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कविता- मेरी सेल्फी (Poetry- Meri Selfie)

दिनभर की किच-किच
और काम की आपाधापी में भी अक्सर
सैंकड़ों में
एक सेल्फी क्लिक करके  
मैं ख़ुद को सौंप देती हूं
अदनी सी मुस्कुराहट

न किसी फिल्टर की ज़रूरत
और न ही बैकग्राउंड की चिंता
कैसी दिखती हूं
कपड़े तो ठीक-ठाक हैं न
कोई क्या कहेगा
छोड़ो भी नो टेंशन

महज़ दिखावा भर नहीं है
ये देखो
मेरे मोबाइल की गैलरी
जो अटी पड़ी है अनगिनत सेल्फियों से
आज बेबाकी से ऐलान कर रही है कि
स्वयं को ख़ुश रखने की ज़िम्मेदारी भी
अब हमारी ही रही…
- नमिता गुप्ता 'मनसी'


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Photo Courtesy: Freepik

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