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कहानी- जीवन के रंग (Short Story- Jeevan Ke Rang)

कीर्ति एक-एक कर पन्ने पलट रही थी और हर पन्ने के साथ उसकी और राजेश, दोनों की ही आंखें नम होती जा रही थीं, क्योंकि गुनगुन ने किसी भी पन्ने में कोई रंग नहीं भरे थे, बल्कि हर हैप्पी फैमिली वाले चित्र के नीचे एक उदास सी छोटी बच्ची को बनाया था और साथ ही लिखा था- जब मेरे घर में भी ये सब होगा, तभी भरूंगी मैं इनमें रंग.

“कीर्ति मैं या तो पागल हो जाऊंगा या यह घर छोड़ कर चला जाऊंगा…” राकेश ने लगभग चीखते हुए कहा.
कीर्ति भी चिल्लाई, ”तुम क्या जाओगे, तुमसे पहले मैं ही चली जाऊंगी. तंग आ गई हूं रोज़-रोज़ के तुम्हारे लड़ाई-झगड़े से."
ये शब्द बाण थमते नहीं अगर मोबाइल फोन नहीं बजता."
कीर्ति ने कॉल रिसीव की. उधर से आवाज़ आई, ”मैम, मैं गुनगुन की क्लास टीचर बोल रही हूं. कल पैरेंट्स-टीचर्स मीटिंग है…"
"जी मै आ जाऊंगी…" कीर्ति ने उनकी बात को जैसे बीच में काटते हुए ही कहा.
“जी, मैं चाहती हूं कि मिस्टर सक्सेना भी आपके साथ आएं.” क्लास टीचर ने अपनी अधूरी बात को कीर्ति के चुप होते ही पूरा किया.
राकेश को यह बात बता कर कीर्ति ने धम्म से कमरे का दरवाज़ा बंद किया और घर के दूसरे हिस्से में चली गई.
अगले दिन कीर्ति और राकेश गुनगुन की टीचर के सामने स्कूल के ऑफिस में बैठे थे.

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टीचर ने उनसे पूछा, ”क्या आपको पता है, हमारे यहां के प्राइमरी सेक्शन के बच्चों के लिए 'माई हैप्पी फैमिली' पर आधारित ड्रॉइंग एक्टिविटी हम करा रहे हैं.”
कीर्ति और राकेश दोनों ने ना में सिर हिलाया.
टीचर ने आगे कहा, “इस एक्टिविटी में हमने स्कूल की तरफ़ से बच्चों को एक ड्रॉइंग बुक दी है. ड्रॉइंग बुक के हर पन्ने पर घर में सामान्यतः जो गतिविधियां होती हैं, जिसमें घर के लोग बच्चे के साथ कुछ-कुछ करते हैं उसके एनिमेटेड चित्र बने हैं.
बच्चों को उन्हीं चित्रों में रंग भरना है, जो उनके घर में होता हो, जैसे- पैरेंट्स का उनके साथ खेलना, बैठ कर बातें करना, बच्चे का होमवर्क कराना आदि.


मुझे गुनगुन की ड्रॉइंग बुक देखकर ताज्जुब हुआ और चिंता भी, इसलिए आप दोनों को बुलाया. लीजिए आप ख़ुद ही देखिए.” यह कहते हुए टीचर ने ड्रॉइंग बुक उन दोनों की तरफ़ कर दी.
कीर्ति एक-एक कर पन्ने पलट रही थी और हर पन्ने के साथ उसकी और राजेश, दोनों की ही आंखें नम होती जा रही थीं, क्योंकि गुनगुन ने किसी भी पन्ने में कोई रंग नहीं भरे थे, बल्कि हर हैप्पी फैमिली वाले चित्र के नीचे एक उदास सी छोटी बच्ची को बनाया था और साथ ही लिखा था- जब मेरे घर में भी ये सब होगा, तभी भरूंगी मैं इनमें रंग.

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दोनों ने एक-दूसरे को देखा, तो आंखों और उनसे बहते आंसुओं ने शायद मौन संवाद कर लिया कि अपने लड़ाई-झगड़े के बीच वो यह कैसे भूल गए कि एक फूल सी बच्ची भी है उनकी, जिसका मन अभी कच्ची मिट्टी का है, उसकी सतह पर पड़ने वाली हर अच्छी-बुरी चीज़ गहरी छाप छोड़ेगी.
तो उसके मन में ख़ूबसूरत रंगों वाले चित्रों को उकेरने में उन्हें क्या करना है, ये अब दोनों बेहतर समझ चुके थे. बाहर निकलते ही उन्होंने गुनगुन को चूमते हुए गोद में उठाया और चल पड़े गुनगुन के साथ-साथ अपने जीवन में भी रंग भरने.

प्रज्ञा मिश्रा


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Photo Courtesy: Freepik

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