आलोक के स्वार्थपूर्ण व्यवहार ने आज उसकी आंखें खोल दी थी. आज उसे एहसास हो रहा था कि इंसान का व्यवहार ही उसकी सुंदरता का सही मापदण्ड है. सुखी व शांतिपूर्ण दांपत्य जीवन के लिए जोड़ी का बहुत अच्छा दिखना ही काफ़ी नहीं होता, आपसी सांमजस्य व विचारों का मेल सर्वाधिक आवश्यक होता है.
"खून बहुत बह गया है डॉक्टर और देर हुई तो ये बच नहीं पाएंगे." मृणालिनी ने रुआंसे स्वर में गिड़गिड़ाते हुए कहा.
"आई एम सांरी, ऐक्सीडेंट केस है. पुलिस के आने तक मैं ये केस नहीं ले सकता." यह कहकर डॉक्टर तीव्रता से अपने कक्ष में चला गया.
उस बड़े से सरकारी अस्पताल के असीमित गलियारे में खड़ी मृणालिनी अपने आपको बेहद असहाय महसूस कर रही थी, 'मैडम' आवाज़ सुनकर वह चौंक गई. "आप डॉक्टर सक्सेना से बात करके देखिए, बहुत भले आदमी है. शायद आपकी कुछ मदद कर सकें. फ़िलहाल वह खाना खाने घर पर गए हुए हैं. यह रहा उनका फोन नंबर." अस्पताल की वह आया मृणालिनी के हाथ में एक पर्ची थमाकर चली गई.
इबते को मानो तिनके का सहारा मिल गया हो.
"हेलो डॉक्टर सक्सेना, देखिए एक बुज़ुर्ग हमारी कार से टकरा कर घायल हो गए हैं. वो बहुत तकलीफ़ में हैं. उनका खून भी काफ़ी बह गया है. कृपया, आप जल्दी अस्पताल आ जाएं."
निवेदन करते समय मृणालिनी को अन्देशा था कि डॉक्टर सक्सेना भी अपने अन्य सहकर्मियों की भांति एक दुर्घटना के केस को हाथ नहीं लगाएंगे, पर उनका जवाब सुनकर उसे सुखद आश्चर्य हुआ.
"आप घबराएं नहीं, मैं चंद पलों में वहां पहुंच रहा हूं. वे चंद पल मृणालिनी को युगों के समान प्रतीत हुए.
सामने से एक डॉक्टर को तेज कदमों से अपनी ओर आता देख वह उसी तरफ़ दौड़ी, पर आमना-सामना होते ही वह सकपका गई. यह तो अभिजीत है. अभिजीत ने भी मृणालिनी को पहचान लिया.
"आप यहां?" अमिजीत ने प्रश्न किया.
"जी..." मृणालिनी ने झुकी नज़रों से जवाब दिया, "जो बुज़ुर्ग हमारी ही कार से टकराकर…"
"ओह! कहां है वह?.. ऐक्सीडेंट कितनी देर पहले हुआ?"
"जी तक़रीबन एक घंटा पहले."
"कार आप चला रही थीं?" मरीज़ का परीक्षण करते हुए अभिजीत ने पूछा.
"जी नहीं, कोई और…"
"कोई और?" मृणालिनी के आसपास किसी को न पाकर अभिजीत ने उसे प्रश्नभरी नज़रों से देखा, पर कहा कुछ नहीं.
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मृणालिनी का दिल कर रहा था कि धरती फटे और वह उसमें समा जाए. आलोक पर उसे बेहद ग़ुस्सा आ रहा था. हवाई जहाज की तरह कार चलाता है और आज तो पी भी रखी थी. न लाल बत्ती देखी, न सड़क पार करते उस बूढ़े को. उसके तो होश उड़ गए थे, मगर आलोक ग़ुस्से से बिफर रहा था, "डैम दिस ओल्डमैन, जब चला नहीं जाता. तो घर से निकलते ही क्यों है?" उसके लाख कहने पर भी आलोक उस घायल बुज़ुर्ग को अस्पताल ले जाने को तैयार नहीं हुआ.
"डोट बी एन इडिएट, ऐसा तो रोज़ सड़कों पर होता है, वहीं रुके तो फंस जाएंगे चलो यहां से."
मृणालिनी ने दृढ़ता से मना किया, तो झुंझला कर वह उसे वहीं छोड़ गया. सड़क के बीचोंबीच उसका ऐसा रूप देखकर वह हतप्रभ रह गयी.
"चोट काफ़ी लगी है. यह आपने बहुत अच्छा किया, जो आप बिना डरे इन्हें यहां ले आई." फिर अभिजीत उस बुज़ुर्ग को मरहम पट्टी के लिए स्ट्रेचर पर अन्दर ले गए.
