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कहानी- सांता आया… (Short Story- Santa Aaya…)

मीनू त्रिपाठी

सर का लाया केक और क्रिसमस ट्री वहीं रखा हुआ था. "अरे खड़े क्यों हो… जाओ न, सजा लो  क्रिसमस ट्री…" मां ने कहा… तो वह क्रिसमस की तैयारियों में जुट गया.
"कितना सुंदर मन है हमारे जॉन का… तुम उसके सांता बन पाओ इसके लिए मोमबत्तियां बेचने चला गया था."
मां ने कहा, तो पिता ने जवाब दिया, "ये बात हमें पता है ये जॉन को न पता चले…"

सुबह जॉन के चेहरे पर मुस्कुराहट और उसके माता-पिता के चेहरे पर चिंता थी. क्रिसमस को सिर्फ़ एक दिन रह गया था, पर अभी तक जॉन के लिए वह उपहार नही ख़रीद पाए थे.
मां की बीमारी में जमा धनराशि ख़र्च हो चुकी थी. जॉन की स्कूल फीस और घर मे दो जून की रोटी का मुश्किल से इंतज़ाम हो पा रहा था. ऐसे में क्रिसमस का आना…
माता-पिता की चिंता जॉन समझ रहा था, क्योंकि कल रात उसने उनकी बातें सुन ली थीं.
"जॉन क्रिसमस में सांता का इंतज़ार करेगा, तो हम क्या करेंगे." जब मां ने पिता से पूछा तो वह कुछ सोचकर बोले, "कह देंगे कि हर साल हम ही सांता बनकर उसे उपहार देते हैं. इस बार पैसे न होने के कारण मैं उपहार नही दे पाऊंगा."
"अरे नहीं, ये ठीक नहीं होगा. उसका नन्हा मन दुखी हो जाएगा. कह देना कि सांता अगले साल आएगा और उसे दो उपहार देगा." मां ने घबराकर कहा तो पिता बोले, "उसे यूं बहलाने की ज़रूरत नही है. अब वह बड़ा हो रहा है. इतनी समझदारी तो आनी ही चाहिए."
"वो समझदार है और अच्छे से जानता है कि सांता की तरफ़ से उपहार आप ही देते हैं. फिर भी उसके चेहरे की ख़ुशी देख लगता है जैसे वह उपहार उसे सांता से मिला है."
मां की बात सुनकर पिता मौन हो गए, तो मां ठंडी सांस लेकर बोलीं, "कितनी सुंदर मोमबत्तियां बनाई थी, पर बीमारी की वजह से बेच ही नहीं पाई. अगर आप बेच सको, तो उसके उपहार और क्रिसमस की तैयारियों भर के पैसे मिल जाते."
"नहीं, मेरे पास समय नहीं है. वैसे भी मोमबत्ती बनाना तुम्हारा शौक है, वरना उससे तुम्हें पैसे मिलते ही कितने हैं." पिता के कहने पर मां की उदासी पूरे घर में फैल गई.
जॉन चुपचाप अपने कमरे में आकर आंखें मूंदकर लेट गया, पर देर रात तक उसे नींद नहीं आई. सुबह उसकी आंखें खुली, तो उसने स्कूल बैग से किताबें निकालकर उसमें मां की बनाई कुछ मोमबत्तियां डाल लीं. वैसे भी आज स्कूल में क्रिसमस मनेगा. बड़े दिन की छुट्टियां घोषित होंगी.

