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कहानी- डांस टीचर (Short Story- Dance Teacher)

पूर्ति खरे

“महिलाएं ही अगर नारी हक़ की बात करना छोड़ देंगी, तो कौन आगे बढ़कर उनके हक़ की बात करेगा. बिटिया को ब्याहने तक ही मां की ज़िम्मेदारी होती है क्या? किसी भी प्रतिभा का दरख़्त कभी भी किसी ज़मीन को खोखला नहीं करता. उसे कितना भी उखाड़ कर फेंक दो, उसकी जड़ें नहीं उखड़ा करतीं, वे बार-बार निकल आती हैं. अगर ब्याह के बाद अनुश्री की जड़ें फिर फूट पड़ें, तो आप लोग क्या करोगी?” दादी पद्मा टीचर की लिखी चिट्ठी पढ़े जा रही थीं.

“अनुश्री, क्या गज़ब डांस करती हो तुम! इतना ग्रेसफुल डांस मैंने आज तक किसी का भी नहीं देखा. सबकी आंखों को बांध लेती हो तुम. कहां से सीखा इतना प्यारा डांस?”
मैं तनु की बात सुनकर मुस्कुराते हुए पद्मा टीचर के बारे में सोचने लगी. वही तो थीं, जिन्होंने मेरी नन्हीं सी उस प्रतिभा को समझा था. उन्होंने मेरी मां के पास  जाकर ख़ुद बात की थी, “बहनजी, अनुश्री की थिरकन में नटराज की विशेष कृपा है. उसके अंदर डांस सीखने की जो ललक है न, ऐसी ललक हज़ारों में एक के पास होती है. आप भेजिए न उसे मेरी डांस क्लास में.”
मेरी मां यूं तो मुझे डांस नहीं सिखाना चाहती थीं, पर मेरी नृत्य के प्रति दिलचस्पी और पद्मा टीचर के अनुरोध के कारण उन्होंने मुझे पद्मा टीचर के यहां भेजना शुरू कर दिया. बस, उसी दिन के बाद पद्मा टीचर लग गईं मुझे गढ़ने में. मैं कुछ सोचते हुए पैरों के घुंघरू खोल ही रही थी कि तनु फिर बोली, “कहां खो गई? बता न कहां से सीखा इतना ख़ूबसूरत डांस?”
“थीं मेरी एक बहुत प्यारी सी टीचर, जो मुझसे भी ज़्यादा ग्रेसफुल डांस करती थीं. जब वे डांस करती थीं, तो जैसे उनके आसपास की निर्जीव पड़ी चीज़ेें भी नाच उठती थीं. पता है उनसे डांस सीखने के लिए इस शहर के बच्चों में होड़ मची रहती थी. बच्चे अच्छी-खासी फीस देकर भी उनके पास आते थे. मैं उनकी फेवरेट स्टूडेंट थी, फिर भी मैंने उनकी क्लास बीच में ही छोड़ दी.”


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“क्यों?” तनु के इस क्यों का मेरे पास लंबा जवाब था, “क्योंकि वे शादीशुदा नहीं थीं, इसलिए मां ने मुझे उनके पास आगे नहीं जाने दिया. वे एक खुले विचारोंवाली निडर महिला थीं. नृत्य उनके लिए पूजा था. उनकी बातें अत्याधुनिक थीं, इसलिए मां और मां जैसी अन्य महिलाओं के मन में यह भय था कि कहीं नृत्य के बहाने वे अपने विचारों को भी हमारे अंदर न रोप दें. बस, इसलिए मैं उनसे लंबे समय तक डांस नहीं सीख पाई.”
