Close

कहानी- स्वावलंबन… (Short Story- Svaalamban)

"मॉम, पापा को बोलो मुझे आज ही लैपटॉप चाहिए, नहीं तो कल से मैं कॉलेज नहीं जाऊंगा." विभा के कानों में थोड़ी देर पहले बोले गए आदित्य के शब्द गूंज गए और अचानक उसने एक सवाल कर दिया, "तुम्हे ग़ुस्सा नही आता कि तुम्हे ख़ुद ही कमाकर पढ़ना पड़ रहा है. तुम्हारे पिताजी… कभी मन नहीं करता कि पढ़ना छोड़ दूं?"

"मॉम मेरे नए लैपटॉप का क्या हुआ?" आदित्य ने विभा से पूछा.
"पैसे आते ही ख़रीद देंगे बेटा." विभा ने धीरे से जवाब दिया.
"क्या मतलब है पैसे आते ही? आपको पता भी है मेरी पढ़ाई, मेरे प्रोजेक्ट्स का कितना नुक़सान हो रहा है. रिजल्ट ख़राब आया, तो मुझे कुछ मत कहना." आदित्य ग़ुस्से से भुनभुनाया.
"पर बेटा तुझे जो मॉडल चाहिए वो बहुत महंगा है. पापा अभी इतने पैसे कहां से लाएंगे. अभी तो तेरे ट्यूशन वाले सर को भी पूरे साल भर की फीस…." विभा कहते हुए चुप हो गई.
"तो ये सब मुझे इंजीनियरिंग में दाखिला करवाने से पहले ही सोचना चाहिए था. पैसा नहीं था तो…"
बेटे की बात विभा को अंदर तक चुभ गई. हर साल कॉलेज की फीस, हर विषय की ट्यूशन फीस अलग से, आने-जाने के लिए मोटरसाइकिल भी ले दी कि बस में समय ख़राब न हो. फिर भी जैसे-तैसे ही पास होता है. और अब ये इतने महंगे लैपटॉप का ख़र्च.
एक मध्यमवर्गीय पिता कितना करे. उस पर अभी भी दो साल बचे हैं. फिर बेटे का एहसान भी सर पर की आपके सपने पूरे करने के लिए ही तो पढ़ रहा हूं.
विभा बाहर आंगन में आकर खड़ी हो गई. मन बुझा सा हो रहा था बेटे के व्यवहार से. एक लड़का पडौसी की गाड़ी धो रहा था. आदित्य का ही हमउम्र था. विभा के मन में सहज करुणा हो आई. पढ़ाई करने की जगह बेचारा मेहनत करके परिवार के लिए पैसे जोड़ता है.
"कहां तक पढ़े हो बेटा?" अचानक ही विभा के मुंह से सवाल निकल गया.
लड़के ने ऊपर देखा और मुस्कुरा कर कहा, "इंजीनियरिंग के तीसरे साल में हूं आंटी."
"क्या?" विभा चौंक गई.
"तुम तो काम करते हो. फिर पढ़ते कब हो?"
"सुबह काम करता हूं. दस बजे कॉलेज जाता हूं. पढ़ाई बस में आते-जाते और रात में कर लेता हूं. शाम को सेकंड और फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स को ट्यूशन पढ़ाता हूं. पिताजी कपड़ों पर प्रेस करने का काम करते हैं न, मेरी फीस नहीं दे सकते, तो मैं ख़ुद अपनी फीस कमाता हूं." सहजता से उसने बताया.
"मॉम, पापा को बोलो मुझे आज ही लैपटॉप चाहिए, नहीं तो कल से मैं कॉलेज नहीं जाऊंगा." विभा के कानों में थोड़ी देर पहले बोले गए आदित्य के शब्द गूंज गए और अचानक उसने एक सवाल कर दिया, "तुम्हे ग़ुस्सा नही आता कि तुम्हे ख़ुद ही कमाकर पढ़ना पड़ रहा है. तुम्हारे पिताजी… कभी मन नहीं करता कि पढ़ना छोड़ दूं?"
"कभी नहीं… मैं पढ़ रहा हूं, तो मेरा ही भविष्य सुधरेगा न! मैं कोई अपने माता-पिता पर थोड़े ही एहसान कर रहा हूं. अपना ही जीवन  बना रहा हूं." लड़के ने सहज भाव से उत्तर दिया.
लैपटॉप के लिए मां के पास तकाज़ा करने के लिए आते हुए आदित्य के पांव लड़के की बात सुनकर दरवाज़े पर ही ठिठक गए, क्योकि वह लड़का उसी के कॉलेज में पढ़ता था और हर साल टॉप करता है.

विनीता राहुरीकर

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

Photo Courtesy: Freepik

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का गिफ्ट वाउचर.

Share this article