महिलाएं आमतौर पर अपनी हेल्थ की केयर नहीं करतीं. कई बार वो कुछ स्वास्थ्य समस्याओं को छोटा-मोटा समझकर नज़रअंदाज़ कर देती हैं या फिर संकोचवश डॉक्टर के पास नहीं जातीं, नतीजतन आगे चलकर समस्या गंभीर हो सकती है. आइए जानते हैं महिलाओं की ऐसी ही कुछ सीक्रेट हेल्थ प्रॉब्लम के बारे मेेंं.
अत्यधिक पसीना आना
पसीना आना नॉर्मल बात है, लेकिन जब पसीना बहुत ज़्यादा मात्रा में आने लगे, तो परेशानी का कारण बन जाता है. कई बार यह अंडरआर्म के अलावा हथेलियों और पैरों में भी आता है. पसीने और बैक्टीरिया की क्रिया से एसिड बनता है जिससे पसीने से बदबू आने लगती है. अत्यधिक पसीने से कपड़ों पर दाग़ भी पड़ जाते हैं.
क्या करें?
- बदबू कम करने के लिए एंटीपरस्पीरेंट और डियो का उपयोग करें.
- हथेलियों में आने वाले पसीने के लिए बोटॉक्स इंजेक्शस लिए जा सकते हैं.
- खानपान में बदलाव भी बदबू कम करने में सहायक होता है. इसके लिए प्याज़, लहसुन और रेड मीट (मटन) का प्रयोग कम करें.
- साबूत अनाज, हरी सब्ज़ियां, ताज़े फल, स्प्राउट्स एवं नट्स की मात्रा बढ़ा दें.
सांसों की बदबू
सांस या मुंह से बदबू आना एक आम समस्या है. जो किसी भी उम्र के लोगों में हो सकती है. आमतौर पर सांस में बदबू प्याज़, लहसुन आदि खाने से होती है.
- सिगरेट या तंबाखू के सेवन से भी सांसों से बदबू आती है.
- कई बार लंबे समय तक किए जाने वाले उपवास या लो कार्बोहाइड्रेट डायट के कारण भी मुंह से दुर्गंध आने लगती है.
- बीमारी में ली जाने वाली कुछ दवाइयां भी सांस में बदबू पैदा करती हैं.
- यदि उपरोक्त कारण ना होने के बावजूद सांसों से बदबू आती है, तो ये किसी बीमारी जैसे- डायबिटीज़, लीवर-किडनी से जुड़ी समस्या या सांस की नली में इंफेक्शन के कारण हो सकता है.
- सांसों में बदबू डेंटल प्रॉब्लम्स, जैसे- दांतों में सड़न, गम डिसीज़ (मसूढ़ों की बीमारी) या मुंह में बैक्टीरिया की ग्रोथ (बढ़त) के कारण भी होती है.
क्या करें?
- सांसों की दुर्गंध से बचने के लिए दिन में 2 बार ब्रश करें और हर बार खाना खाने के बाद फ्लॉस करें. इससे दुर्गंध कम हो जाती है.
- जीभ पर जमी गंदगी को टंगस्क्रेपर से साफ़ करें. यह हर मेडिकल शॉप में मिलता है.
- सांसों में ताज़गी के लिए एंटीसेप्टिक एवं एंटी बैक्टिरियल माउथवॉश का इस्तेमाल करें.
- गाजर, ककड़ी एवं सेब खाना फ़ायदेमंद होता है.
ईटिंग डिसऑर्डर
कई बार अकेलेपन, तनाव और परेशानी में लोग ज़्यादा खाते हैं, परंतु ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति पहले ओवर ईटिंग करता है, फिर अधिक खाने के कारण वह अपराधबोध से ग्रस्त हो जाता है. वो अपना वज़न घटाना चाहता है, मगर चाहते हुए भी अपने खाने की चाह को रोक नहीं पाता और इतना खाता है कि बीमार पड़ जाता है. उसे दस्त होने लगता है. ऐसे लोग अपने खाने की चाह और कैलोरी घटाने के लिए अनेक तरीक़े अपनाते हैं, जैसे उल्टी करना, उपवास करना, अधिक एक्सरसाइज़ करना आदि.
क्या करें?
- बिहेवियरल थेरेपी की मदद से इस डिसऑर्डर पर काफ़ी हद तक क़ाबू पाया जा सकता है.