“वाह! जब थोड़े समय में उन्होंने तुम्हें इतना अच्छा सीखा दिया, तो तुम अगर उनसे पूरा डांस का प्रशिक्षण ले लेतीं, तो न जाने क्या करतीं.” तनु की बात पर मैं ठहरकर कुछ सोचती हुई बोली, “खैर! छोड़ो, घर चलते हैं, आज कुणाल अपने पैरेंट्स के साथ घर आ रहा है. आज पहली बार उसके पैरेंट्स मुझसे मिलेंगे.” कहते हुए मैंने अपने घुंघरू बैग में रखे और तेज़ स्पीड में स्कूटी चलाते हुए हम घर आ गए.
घर पहुंचते ही मां की बड़बड़ाहट शुरू हो गई, “सौ बार कहा है इस लड़की से कि समय का ध्यान रखा करो. पर नहीं, ये महारानी डांस के आगे कुछ सोचे तब न! जब देखो डांस..डांस.. और डांस… इसके आगे भी जीवन में कुछ है कि नहीं?”
“मां, क्यों बेकार में चिल्ला रही हो, आ तो गई मैं.”
”हां, तो क्यों आ गई, सीधे अपनी शादीवाले दिन आती.”
मां की नाराज़गी मैं अच्छी तरह से समझ रही थी. कुणाल एक अच्छा लड़का था और हमारे हिसाब से उसकी फैमिली भी ठीक-ठाक थी. मेरे इस घर की तरह कुणाल के घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी. और यह रिश्ता ख़ुद हमारे घर चलकर आया था. ऐसे में इतने अच्छे रिश्ते को मां यूं ही हाथ से कैसे जाने देतीं. मां काफ़ी घबराई हुई लगीं, तो मैं उन्हें बांहों में भरकर बोली, “तुम भी न मां, इतनी घबराई हुई क्यों हो. लड़केवाले आ रहे हैं. कोई शेर थोड़ा न आ रहे हैं.”


मां, “तू एक मां के मन को क्या समझे. जा अब बातों में देर मत करो जल्दी से तैयार हो जा, लड़केवाले आते ही होंगे.” उनके कहते ही मैं अपने कमरे में जाकर तैयार होने लगी.
कुछ ही देर में कुणाल और उसके घरवाले आ गए. दो बड़ी सी टेबल को जोड़कर, कम से कम मां ने बारह-तेरह तरह का नाश्ता लगाया. कुछ औपचारिक बातचीत के बाद मुझे बुलाया गया. कुणाल तो मुझे पहले से ही जानता था. हम दोनों ने एक ही कॉलेज से इंजीनिरिंग की थी. वही एक कॉलेज के डांस परफॉर्मेंस के दौरान उसका मुझ पर दिल आ गया था. पर उसके माता-पिता मुझसे और मेरी मां से आज पहली बार मिलने आए थे.
“देखिए बहनजी, लड़के को लड़की पसंद है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं. बस आप तो पंडितजी से बात करके आनेवाले सबसे पहले लग्न में दोनों की शादी का मुहूर्त निकलवा लीजिए. अब तो दोनों का झट मंगनी पट ब्याह हो ही जाना चाहिए.” कुणाल की मां की कही यह बात सुनकर मेरी मां ख़ुशी से झूम उठीं.
पापा के जाने के बाद मां के कंधों पर ही तो मेरी और दादी की सारी ज़िम्मेदारियां थीं. लंबे समय तक हमने आर्थिक तंगी झेली थी. मेरी डांस क्लास शुरू होने के बाद मां को बहुत सहारा मिला था. लेकिन बेटी कब तक घर में रहेगी? एक न एक दिन तो उसके हाथ पीले करने ही होंगे, यही सोचकर मां इस घर आए अच्छे रिश्ते को लेकर उत्साहित थीं.
मां सबका मुंह मीठा करवाने लगीं, तो कुणाल की मां की नज़र दीवार पर लगी मेरी नृत्य मुद्रा में खिंची गई फोटो पर गई. उस ओर देखती हुई वे बोलीं, “चलो अच्छा है, शादी के बाद तुम्हें दूसरों को डांस सिखाते हुए अपने पैर नहीं तोड़ने पड़ेंगे.”
