टुकड़ा फिसल कर नदी में आ गिरा था और सुस्त सी बहने वाली उस पहाड़ी नदी में बाढ़ आ गई थी.
इतना पानी भर गया था कि आनन-फानन में आर्मी और एनडीआरएफ की टीम को वहां तैनात करना पड़ गया था. वे लोग गांव वालों को सुरक्षित बचाकर बाहर निकालने में लगे हुए थे.
उसी में शेखर भी था.
ऋचा का मन बहुत ही बेचैन था. दो दिन पहले ही शेखर की डयूटी वहां लग गई थी. उसने जाने से पहले अपनी नई नवेली पत्नी से कहा था, “ऋचा मुझे कुछ भी नहीं होगा, बस अपना और इस आने वाले मेहमान का ख़्याल रखना.”
लेकिन वहां का हाल समाचार देखकर ऋचा का दिल बहुत ही घबरा रहा था.
बहुत देर तक टीवी पर आंखें गड़ाने के बाद रिचा थक गई. उसकी नज़र बार-बार मोबाइल पर पड़ रही थी. आज वह फोन का इंतज़ार कर रही थी, पर मगर फोन था कि बजने का नाम ही नहीं ले रहा था. निराश होकर हताशा और थकान से भरकर वह अपने कमरे में आ गई और लाइट ऑफ कर बिस्तर पर लेट गई.

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बिस्तर पर लेटते ही चलचित्र की तरह पुरानी बातें उसके आंखों के सामने दौड़ने लगीं.
वह और शेखर कॉलेज के समय से दोस्त थे. धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों एक-दूसरे के होने के लिए एक-दूसरे के साथ वचन ले लिए थे.
इधर शेखर ने आर्मी (एनडीए) के लिए एप्लीकेशन दिया था, जिसमें उसका सिलेक्शन हो गया था. वह फौज में चला गया.
ऋचा मास कम्युनिकेशन में दाखिला लेकर उसमें मास्टर्स कर रही थी. दोनों एक दूसरे से बिल्कुल ही अलग थे, मगर अब भी दोनों के बीच फोन पर बातचीत होती रहती थी.
जब रिचा के लिए उसके पिता लड़के ढूंढ़ने लगे तो ऋचा ने दबी ज़ुबान से शेखर के बारे में बताया.
ऋचा के पिता अनिकेत जी एक सामान्य सी नौकरी करते थे. अब उनके रिटायरमेंट का भी समय आ रहा था. घर में ऋचा के अलावा उसके एक भाई और बहन भी थे, जिनकी ज़िम्मेदारी उन पर थी.
उन्होंने जब यह सुना तो इसे सिरे से ख़ारिज कर दिया.
“ऋचा, मुझे इस तरह के फौजी लोग पसंद नहीं आते. आज हैं कल नहीं. ज़िंदगी कैसे गुज़रेगी तुम्हारी?”
“पर पापा!” ऋचा ने अपने पिता को समझाने की नाकाम कोशिश की पर वह अपने पिता के दलील के आगे चुप हो गई.
“ऋचा, तुम समझने की कोशिश करो. कल को तुम्हारे बच्चे होंगे और भगवान ना करें शेखर को कुछ हो गया तो तुम उसे बच्चे के सहारे सारी ज़िंदगी काट लोगी? नहीं ना! दूसरी शादी करोगी ही…