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स्कूल से आते समय वह बाज़ार जाएगा. वहां क्रिसमस की बहुत सारी चीज़ें बिक रही होंगी- क्रिसमस ट्री, सांता क्लॉज वाली टोपी, मास्क, मोमबत्तियां…
बस वहीं वह भी मोमबत्तियां बेचेगा. उसकी मां की बनाई मोमबत्तियां बहुत सुंदर होती हैं ज़रूर अच्छे दामों में बिक जाएंगी.सोच में डूबा वह घर से निकला. रास्ते में इक्का-दुक्का खुली दुकानें देखकर वह रुक गया. आज तो स्कूल में हाफ डे होने वाला है. क्यों न यहीं रुक जाए और आने-जाने वालों को मोमबत्तियां बेचने की कोशिश करे.
जॉन देर तक वहां खड़ा रहा. स्कूल न जाकर बाज़ार में खड़े-खड़े वह घबरा भी रहा था. एक मन कह रहा था स्कूल चला जाए, दूसरा मन उसे मोमबत्तियां बेचने को उकसा रहा था.
"सुनो बेटे…" सहसा जॉन को किसी ने पुकारा. उसने नज़र उठाकर देखा, तो कांपकर रह गया. सामने स्कूल के प्रिंसिपल सर खड़े थे.
"तुम तो के. वी. पब्लिक स्कूल के स्टूडेंट्स हो न…"
"ज… ज्ज… जी… हां सर…."  वह हकबकाया.
"क्या हुआ सब ठीक तो है न…  स्कूल के लिए लेट हो रहे हो. बैठो गाड़ी में, मैं छोड़ दूंगा."
सर ने कहा, तो वह रुआंसा सा अपना बैग छिपाते हुए किसी तरह बोला, "चला जाऊंगा सर…"
प्रिंसीपल सर ने उसे गौर से देखा फिर बोले, "नहीं, गाड़ी में बैठो. मैं स्कूल छोड़ देता हूं, वरना तुम्हे देर हो जाएगी."
उनके सख्त स्वर को  सुनकर वह चुपचाप आगे की सीट पर बैठ गया. डर के मारे सर्दी में भी पसीना आने लगा था.
बैग को ख़ुद से वह यूं चिपटाए था मानो उसे छोड़ दिया, तो मोमबत्तियां ख़ुद ब ख़ुद बाहर आ जाएंगी. स्कूल आते ही बिना धन्यवाद दिए वह क्लास की ओर दौड़ गया.
प्रार्थना सभा में क्रिसमस की बधाई के साथ स्कूल की छुट्टियां घोषित की गई. तीसरे और चौथे पीरियड में क्रिसमस का आयोजन होना था. उसके बाद छुटटी होनी थी. अब तो छुटिटयों के बाद ही वह मोमबत्तियां बेच पाएगा. यही सोचते हुए वह कक्षा में गया, तो दरवाज़े पर ही प्यून बोला, "प्रिंसिपल सर बुला रहे हैं."
यह सुनकर वह सिर से पांव तक कांप गया. किसी तरह प्रिंसिपल ऑफिस पहुंचा, तो देखा वहां उसकी क्लास टीचर भी बैठी थीं.
"आओ, जॉन." प्रिंसिपल सर ने कहा, तो वह आगे बढ़ा और सिर झुकाकर खड़ा हो गया.
"यह तुम्हारा बस्ता है?"
प्रिंसिपल सर ने उसका बस्ता उठाया, तो उसकी जान निकल गई.
"यस… यस… सर…" वह किसी तरह से बोला. आंखों में आंसू भर आए.
"इतनी सारी मोमबत्तियां क्यों हैं. इस बस्ते में तो किताबें होनी चाहिए. तुम्हें पता नहीं, शुरू के दो पीरियड में पढ़ाई होगी." अब तो जॉन फूट-फूट कर रो पड़ा.
उसका सारा राज़ कैसे खुल गया. वह सोच ही रहा था कि प्रिंसिपल सर बोले, "यहां बैठो मेरे पास… मैंने आज सुबह फुटपाथ पर तुम्हें इधर-उधर ताकते हुए देखा था. जिस तरह से तुम बैग को अपने आप से चिपटाए खड़े थे उसे देखकर मुझे तुम पर शंका हुई."
जॉन को हिचकी लेकर रोते देख वह प्यार से बोले, "मैंने ही क्लास टीचर से कह कर बैग चेक करवाया.
इसमें तो बहुत सुंदर मोमबत्तियां है. इतनी सारी मोमबत्तियां लेकर तुम स्कूल क्यों आए?"