उनकी इस बात पर मैं आश्‍चर्य से बोली, “मतलब आंटी?”
“अरे बेटी, हमारा बेटा अच्छा कमाता है, तो फिर तुझे डांस सिखाने की क्या ज़रूरत? बढ़िया सेठानी बनकर ठाठ से रहना.”
तभी कुणाल के पिताजी उनकी बात का समर्थन करते हुए बोले, “सही बात कह रही हो कुणाल की मां. हमारी बहू डांस-वांस सिखाने जैसे काम करे, इसकी ज़रूरत नहीं है हमें.”
उन लोगों की मानसिकता देखकर मैं हैरान रह गई. कुणाल भी बिल्कुल मौन बैठा हुआ स़िर्फ मुस्कुरा रहा था. मेरी जिस प्रतिभा का क़ायल होकर कुणाल ने मुझे चुना था, वे सब मिलकर मेरी उसी प्रतिभा का निरादर कर रहे थे. और आश्‍चर्य की बात तो यह थी कि मेरी मां भी उनकी इन बातों पर हामी भर रही थीं.
“कुणाल, तुम मुझसे शादी करो या न करो, मैं अपनी डांस क्लास नहीं छोड़ सकती.” मैंने सीधा-सपाट उत्तर दिया, तो सभी मेरी ओर आश्‍चर्य से देखने लगे.
तभी कुणाल की मां बोलीं, “अरे भाई काम करने का इतना ही शौक है, तो जॉब कर लेना. तुमने भी तो कुणाल के साथ इंजीनियरिंग की न. वैसे ज़रूरत तो उसकी भी नहीं, पर तुम्हारा मन है, तो कोई प्रतिष्ठित सी नौकरी कर सकती हो, पर ये डांस-वांस नहीं. क्या है न समाज में हमारी अच्छी प्रतिष्ठा है. ऐसे में किसी को यह पता चला कि तिवारी परिवार की बहू डांस क्लास चलाती है, तो अच्छा नहीं लगेगा न.”
उनकी इस बात पर मैं बिना कुछ बोले सीधे वहां से उठकर चली गई. मेरे पीछे-पीछे कुणाल आया और बोला, “यार, जॉब करना है तो करो न, पर अगर मां-पापा को तुम्हारा डांस सिखाना पसंद नहीं है, तो मत सिखाना. विश्‍वास करो अनु, तुम्हें कभी मेरे घर पर पैसों की कमी नहीं पड़ेगी.”


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“कुणाल, मैं डांस स़िर्फ पैसों के लिए नहीं सिखाती, यह मेरा शौक है. डांस मेरी आत्मा है. मैं डांस नहीं छोड़ सकती.” मैंने अपना अंतिम निर्णय सुनाया, तो कुणाल और उसकी फैमिली वहां से चली गई.
मां बहुत दिनों तक नाराज़ रहीं. घर में लंबे समय तक मौन पसरा रहा. एक दिन मां ने ग़ुस्से में आकर मेरे घुंघरू बगीचे के पीछे फेंक दिए. मैं उनकी इस नाराज़गी से टूट गई. मेरा मन धीरे-धीरे बदलने लगा.
मैं समझ गई थी कि लड़कियों को जीवन में कुछ समझौते करने ही पड़ते हैं. मैंने मन ही मन तय किया कि अब जॉब के लिए अप्लाई करूंगी. डांस से दूरी बना लूंगी. मां ने कितनी मुसीबतों से मुझे बड़ा किया है. उनके लिए यह जीवन उनके हिसाब से ही जीऊंगी. यह सब सोचते हुए मैंने मां से माफ़ी मांगी और उनसे कह दिया, “मां, मेरी कोई ज़िद नहीं है. अब मैं वही करूंगी, जो आप कहेंगी.”  मेरी इस बात पर मां की आंखें नम हो गईं.
