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कहानी- भूख लगने तो‌ दो… (Short Story- Bhook Lagne Toh Do…)

ओह! तो वहां मिस करने की बात हो रही थी… मुझे अच्छा लगा, बेचारा सांस तो ले लेगा वहां महीनाभर. मैं कुछ कहने वाली थी, तब तक उसका पति वापस आकर बैठ गया और ये तुरंत उस पर लुढ़क गई. उसके हाथ को सहलाते हुए… मैंने फिर मुंह दाईं तरफ़ घुमा लिया. बच्चा जाग गया था और उसकी मां जल्दी-जल्दी कटोरी में कुछ घोल रही थी.

"ये लास्ट बाइट, बंदर की तरफ़ से… वेरी गुड!" तरह-तरह की युक्तियां अपनाकर आख़िरी निवाला भी उसने बच्चे को खिला दिया. बच्चा ट्रेन की खिड़की से बाहर देखते-देखते खा गया. मैंने एक लंबी सांस खींचकर मुंह दूसरी तरफ़ घुमाया, लेकिन वहां भी माहौल कुछ ऐसा ही था.
"जानू, यू विल मिस मी ना!" लड़की ने लगभग अपना पूरा भार पति पर देते हुए शायद आठवीं बार ये पूछा था या मैंने सुना ही इतनी बार था!
"क्यों नहीं मिस करूंगा… थोड़ा सीधे बैठो ठीक से!" वो शायद मेरी उपस्थिति में थोड़ा असहज हो रहा था. दूसरी तरफ़ वो ममता की मूरत अब दूध का ग्लास लिए खड़ी थी.

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"दूध पीने से बिग बॉय हो जाएगा… पापा जैसा." और जैसी कि उम्मीद थी, एक घूंट दूध पीते ही बच्चे ने भड़ाक से उल्टी कर दी. असहनीय बदबू के कारण अब मेरे लिए वहां बैठना मुश्किल हो चुका था. मैं वहां से उठकर दूसरी सीट पर बैठ गई.
मैं सुबह से देख रही थी, इन दोनों स्त्रियों को… बाईं तरफ़ वाली की शादी को मुश्किल से साल भर हुआ होगा. पति से एक क्षण की दूरी भी नहीं बर्दाश्त थी… कल्पना के घोड़े दौड़ाते हुए मुझे अनायास हंसी आ गई. इसका पति जब सोता होगा, तब भी ये जगा जगाकर, "जानू, मैं सपने में आई हूं ना…" पूछती होगी और मेरे दाईं तरफ़ वाली मां बच्चे को नींद में भी कुछ खिलाती रहती होगी. लगभग आधे घंटे बाद वापस आने पर बदबू भी गायब थी और दोनों के पति भी. बच्चा सो चुका था. कुल मिलाकर माहौल बेहतर था.
"सॉरी आंटी, आपको परेशानी हुई. पता नहीं क्या हो गया है, खाते ही उल्टी कर दे रहा है… भूख भी नहीं लगती इसको."
वो लगभग रुआंसी हो गई थी.
"कोई बात नहीं बेटा… बच्चों में ये सब लगा रहता है." मैंने कनखियो से 'जानू वाली' को देखा, किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी. मुझे ऐसा लगा कि वो कोई प्रश्न मेरी ओर उछालने वाली थी.
"आंटी, आपकी शादी को कितने साल हो गए?" मैं मन ही मन मुस्कुरा दी. मुझे पता था, यही सवाल आने वाला था.
"इस दिसंबर ३० पूरे हो जाएंगे… तुम्हारी तो अभी पहली एनीवर्सरी भी नहीं आई शायद…"
"यू आर जीनियस!" वो चहकी. फिर तुरंत बुझ गई, "केवल सात महीने हुए हैं आंटी, और इनको ऑफिस के काम से यूएसए जाना है एक महीने के लिए… मुझे मायके छोड़ने जा रहे हैं."
ओह! तो वहां मिस करने की बात हो रही थी… मुझे अच्छा लगा, बेचारा सांस तो ले लेगा वहां महीनाभर. मैं कुछ कहने वाली थी, तब तक उसका पति वापस आकर बैठ गया और ये तुरंत उस पर लुढ़क गई. उसके हाथ को सहलाते हुए… मैंने फिर मुंह दाईं तरफ़ घुमा लिया. बच्चा जाग गया था और उसकी मां जल्दी-जल्दी कटोरी में कुछ घोल रही थी.

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"अब कुछ मत खिलाना इसे." मैं एकदम से बोली.
"लेकिन आंटी… पेट खाली है…" उसके हाथ रुके नहीं.
"पेट खाली होने तो दो," मैंने कहा, "बच्चे को खिलाती रहोगी, बिना भूख, बिना मन के… उल्टी तो कर ही देगा."
मां ने कुछ सोचकर घोलना बंद कर दिया. मैंने देखा बाईं तरफ़ वाली लड़की भी सीधी होकर बैठ गई थी. हाथ अभी भी नहीं छोड़ा था.
"तुम्हें लगता है बच्चा खाता नहीं, इसका मन नहीं करता. अरे, भूख लगने तो दो." बच्चे की मां ने 'हां' में सिर हिलाते हुए कटोरी अलग रख दी. मैंने कनखियो से 'जानू वाली' को देखा, 'जानू' का हाथ अब उसके हाथ में नहीं था.

- लकी राजीव

Photo Courtesy: Freepik

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