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"बेचने…" अब कुछ भी छिपाना उसके लिए मुश्किल था.
"स्कूल में!"
"नही सर बाज़ार में…"
"पर क्यों? स्कूल बैग और यूनिफॉर्म में तो बच्चे स्कूल जाते हैं."
यह सुनकर जॉन ने पिछली रात अपने माता-पिता की सुनी बात सर को सुनाई, तो वह उसके सिर पर हाथ फेरकर बोले, "बेटे, तुम्हारा इरादा नेक था, पर तरीक़ा ग़लत. खैर, अब ऐसा कभी मत करना. ये मोमबत्तियां यहीं छोड़ जाओ. स्कूल में लगाएंगे. तुम्हारी मां ठीक हो जाएं, तो उनसे निवेदन करना कि वो ये कला हमारे स्कूल के बच्चों को सिखाएं."
जॉन ने अपनी बांह से आंसू पोंछकर मुस्कुराते हुए सहमति में गर्दन हिलाई, तो सर कुछ सोचकर बोले, "नहीं, तुम अपनी मां से कुछ मत कहना. मैं ही तुम्हारे घर आकर उनसे आग्रह करूंगा कि वो महीने में एक या दो बार आकर हमारे स्कूल में मोमबत्ती बनाना बच्चों को सिखाएं."
सर की बात सुनकर जॉन घबराया, तो सर उससे बोले, "डरो नहीं, मैं तुम्हारे माता-पिता से ऐसा कुछ नहीं कहूंगा कि तुम्हे शर्मिंदा होना पड़े. आज तुम अपनी मां को बताना कि तुम उनकी बनाई मोमबत्तियां स्कूल में दी है."
यह सुनकर उसने हां में गर्दन हिला दी.
उस दिन  स्कूल में क्रिसमस का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया. जॉन की मां की बनाई मोमबत्तियां क्रिसमस ट्री के सामने लगाई गईं.
चलते समय टीचर ने उसे एक गिफ्ट देते हुए कहा, "जॉन, इन मोमबत्तियों के बदले प्रिंसीपल सर ने तुम्हें उपहार दिया  है."
यह सुनकर वह ख़ुश हो गया और उसने घर जाकर गिफ्ट अपनी आलमारी में रख दिया. कई बार उसे ख़्याल आया कि वह मां को मोमबत्तियों को चुपके से स्कूल ले जाने वाली बात बता दे, पर कहीं उसकी बीमार मां दुखी न हो जाए इस डर से वह चुप रहा.
शाम को जब वह खेल कर घर आया, तो मां-पिता के साथ प्रिंसिपल को देख वह दंग रह गया.
प्रिंसिपल सर जॉन को देखते ही बोले, "थैंक्यू जॉन, आज तुम अपनी मम्मी की बनाई मोमबत्तियां लेकर आए. तबियत ठीक होने के बाद तुम्हारी मम्मी हमारे स्कूल में मोमबत्तियां बनाना सिखाएंगी."
जॉन के चेहरे पर डर के भाव देखकर मां उसे गले लगाते हुए बोली, "मुझे बताते तो मैं अंदर से और बढ़िया मोमबत्तियां निकाल देती…"

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"वो… वो मैं…" वो हकबकाया, तो मां हंसकर बोलीं, "तुम्हारी वजह से स्कूल में मेरी कला पहुंची है. जानता है, मोमबत्तियां सिखाने के लिए मुझे बड़ी अच्छी तनख्वाह मिलेगी…"
"तनख्वाह!" वह हैरानी से बोला, तो मां उत्साह से बोलीं, "हां, प्रिंसिपल सर ने तेरी आधी फीस माफ़ कर दी है."
"थैंक्यू सर…" मां-पिता को ख़ुश देखकर उसके मुंह से निकला, तो प्रिंसिपल, "मेरी क्रिसमस…"  कहते हुए उसके सिर पर हाथ फेरकर चले गए.
सर का लाया केक और क्रिसमस ट्री वहीं रखा हुआ था. "अरे खड़े क्यों हो… जाओ न, सजा लो  क्रिसमस ट्री…" मां ने कहा… तो वह क्रिसमस की तैयारियों में जुट गया.
"कितना सुंदर मन है हमारे जॉन का… तुम उसके सांता बन पाओ इसके लिए मोमबत्तियां बेचने चला गया था."
मां ने कहा, तो पिता ने जवाब दिया, "ये बात हमें पता है ये जॉन को न पता चले…"
रात को जब सब सो गए, तो जॉन उठा और आलमारी से टीचर का दिया गिफ्ट निकालकर पापा के पास रख कर आराम से सो गया. सुबह उसकी आंख खुली, तो देखा वही गिफ्ट उसकी तकिया के पास रखा हुआ था.
सुबह पापा उससे बोले, "आज तो गजब हो गया सांता ने तुम्हारा गिफ्ट मेरे पास रख दिया था."
यह सुनकर जॉन "मेरी क्रिसमस" कहकर पिता के गले लग गया. वह दोनों अपने-अपने सांता को देखकर मुस्कुरा दिए.

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