उन्होंने मुझे गले लगाते हुए कहा, “बेटी, हमारी जो प्रतिभाएं हमारे लिए नासूर बनने लगें, हमें उन्हें छोड़ देना चाहिए.”
“कोई प्रतिभा कभी नासूर भी बन सकती है क्या?” मैंने ख़ुद से सवाल किया और मौन हो मां को सुनने लगी, “कुणाल की मां का फोन आया था. कह रही थीं कि अनुश्री का मन बदला क्या… अगर तेरा मन डांस से हट गया हो, तो फिर से शादी की बात चलाएं?” मैं उनकी बात पर हामी भरती हुई बगीचे की ओर चली गई. वहां पड़े घुंघरुओं को उठाकर अपने दुपट्टे से उनकी धूल साफ़ करती हुई मैं कुछ सोच ही रही थी कि एक ट्रक की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा.
वह ट्रक हमारे घर के सीधे सामने रुका. कुछ ही देर में किसी का सामान उतरने लगा. शायद सामनेवाले दुबे अंकल के यहां कोई नया किराएदार आया था. उतरते सामानों में मेरी नज़र नटराज की एक जानी-पहचानी मूर्ति पर पड़ी, तो मैं बाकी सामानों को भी पैनी नज़रों से देखने लगी. तबला, हारमोनियम और म्यूज़िक सिस्टम देखकर मुझे बहुत कुछ याद आ ही रहा था कि एक वर्षों पुरानी जानी-पहचानी आवाज़ सुनाई दी.
“आराम से रखना भाई! सब सालों पुराना कीमती सामान है मेरा!” बालों में मोगरे के फूलों वाला गजरा लगाए, कॉटन की कलफ़ लगी हरी साड़ी में पद्मा टीचर थीं. मैं नंगे पैर ही उनकी ओर दौड़ पड़ी. उनके पैर छूती हुई, सीधे उनके गले लग गई.
“कौन हो बेटी तुम? माफ़ करना, मैंने तुम्हें नहीं पहचाना.” वे अपने चश्मे को उतार कर अपने पल्लू से साफ करती हुई बोलीं. मेरी आंखें सजल हो गईं. मैं उन्हें एकटक देखती रही. बढ़ती हुई उम्र ने उनके चेहरे की झुर्रियां और बालों की स़फेदी बढ़ा दी थी. लेकिन उनके चेहरे का तेज़ आज भी वैसा का वैसा ही था. बड़े से माथे पर चमकती मैरून बड़ी सी बिंदी, नाक में हीरे सी दमकती नग वाली लौंग और कानों में झूलते छोटे-छोटे झुमके उनके सांवले रंग को सुंदर सी रंगत दे रहे थे. कुछ देर ठहरकर उन्हें देखने के बाद मैं उनकी हथेली पकड़कर बोली, “टीचर मैं…आपकी अनु, अनुश्री… याद है आपको, हमारे पास आपकी ऊंची फीस देने के पैसे नहीं थे. फिर आपने मुझे कम से कम फीस में बड़ी लगन से नृत्य सिखाया था.” 


“अरेे हां, याद आया, तुझे देखकर मुझे अपना बचपन याद आता था. क्या लचक थी तेरे नृत्य में. उसके बाद भी तेरी मां ने तेरा डांस सीखना छुड़वा दिया था.”
“जी टीचर, लेकिन जैसे ही मैं बड़ी हुई आपके पास आने का मन हुआ, पर तब तक आप उरई छोड़कर चली गई थीं. आप कहां थीं इतने सालों तक?”
“लखनऊ में एक बड़े स्कूल में डांस टीचर का जॉब मिल गया था. बस वहीं रहकर बच्चों को डांस सिखा रही थी.”
“पर यहां तो आपकी डांस क्लास बढ़िया चलती थी, फिर आप लखनऊ क्यों गईं?”
