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फिल्म समीक्षा: भूल भुलैया 3 और सिंघम अगेन दिवाली पर डबल धमाका, पर उतनी चकाचौंध नहीं कर पाई (Movie Review: Bhool Bhulaiyaa 3 & Singham Again)

भूल भुलैया जब अक्षय कुमार को लेकर बनी थी, तब इस फिल्म का अंदाज़ वाकई अलग और लाजवाब रहा था. लेकिन जैसे-जैसे इसकी कड़ियां बनने लगीं, वैसे-वैसे इसकी चमक भी फीकी पड़ने लगी. भूल भुलैया २ ठीक थी पर ३ तक आते-आते बहुत कुछ बदल गया.
मंजुलिका बनी विद्या बालन की इतने सालों बाद एंट्री सुकून देती है, वहीं माधुरी दीक्षित का ग्रे शेड प्रभावित करता है. रूह बाबा बने कार्तिक आर्यन अपने अभिनय और कॉमिक पंचेज से लुभाते ज़रूर हैं.
बंगाल की रक्तोघाट के शाही महल में हुई महिला की जलकर मौत कई रहस्य को जन्म देती है. आख़िर राजा ने क्यों उसे ज़िंदा जला दिया. मजुलिका की आत्मा भूत बनकर भटक रही है और 200 साल से शाही परिवार को अभाव वाली ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर रही है.


ऐसे में राजघराने की मीरा, तृप्ति डिमरी रूह बाबा को पैसों की लालच देकर मंजुलिका से छुटकारा दिलाने का योजना बनाती है. रूह बाबा बने कार्तिक आर्यन क्या मंजुलिका से हवेली के शाही परिवार को बचा पाते हैं, यही फिल्म का क्लाइमेक्स देखना दिलचस्प है. माधुरी दीक्षित विद्या बालन कार्तिक आर्यन से लेकर तृप्ति डिमरी, राजपाल यादव, विजय राज, अश्विनी कलसेकर, राजेश कुमार, संजय मिश्रा तक सभी ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.
कहने को तो फिल्म हॉरर कॉमेडी है. कई जगह पर डर ज़रूर बनाने में कामयाब रही है. लेकिन निर्देशक भटक भी गए हैं. पौने तीन घंटे की फिल्म कई जगह पर निराशा भी करती है. फिल्म की एडिटिंग होनी ज़रूरी थी. टी सीरीज के बैनर तले प्रीतम की म्यूज़िक ठीक-ठाक ही रही. गाने भी टाइटल सॉन्ग और हरे रामा हरे कृष्णा… को छोड़कर कोई ख़ास असरदार नहीं है. आकाश कौशिक की कहानी भी निराश करती है. निर्देशक अनीस बज़्मी अपनी पहले की फिल्मों की तरह उतना प्रभावित नहीं कर पाए. वैसे भी कमज़ोर पटकथा होने के कारण कलाकार और संगीतकार भी आख़िर क्या करें. लेकिन चूंकि दिवाली के मौक़े पर फिल्म रिलीज़ हुई है, तो इसका फ़ायदा फिल्म को ज़रूर होगा. छुट्टियां और त्योहार होने पर हर कोई मनोरंजन के लिए किसी भी तरह के फिल्म हो ज़रूर देख ही लेता‌ है. यदि आप डरावनी, कॉमेडी के शौकीन और कार्तिक के फैन है, तो देखना तो बनता ही है.


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तमाम सितारों से सजी 'सिंघम अगेन' धूम धड़ाका पेश करती है. अजय देवगन, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, करीना कपूर, टाइगर श्रॉफ, अर्जुन कपूर, जैकी श्रॉफ और स्पेशल एपीरियंस में अक्षय कुमार व सलमान खान से सजी यह फिल्म एक्शन से भरपूर है. जैसा कि निर्देशक रोहित शेट्टी की फिल्मों में होता रहा है. उस पर इसका ख़ास आकर्षण तक़रीबन नौ लेखकों की भीड़ भी रही है, इसके बावजूद फिल्म में कहानी के नाम पर मानो मनोरंजन किया गया है.


अर्जुन कपूर तथा जैकी श्रॉफ विलेन की भूमिका में थोड़े अटपटे भी लगते हैं, पर उन्हें भी क्या ख़ूब इस्तेमाल किया गया है. कश्मीर से शुरू हुई कहानी श्रीलंका तक जाती है. उस पर तुर्रा की फिल्म को रामायण से भी प्रभावित है. कैसे राम सीता जी को लाने के लिए लंका का दहन करते हैं. इसी तरह से बाजीराव सिंघम, अजय देवगन अपनी पत्नी करीना को खलनायक अर्जुन कपूर से छुड़ाने के लिए लड़ाई और रक्तपात करते हैं.
अजय देवगन, रोहित शेट्टी और ज्योति देशपांडे निर्मित 'सिंघम अगेन' रोहित की पहली की फिल्मों की तरह कमाल नहीं दिखा पाई. फिल्म में ज़बरदस्ती की बहुत सारी चीज़ें भरी गई हैं, जिन्हें अगर कम किया जा सकता, तो बात बन भी सकती थी.
शिव तांडव स्त्रोत, हनुमान चालीसा, श्लोकी रामायण का भी ख़ूब इस्तेमाल हुआ है फिल्म में. सिनेमैटोग्राफी अच्छी है. पर निर्देशन के तौर पर रोहित शेट्टी चूप गए.
माना स्टंट एक्शन और धूम धड़ाका करने में उन्हें महारत हासिल है, लेकिन इमोशंस के मामले में कमज़ोर ही पड़ते हैं. संगीत ठीक है, बैकग्राउंड म्यूज़िक असरदार है. हाई वोल्टेज एक्शन पसंद करने वाले एक बार फिल्म ज़रूर देख सकते हैं.


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Photo Courtesy: Social Media

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