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कहानी- आम का पेड़ (Short Story- Aam Ka Ped)

''आप सच कह रहे हैं ताऊजी, हम शहरी लोग बहुत स्वार्थी हो गए हैं, तभी हमारे शहर में शुद्ध हवा नहीं है, साफ़ वातावरण नहीं है. इस शुद्ध वातवरण की चाह लेकर ही तो मैं गांव आता हूं, गांव से भी अगर यह हरियाली चली गई तो फिर हम शुद्ध वातावरण के लिए कहां जाएंगे?''

मैं साल में कम से कम दो या तीन बार अपने पैतृक गांव ज़रूर जाता था. मुझे गांव का परिवेश हमेशा आकर्षित करता था. इस कारण मैं अपने बच्चों को भी कभी-कभी साथ ले जाता था. गांव वाले घर में मेरे ताई-ताऊजी और मां-पिताजी रहते थे. बाकी के हम सारे भाई-बहन जो शहरों में बस गए थे छुट्टियों के दौरान यहां उनके पास रहने आ जाते थे. हम ताऊजी और पिताजी से भी हमारे साथ शहर चलने की ज़िद करते रहते थे, पर वे हमारे साथ नहीं जाते, उनका कहना था कि 'गांव की मिट्टी की महक ही उनके लिए ऑक्सीजन है इसके बिना वे नहीं रह सकते…' गांव के शुद्ध खानपान और रहन-सहन के कारण वे सभी इस उम्र में भी सेहतमंद थे.
वे शहर नहीं आते तो हम ही यहां आते-जाते रहते. वे हमारे आने पर घर की बहुत सारी चीज़ें बदल देते, ताकि हमें गांव में कोई असुविधा न हो. वे कभी कूलर, कभी गीजर तो कभी हमारे लिए घर में वॉटर प्यूरीफायर लगवा देते. पर इस बार वे बगीचे वाली जगह पर हमारे लिए नई सुख-सुविधाओं वाले कमरे बनवा रहे थे.

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जब मैंने गांव वाले घर पहुंचकर पेड़ों को कटते हुए देखा तो दंग रह गया. कई पेड़ों के साथ मेरा बहुत प्रिय आम का पेड़ भी कटने वाला था. तभी मैं आ गया और मैंने ताऊजी से पूछा, ''ताऊजी, आप पेड़ क्यों कटवा रहें हैं?''
''बेटा, तुम लोगों को छोटे-छोटे कमरों में दिक़्क़त होती है और जब तुम सब इकठ्ठे यहां आते हो तब तुम लोगों को कमरे भी कम पड़ जाते हैं. शहर में तुम सबको अलग-अलग कमरों में रहने की आदत है इसीलिए तुम लोगों के लिए और कमरे बनवा रहे हैं.''
''पर ताऊजी, हम यहां कितने दिनों के लिए आते हैं. यह पेड़ तो हमेशा यहीं रहते हैं. आठों पहर ताज़ी हवा देते हैं, ताज़े फल देते हैं, शीतल छाया देते हैं. आपको याद है मेरे पांचवें जन्मदिन पर आपने ही मुझसे यहां यह आम का पेड़ यह कहकर लगवाया था कि तुम भी इस पेड़ की तरह बढ़ना और इस पेड़ की तरह सदा सबका मंगल करना.''


यह कहता हुआ मैं उदास हो गया तो ताऊजी बोले, ''बेटा, तुम सबको असुविधा न हो इसलिए हम यहां से पेड़ कटवा कर कमरे बनवा रहे थे. मुझे क्या पता था कि तुम्हारा आज भी इस आम के पेड़ से वही बचपन वाला लगाव है. तुम लोग तो शहरों में पेड़ों को कोई महत्व नहीं देते यही सोचकर हमने इन्हें हटाना चाहा.''

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''आप सच कह रहे हैं ताऊजी, हम शहरी लोग बहुत स्वार्थी हो गए हैं, तभी हमारे शहर में शुद्ध हवा नहीं है, साफ़ वातावरण नहीं है. इस शुद्ध वातवरण की चाह लेकर ही तो मैं गांव आता हूं, गांव से भी अगर यह हरियाली चली गई तो फिर हम शुद्ध वातावरण के लिए कहां जाएंगे?''
तभी पास खड़े पिताजी बोले, ''अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, रुकवा दो काम और बचा लो अपना आम!''
मैं ख़ुश होता बोला, ''जी पिताजी, हम यहां एक साथ इन्हीं पहले से बने कमरों में रह लेंगे, मगर इन पेड़ों को नहीं कटने देंगे.''
तभी मेरा आठ साल का बेटा बोला, ''हां दादाजी, मैं इसमें हर साल झूला झूलता हूं. मुझे भी कोई शहरी सुविधा नहीं चाहिए. मुझे तो बस इस इन पेड़ों पर झूले और इनके मीठे फल चाहिए.''

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मेरे बेटे को दुलारते हुए पिताजी बोले, ''नई पीढ़ी के बच्चों में प्रकृति के प्रति प्रेम होना कितना सुखद है. चलो आज हम कच्ची ज़मीन पर ढेरों पेड़ लगाएं, ताकि सालों बाद जब तुम्हारे बच्चे यहां आए, तो वे भी तुम्हारे द्वारा रोपे गए पेड़ों में झूला झूलें.'' पिताजी की इस बात पर सभी ज़ोर से हंस पड़े. और मैं आम के पेड़ से किसी मित्र की तरह प्रेमवश लिपट गया. आम का पेड़ भी जैसे प्रसन्न होकर मुझ पर अपनी पत्तियां बरसाने लगा.

पूर्ति खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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