“एक स्वतंत्र विचारों वाली महिला का छोटे शहरों में रहना इतना आसान नहीं होता. शादीशुदा न होने के कारण यहां की महिलाएं न जाने मुझ पर कैसे-कैसे आक्षेप लगातीं थीं. यहां के लोग मेरी कला को समझ ही नहीं सके, इसलिए मैं लखनऊ चली गई. अब पता है नृत्य के बड़े-बड़े सम्मान मेरे नाम हैं. शाम तक देखना मेरे आने की ख़बर सुनकर सारे मीडिया वाले यहीं भागे आएंगे.”
“पर आप यहां किराए के घर पर क्यों रह रही हैं?”
“मेरा अपना बड़ा सा मकान बन रहा है. अभी उसे तैयार होने में एक माह और लग जाएगा, बस तब तक यहां हूं. फिर अपने बंगले में रहूंगी ठाठ से. यह शहर भी देखेगा कि जिस प्रतिभा का उन्होंने निरादर किया था, उसी प्रतिभा के बल पर मैंने अपना और अपने इस छोटे से शहर का नाम रोशन कर दिया.” वे हंसते हुए बोलीं. मेरे सिर पर हाथ फिराती हुई अंदर चली गईं.
शाम होते-होते उनका घर मीडियावालों से भर गया. तमाम पत्रकार उनकी एक झलक और इंटरव्यू लेने के लिए होड़ लगाने लगे. धीरे-धीरे उनके आने की ख़बर पूरे शहर में फैल गई. तमाम संगीत प्रेमी उनके घर आने-जाने लगे. जब मेरी मां को उनकी ख्याति के बारे में पता चला, तो वे भी हैरान रह गईं. ऐसे ही कुछ दिन बीते गए.
यहां मां ने कुणाल से मेरी शादी तय कर दी. तभी एक दिन पद्मा टीचर ने मुझे और मेरी मां को अपने घर बुलाया. मां पड़ोसी धर्म निभाने के हिसाब से बेमन से मेरे साथ उनके घर गईं.
घर की दीवारों के चारों तरफ़ सम्मान पत्र लगे थे. बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियों के साथ लगी उनकी तस्वीरें उनकी कामयाबी साफ़ बयां कर रही थीं. उनके आगे-पीछे नौकर घूम रहे थे. इतनी बड़ी हस्ती होने के बावजूद वे हमसे बड़ी विन्रमता से मिलीं. मां उनकी आत्मीयता देखकर गदगद हो गईं. कुछ औपचारिकताओं के बाद वे सीधे सवाल पर आईं, “अनुश्री, फिर तुमने आगे डांस करना ज़ारी रखा कि नहीं?”
मैं उनके इस सवाल पर मौन हो गई, तो मां बोलीं, “जी, बहुत बड़ी डांस क्लास चलती थी इसकी. लेकिन अब अनु की शादी होनेवाली है, इसलिए अब इसका डांस में मन नहीं रमता.”
“बहनजी, आप ग़लत कह रही हैं. जिसका मन नृत्य में एक बार रम गया न, उसका फिर और किसी चीज़ में मन नहीं रमता. दुनिया चाहे एक नृत्य प्रेमी के पैरों में कितनी ही ज़ंजीरें क्यों न बांध दे, पर जब ताल और थाप की ध्वनियां उसके कानों में पड़ती हैं, तो उसके पैरों की सारी ज़ंजीरें तोड़ देती हैं.”
“देखिए टीचर, आप मेरी बेटी को फिर से न बहकाएं. इसके बचपन में मेरी ही ग़लती थी जो मैंने इसे आपके पास भेजा. बचपन में बोया आपका वह बीज अब दरख़्त बनकर हमारी ज़मीन खोखली कर रहा था. जैसे-तैसे हमने उस दरख़्त को उखाड़ा है, अब कृपा करके इसके मन में वह बीज फिर से न बोएं.” यह कहती हुई मां मुझे वहां से ले आईं.