- डिप्रेशन और अकेलेपन के एहसास से दूर रहने की कोशिश करें.
- खाने की आदतों को मॉनीटर करें.
- नियमित रूप से खाएं, एक साथ बहुत ज़्यादा न खाएं.
- दस्त एवं उल्टी करने की इच्छा दबाएं.
- पतले होने के लिए मन में आने वाले अनहेल्दी विचारों, जैसे- अपराधबोध व शर्मिंदगी को दूर कर प्रसन्न रहना सीखें.
खुजली व रैशेस की समस्या
इस समस्या में जननांगों एवं उसके आसपास के एरिया एवं ब्रेस्ट के नीचे खुजली होती है एवं रैशेस आ जाते हैं. ऐसा किसी भी उम्र की महिला को हो सकता है. कई बार ज़्यादा मोटापे से त्वचा की सतहें आपस में मिलती है तब उनकी रगड़ से त्वचा लाल हो जाती है या रैशेस उभर आते हैं.
- ब्रेस्ट के नीचे, जननांगों के पास एवं जांघों के बीच वाले हिस्से की आपसी रगड़ से त्वचा लाल हो जाती है एवं तकलीफ़ होती है.
- इन जगहों पर ज़्यादा पसीना आने से भी रैशेस उभर आते हैं, खुजली होती है. इसके साथ स्केली पैचेस, पिंपल्स या फुंसियां भी हो जाती हैं.
- कई बार खुजली का कारण गीली पैंटीज या ब्रा पहनना भी हो सकता है. नम स्थानों पर फंगल व बैक्टिरियल इंफेक्शन भी तेज़ी से फैलता है. यह संसर्गजन्य होता है.
- पैंटीज में वॉशिंग पाउडर या साबुन का कुछ अंश रह जाने से भी खुजली होती है.
क्या करें?
- ऊपर बताए गए शारीरिक अंगों को रोज़ धोएं और अच्छी तरह पोंछकर सुखाएं. गर्मियों में प्रिकली हीट पाउडर लगाएं. यह अत्यधिक पसीने को रोकता है.
- ज़्यादा टाइट कपड़े पहनने से बचें.
- ज़्यादा पसीना आने वाली एक्टिविटीज़, जैसे- जिमिंग, एक्सरसाइज़ या स्पोर्ट्स के बाद शॉवर अवश्य लें.
- एंटीफंगल क्रीम, लोशन और पाउडर की मदद से रैशेस ठीक हो जाते हैं, परंतु इंफेक्शन ज़्यादा हो तो एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट लेना पड़ता है.
- इन सारे उपायों के बावजूद रैशेस एक या दो हफ़्ते में ठीक ना हो, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.
वजाइनल बदबू
इस समस्या से पीड़ित महिलाओं की वजाइना से बदबू आती है. इसके अलावा वजाइना में जलन, खुजली, ज़्यादा मात्रा में डिस्चार्ज होना, पेशाब करते समय दर्द होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं. बदबू का कारण बैक्टीरियल संक्रमण होता है. सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज़, वजाइना को साफ़ न रखने तथा इंफेक्शन के कारण भी वजाइना से बदबू आती है.
क्या करें?
- पीरियड्स के दौरान सेनिटरी नैपकिन्स कम से कम 4-5 बार बदलें.
- वजाइना की साफ़-सफाई का ध्यान रखें. यदि 2-3 दिनों में समस्या ठीक नहीं होती, तो डॉक्टर से तुरंत चेकअप करवाएं. सामान्यतः यह संक्रमण एंटीबायोटिक लेने से ठीक हो जाता है.
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पेट फूलना, गैस होना, डकार आना
गैस निकलना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. शोधों के अनुसार एक व्यक्ति का दिनभर में 14-15 बार गैस पास करना सामान्य बात है, परंतु यदि इससे ज़्यादा हो रहा हो, तो समस्या हो सकती है. ये समस्या पेट में अधिक मात्रा में हवा जाने से होती है. ऐसा जल्दी-जल्दी खाना खाने से, स्ट्रॉ से पेय पदार्थ पीने से या लगातार च्यूंगम चबाने से होता है. कुछ खाद्य पदार्थों के खाने से भी पेट फूलता है. इसके अलावा पाचन तंत्र में खराबी या अपच के कारण भी ऐसा होता है.
क्या करें?
