मंदिर से आती 'हरे कृष्ण-हरे राम' संकीर्तन की आवाज़ से बेअसर वर्षा झूले की डोरी पकड़े सो रही थी. मेरी हिम्मत और बढ़ी, झूले में झांका…मुन्ना सो नहीं रहा था, हाथ-पैर झटक-झटक कर मुस्कुरा रहा था! मेरा दिल धड़-धड़ करने लगा; ये तो हूबहू सुमित है; वही आंखें, वही घुंघराले बाल, वही मोहक मुस्कान, बस रंग अपनी मां जैसा- कृष्ण वर्ण!..
"कुछ तो बोलो. देखो, है तो अपना ही बेटा, इतना समय हो गया, अब तो माफ़ कर दो. तुमको ही मनाने आए हैं, पोते को तो देख लो… ऐसे भूखी-प्यासी ये सब सोचती रहोगी तो बीपी और हाई होगा, उपवास भी है तुम्हारा. अच्छा ये सेब ले लो…"
मैंने इनका हाथ झटक दिया, "बढ़ जाए मेरा बीपी, मर ही जाऊं… मेरा ध्यान होता तो इन लोगों को घर में आने देते? आपको और वर्षा को पता था ना कि ये लोग आ रहे हैं? पापा-बेटी दोनों चुप्पी साधे रहे!" मेरा गला फिर से रुंध गया.
क़रीब डेढ़ साल पहले सिंगापुर में नौकरी कर रहे बेटे ने विस्फोट किया था, "मैं और वैजयंती शादी कर रहे हैं, आप लोगों को आना है." वाह! मां-पिता को सीधा शादी का निमंत्रण? ऊपर से बनारस के ब्राह्मण परिवार के सुदर्शन, गौर-वर्ण सुमित को पसंद भी आई तो कौन, एकदम काली, मांस-मछली खाने वाली हैदराबादी लड़की!
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सुमित के पिता तो थोड़ी-बहुत ना नुकुर के बाद मान गए, शादी करवा आए. बराबर फोन पर बातें होती रहीं. फिर पोते के जन्म पर आशीर्वाद भी दे आए… बस अटल रही तो मैं; ना वो लोग यहां आएंगे ना मैं जाऊंगी. अब इतने दिनों बाद बच्चे का मुंह दिखाकर मनाने आए हैं. बेकार की बातें… बच्चे को देखने की इच्छा भी कामवाली की बातें सुनकर ख़त्म हो गई, "माताजी, बउआ तो बिल्कुल बहूजी जैसा करिया है." अब उससे क्या कहूं, ना तो मैंने बहूजी को देखा है, ना बउआ को.
पतिदेव थोड़ी देर में फिर सिरहाने आकर बैठ गए, "हम लोग बगल वाले मंदिर जा रहे हैं, जन्माष्टमी की झांकी देखने, कन्हैयाजी के जन्म के बाद ही आएगे… मुन्ना सो रहा है. उसके साथ वर्षा रुकी है. वो गेट खोल देगी. तुम सो जाना."
ओह! मुन्ना यहीं है. एक बार जी में आया, मुन्ने को चुपचाप देख आऊं. लेकिन वर्षा? उसने देख लिया, तो सबको बता देगी. फ्रिज की आड़ लेकर कमरे में झांका… मंदिर से आती 'हरे कृष्ण-हरे राम' संकीर्तन की आवाज़ से बेअसर वर्षा झूले की डोरी पकड़े सो रही थी. मेरी हिम्मत और बढ़ी, झूले में झांका…मुन्ना सो नहीं रहा था, हाथ-पैर झटक-झटक कर मुस्कुरा रहा था! मेरा दिल धड़-धड़ करने लगा; ये तो हूबहू सुमित है; वही आंखें, वही घुंघराले बाल, वही मोहक मुस्कान, बस रंग अपनी मां जैसा- कृष्ण वर्ण!..
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अब और रुकना असहनीय था, मुन्ने को गोद में उठाते ही बरसों से रुका बांध फूट पड़ा. भक्तों ने ऊंचे स्वर में उद्घोष किया, "नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की!.." मैंने उसे और कसकर भींच लिया; मंदिर में और मेरी गोद में, दोनों जगह कन्हैयाजी जन्म ले चुके थे!..
- लकी राजीव
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