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तो फिर उस बच्चे का क्या होगा? वह तो अनाथ हो जाएगा न. एक कलंक जो तुम्हारे नाम हमेशा लिखा रहेगा.
कौन उसे एक्सेप्ट करेगा उसे? आज मैं हूं तुम्हारी मां है. कल को मैं और तुम्हारी मां रहेंगे और फिर…”
ऋचा अपने पिता को नहीं समझा पाई पर वह अपने फ़ैसले पर अडिग थी.
जैसे ही छुट्टी लेकर शेखर घर आया. दोनों ने अपने घर वालों के ख़िलाफ़ जाकर कोर्ट में जाकर विवाह कर लिया.
दोनों ही बालिग थे.
अभी शादी के छह महीने भी नहीं हुए थे, ऋचा के हाथों से मेहंदी भी नहीं उतरी थी, मगर आने वाले में मेहमान ने उसकी कोख में दस्तक दे दिया था.
इस ख़बर से जितनी ख़ुश ऋचा थी उससे दुगुना ख़ुश शेखर था.
उसे अपने आने वाले बच्चे का बहुत ही ज़्यादा इंतज़ार था.
वह बहुत ही ज़्यादा प्यार से ऋचा की देखभाल कर रहा था, लेकिन अचानक ही यह हादसा हो गया. उसकी डयूटी लगा दी गई और वह चला गया.
ऋचा अपने पेट पर हाथ फेरते हुए बोली, “इस बच्चे ने क्या क़सूर किया था भला कितना बुरा समय आ गया है? हे भगवान क्या इसे इसके पिता का साया भी नसीब नहीं होगा? ना जाने कल क्या ख़बर आएगी.‌ बिना शेखर के ज़िंदगी कैसे गुज़रेगी?”
बहुत ही डर और निराशा के साथ ऋचा ने करवट बदल बदल कर अपनी रात गुज़ारी.
मगर सुबह उसने निर्णय ले लिया था.
मैं एक फौजी की पत्नी हूं. इतनी कमज़ोर नहीं हो सकती. मैं अपने बच्चे को जन्म दूंगी और इसे अकेले ही पालूंगी. भले ही कुछ भी हो जाए. अब मैंने निर्णय ले लिया है.
उसने न्यूज़ देखा अब भी बाढ़ का कहर ज़ारी था. ऋचा घबरा उठी. उसने अकेले चलने का दम भरा था.
आज न तो शेखर के घरवाले उसके साथ थे और न ही उसके अपने.
वह बहुत ही असहाय अनुभव कर रही थी.
"अपने माता-पिता के ऊपर मैंने कलंक का टीका लगाया है, उसका फल तो मुझे मिलेगा ही.” ऋचा ने अपने आप से कहा.

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तभी डोरबेल बजी.
इतनी सुबह कौन आया होगा, यह सोचकर उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला, बाहर उसके माता-पिता और दोनों भाई बहन खड़े थे.
ऋचा अवाक होकर उन्हें देखती रही. फिर वह अपने पिता के गले लगकर रो पड़ी.
“पापा मुझे माफ़ कर दीजिए. मैंने आपके ऊपर कलंक का टीका लगाकर भाग आई. आज मैं कहीं की भी नहीं रह गई हूं.”
“अरे नहीं मेरा बच्चा तुमने मुझे लज्जित नहीं किया, बल्कि मेरा मान बढ़ाया है. आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि मेरा दामाद एक जांबाज़ फौजी है. मैंने ही तुम्हें विवश कर दिया था बेटा, जिससे तुम्हें ऐसे कदम उठाने पड़ गए.
माफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए.”
थोड़ी देर में शेखर के घर वाले भी वहां आ गए. शेखर की मां ने भी ऋचा को गले लगा लिया और कहा, “ऐसी फूल सी ख़ूबसूरत पसंद है मेरे बेटे की. कितनी ख़ुशनसीब हूं मैं. बेटा इस समय तुम्हें किसी भी तरह का टेंशन नहीं लेना चाहिए."
ऋचा रोते हुए मुस्कुरा उठी. उसने अपने आप से कहा, "मुझे मालूम था मेरा बच्चा कलंक नहीं हो सकता. आने से पहले ही इसने मेरे दोनों परिवारों को जोड़ दिया.
बस, शेखर तुम जल्दी से आ जाओ. तुम्हें और भी ख़ुशख़बरी देनी है.”
दो दिन बाद बाढ़ का शोर थमने लगा. जब नेटवर्क आने लगा तो शेखर ने अपने सकुशल होने की ख़बर ऋचा को दिया
सब लोग ख़ुशी से झूम उठे. अब बस इंतज़ार था शेखर के लौटने का.
- सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

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Photo Courtesy: Freepik

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