- खाना चबाकर धीरे-धीरे खाएं. जल्दी-जल्दी खाने से पेट में गैस बनती है.
- जंक फूड, स्प्राउट्स, बीन्स, फूलगोभी और मैदे से बनी चीज़ें खाने से बचें. इनसे भी पेट फूलता है.
- आर्टिफिशियल स्वीटनर, सॉफ्ट ड्रिंक और च्यूंगम का सेवन न करें.
यूरिन लीक होना
यह समस्या अक्सर महिलाओं को शर्मसार कर देती है. इस बीमारी में छींकने, ज़ोर से हंसने, खांसने, कूदने या एक्सरसाइज़ करने से अपने आप ही यूरिन लीक हो जाती है. कई बार यूरिन लगने पर महिला बाथरुम पहुंचने तक भी कंट्रोल नहीं कर पाती और बीच में ही यूरिन लीक हो जाती है. दरअसल, डिलीवरी के बाद यूरिनरी ब्लैडर को सपोर्ट करने वाली पेल्विक फ्लोर मसल्स ढीली पड़ जाती है, जिससे यूरिन लीक की समस्या हो जाती है. मेनोपॉज़ के बाद या डायबिटीज़ के कारण भी यह समस्या हो सकती है.
क्या करें?
- डिलीवरी के 5-6 महीने बाद यह समस्या अपने आप ठीक हो जाती है, क्योंकि तब तक पेल्विक फ्लोर मसल्स फिर से टाइट हो जाती है.
- कीगल या पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज़ से भी ये समस्या हल हो जाती है.
- डांसिंग, वॉकिंग या एक्सरसाइज़ करने से पहले बाथरूम जाकर आएं. यदि यूरिन लीकेज की समस्या रोज़ाना हो रही हो, तो डायबिटीज़ के लिए ब्लड शुगर टेस्ट कराएं.
- स्त्री रोग विशेषज्ञ से अंदरुनी जांच कराएं, क्योंकि सिस्ट या फाइब्राइड भी इसका कारण हो सकता है.
कामेच्छा में कमी
कामेच्छा के बारे में बात करने में महिलाएं संकोच करती हैं. यहां तक कि डॉक्टर के पास भी नहीं जाना चाहतीं. कामेच्छा में कमी के कई कारण हो सकते हैं, जैसे- तनाव, डिप्रेशन, मोटापा, भावनात्मक आदि. इसके अलावा हार्मोनल इंबैलेंस, प्री मेनोपॉज एवं पोस्ट मेनोपॉज़ भी इसकी वजह हो सकते हैं. हार्ट डिसीज़, डायबिटीज़ अथवा किसी बीमारी में ली जाने वाली दवाओं के सेवन से भी कामेच्छा में कमी आ जाती है. सेक्स में रुचि न होने से वजाइनल ड्राइनेस या शराब व ड्रग्स के सेवन से भी कामेच्छा में कमी आती हैं.
क्या करें?
- हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने से समस्या हल हो जाती है. नियमित एरोबिक एक्सरसाइज़, जैसे स्वीमिंग, वॉकिंग व जिम करने से स्टेमिना बढ़ता है. जिससे सेक्स की इच्छा भी बढ़ती है.
- मेडिटेशन, हार्मोन थेरेपी व काउंसलिंग से काफ़ी मदद मिलती है.
- सबसे महत्वपूर्ण है पार्टनर से संवाद बनाए रखना. साथ समय बिताएं, कहीं घूमने जाएं. समस्या अपने आप दूर हो जाएगी. यदि ना हो पाए तो सेक्सोलॉजिस्ट से सलाह लें.
पीरियड प्रॉब्लम्स
कभी-कभी पीरियड्स में हैवी ब्लीडिंग होती है, मरोड़ें आती हैं और बहुत दर्द होता है. पीरियड्स में अचानक हैवी ब्लीडिंग होने लगे और 2-3 दिन से ज़्यादा रहे तो चिंताजनक बात हो सकती है. यदि पहले और दूसरे पीरियड के बीच में स्पॉटिंग होने लगे तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें.
क्या करें?
- ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स ब्लीडिंग कम कर पीरियड्स को नियमित करते हैं, परंतु इसे डॉक्टर से पूछकर ही लें.
- ब्लीडिंग यदि सात दिन से ज़्यादा हो या फिर मेनोपॉज़ होने के बाद भी ब्लीडिंग होने लगे, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें.
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