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पूरे दिन मां बेचैन रहीं. रात भर मां करवट बदलती रहीं. पद्मा टीचर ने आज जो सम्मान कमाया था, रह-रहकर वह उन्हें परेशान कर रहा था. दूसरे दिन कुणाल के घरवालों को आना था. उसी रोज़ पद्मा टीचर को अपने दूसरे मकान में शिफ्ट होना था. दोपहर पद्मा टीचर वहां से चली गईं. जाते हुए वे एक ख़त घर आकर दादी को दे गईं. मां कुणाल और उसके घरवालों के स्वागत की तैयारियों में व्यस्त थीं. कभी वे चाय के नए कप निकालतीं, तो कभी वे सोफे पर नए कवर बिछा देतीं.
रसोई में जाकर वे खाने-पीने की तैयारी करने लगीं, तो मैं भी उनका हाथ बंटाने लगी. “महिलाएं ही अगर नारी हक़ की बात करना छोड़ देंगी, तो कौन आगे बढ़कर उनके हक़ की बात करेगा. बिटिया को ब्याहने तक ही मां की ज़िम्मेदारी होती है क्या? किसी भी प्रतिभा का दरख़्त कभी भी किसी ज़मीन को खोखला नहीं करता. उसे कितना भी उखाड़ कर फेंक दो, उसकी जड़ें नहीं उखड़ा करतीं, वे बार-बार निकल आती हैं. अगर ब्याह के बाद अनुश्री की जड़ें फिर फूट पड़ें, तो आप लोग क्या करोगी?” दादी अपने हाथ में पकड़े पद्मा टीचर की लिखी चिट्ठी पढ़े जा रही थीं.
“जैसे अन्य कलाएं हैं, वैसा ही नृत्य भी एक कला है. जो लोग इस कला को हेय दृष्टि से देखते हैं, मैंने इस शहर के ऐसे कितने ही लोगों के मुंह पर ताले लगा दिए. लेकिन फिर भी अगर मैं अपनी ही किसी स्टूडेंट की मां के नज़रिए को नृत्य के प्रति नहीं बदल पाई, तो मैं जीवनभर स्वयं को हारा हुआ महससूस करूंगी, क्योंकि जब एक गुरु की शिष्या हारती है, तो गुरु भी हार जाता है. मेरा विन्रम निवेदन है कि आप अपने बेटी की प्रतिभा को समझें. उसकी ऐसे घर पर शादी न करें, जहां वह अपनी प्रतिभा को मारकर जीए.
मैंने जीवनभर अविवाहित रहकर अनुश्री जैसी आनेवाली भविष्य की प्रतिभाओं के लिए ही ख़ुद को तपाया है. मेरा त्याग जाया न जाने दें… वैसे मेरा आप सबके जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई हक़ नहीं, पर अनु की एक सहेली तनु ने जब मुझे उसके बारे में सब बताया, तो मैं यह ख़त लिखने से ख़ुद को नहीं रोक सकी. यदि मेरी लिखी कोई बात आपको ग़लत लगी हो, तो मुझे क्षमा कर दें. यदि मेरी लिखी एक बात भी आपको सही लगी हो, तो इस रिश्ते के लिए बिना किसी संकोच के ना कह दें.
अनुश्री की पद्मा टीचर     
ख़त पढ़ते-पढ़ते दादी रो पड़ीं. मां के अंदर भी कुछ पिघलने सा लगा. दो पल सोचते हुए मां ने कुणाल के घर फोन लगाते हुए कहा, “माफ़ कीजिए, आप लोग यहां न आएं. अनु की शादी मैं ऐसे घर में अब नहीं करना चाहती, जहां उसकी प्रतिभा की कद्र न हो. मेरी बेटी नौकरी करे या न करे, वह शादी करे या न करे, पर वह डांस ज़रूर करेगी.” मां की बात सुनते हुए मैं ख़ुशी से रो पड़ी.

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