बाहर स्याह सर्द कोहरा छा रहा था. थकान से बेहाल मृणालिनी गलियारे में पड़ी बेंच पर बैठ कर अतीत की यादों में खो गई.
प्रोफेसर माथुर के घर में बहुत गहमागहमी थी, उनकी बड़ी बेटी मृणालिनी को देखने लड़केवाले आए हुए थे. लड़का डॉक्टर था और उसका परिवार उन्हीं की भाति मध्यमवर्गीय था. उन्हें पूर्ण विश्वास था कि मृणालिनी सबको पसंद आ जाएगी, और भला कौन नापसंद कर सकता था उसे? चमकदार निखरा रंग, पूर्णतः प्राकृतिक ताज़गी लिए हुए, घर के काम-काज व पढ़ाई-लिखाई में भी निपुण थी वह.
चाय की ट्रे हाथ में लिए जब वह बैठक में प्रविष्ट हुई, तो सब उसे देखते ही रह गए. हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में उसकी दूधिया रंगत और निखर आई थी. सुंदर चेहरा, घने केश, उसे देख ऐसा प्रतीत होता था मानो प्रयोगधर्मी ईश्वर ने उसे गढ़-तराश कर सुंदरता पर एक प्रयोग किया हो. मृणालिनी को सबकी सकारात्मक दृष्टि का आभास हो गया था. पर चाय थमाते हुए जब उसने लड़के को देखा, तो उसे एक धक्का सा लगा. सांवली रंगत, चौड़ा प्रशस्त ललाट, चौड़ी नाक व साधाराण कद-काठी का वह लड़का उसके सपनों का राजकुमार नहीं था.
उसके सपनों राजकुमार, जिसकी उसने अपनी कल्पना से एक छवि भी बना डाली थी. लंबा कद, गठीला बदन, तीखे नैन-नक़्श, आकर्षक व्यक्तित्व के राजकुमार का ख़्वाब देखा या उसने. वह बुझे मन से नाश्ता परोसने लगी. बड़ों के आग्रह पर वे दोनों बाहर बगीचे में घूमने गए. अभिजीत के कहे शब्द उसे अब तक याद है, "देखिए, आप कोई निर्णय लें, उससे पहले में आपको एक सच्चाई से अवगत कराना चाहता हूं. मैं एक सरकारी डॉक्टर हूं. आय सीमित है. बहुत ऐश्वर्यपूर्ण जीवन का वादा तो नहीं कर सकता, पर आपको सब सुख देने का प्रयत्न ज़रूर करूंगा. आपकी भावनाओं का सम्मान करूंगा." मृणालिनी बात आगे बढ़ाने की इच्छुक नहीं थी, सो चुप्पी साधे रही.
पिताजी को पता चला, तो उन्होंने उसे शांत स्वर में समझाने का प्रयास किया, "लड़का मेहनती, स्पष्टवादी व सरल है. बेहद सभ्य लोग हैं. बहुत देखभाल कर ही बुलाया था उन्हें यहां. क्या कमी है लड़के में?"
"कुछ ख़ास भी तो नहीं है." मृणालिनी का जवाब सुन मां ग़ुस्से से बिफर पड़ी, पर वह टस से मस न हुई.
कैसे त्याग देती वह अपने सपनों को? बात एक-दो दिन की नहीं, बल्कि जीवनभर की थी.
"गुज़र-बसर उसे करनी है, इस निर्णय में उसकी रज़ामंदी बहुत ज़रूरी है. रहने दो." यह कहकर पिताजी ने मां को शांत करा दिया. जीवन पुनः सामान्य गति से चलने लगा.
फिर एक दिन मृणालिनी की मुलाक़ात आलोक से हुई. आलोक को देखकर उसे लगा मानो उसका सपना साकार हो गया हो. राजकुमारों सी शक्ल-सूरत और वैसा ही रहन-सहन. पहली मुलाक़ात ही मृणालिनी को प्रभावित कर गई. गज़ब का आकर्षण या आलोक में. आलोक को भी अपनी ओर प्रशंसा भरी नज़रों से देखते हुए वह सकुचा गई. कितनी अच्छी लगेगी उसकी और आलोक की जोड़ी. उसका मन सपने बुनने लगा और आज आलोक के आग्रह पर वह उससे मिलने गई. वह उसे शहर के नामी डिस्कोथेक ले गया. वहां की साज-सज्जा और चमक-दमक देख मृणालिनी की आंखें चुंधिया गई, उसे यूं विस्मित देख आलोक को बेहद ख़ुशी हो रही थी. सबको धन-दौलत की चमक-दमक से अंचभित कर देना उसे बहुत भाता था. ज़ोरों से बजता पार्श्व संगीत, रंगीन रोशनियों में नहाए थिरकते बदन, शराब की गंध…
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मृणालिनी का दम घुटने लगा. पर उसकी मनोस्थिति से अनभिज्ञ आलोक बहुत जोश में था. वह शायद ऐसे माहौल का आदी था. शराब के नशे में आलोक के कदम डगमगाने लगे. आज उसकी आंखों में मृणालिनी को प्यार नहीं, वहशीपन नज़र आया. वह सहम गई. उसके अन्दर कुछ टूट सा गया, मानो उसके इंद्रधनुषी सपनों पर काली स्याही के छींटें पड़ गए हो.
वापसी में आलोक कार बहुत तेजी से चला रहा था. उसने धीरे चलाने का अनुरोध किया, तो वह ढिठाई से हंसते हुए बोला, "ऑपल एस्ट्रा है, कोई बेलगाड़ी नहीं. वैसे भी धीरे चलना, पीछे रह जाना मेरी फितरत में नहीं है. थोड़े दिनों में तुम्हें भी आदत पड़ जाएगी." फिर यकायक वह बूढ़ा सामने आ गया.
"वो अब बात करने की स्थिति में हैं." डॉ. अभिजीत की आवाज़ उसे वर्तमान में खींच लाई.
"मैंने उनके घरवालो को भी ख़बर कर दी है. आप परेशान न हों, मैं सब संभाल लूंगा. रात काफ़ी हो चुकी है. चलिए, मैं आपको घर तक छोड़ देता हूं."
सारी रात मृणालिनी सो न सकी. रह-रहकर अभिजीत का चेहरा आंखों के आगे घूमता रहा. तन्मयता से मरीज़ों को देखते हुए, उन्हें शांत स्वर में इलाज के बारे में बताते हुए… सच, कितनी विनम्रता और धैर्य झलकता था उनके मुख पर. कितनी परिपक्व सोच थी उनकी. कितनी गहराई थी उनके चरित्र में और कितना अपनापन था अभिजीत के व्यवहार में. आलोक के स्वार्थपूर्ण व्यवहार ने आज उसकी आंखें खोल दी थी. आज उसे एहसास हो रहा था कि इंसान का व्यवहार ही उसकी सुंदरता का सही मापदण्ड है. सुखी व शांतिपूर्ण दांपत्य जीवन के लिए जोड़ी का बहुत अच्छा दिखना ही काफ़ी नहीं होता, आपसी सांमजस्य व विचारों का मेल सर्वाधिक आवश्यक होता है. काश कि उसने अभिजीत के शादी के प्रस्ताव को ठुकराने की मूर्खता न की होती! पर अब क्या हो सकता था? हालांकि अभिजीत ने बीती बातों पर कोई मलाल ज़ाहिर नहीं किया था, पर अब वे उसे जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करेंगे, ऐसी आशा करना भी व्यर्थ था. खैर जो भी हो, अब उसने फ़ैसला कर लिया था कि वह आलोक से शादी हरगिज़ नहीं करेगी.
अगली सुबह मृणालिनी ने अस्पताल जाकर उस बुज़ुर्ग के परिवार से भी माफ़ी मांगी. उनके इलाज का ख़र्च देकर वह निकल ही रही थी कि अभिजीत से सामना हो गया.
"आप, इतनी सुबह यहां!"
"जी, मैं उन बुज़ुर्ग से मिलने आई थी."
"बहुत अच्छा किया आपने." अभिजीत ने उसे प्रशंसा भरी नज़रों से देखते हुए कहा.
"बहुत कम लोग अपनी ग़लती स्वीकार करने की हिम्मत रखते है."
"ग़लती तो मैंने कुछ समय पहले एक और की थी, पर उसके लिए मुझे आपसे माफ़ी मांगनी है." मृणालिनी ने धीमे स्वर में कहा.
"ग़लती कैसी?" अभिजीत ने मुस्कुराते हुए कहा.
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"हर इंसान को इतनी स्वतंत्रता तो होनी ही चाहिए कि वह अपनी ज़िंदगी के कुछ अहम् फ़ैसले ख़ुद कर सकें, शायद मैं…"
"नहीं, आप बहुत अच्छे हैं." मृणालिनी ने बात काटते हुए कहा, "मैं ही आपको पहचान नहीं पाई."
कुछ क्षण यूं ही बिना कुछ कहे बीत गए, फिर अभिजीत ने उसे निहारते हुए प्रश्न किया, "और अब?"
मृणालिनी के चेहरे की सुर्ख रंगत से उसे जवाब मिल गया.
- मधु गुप्ता
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