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कहानी- तू मेरा चांद… (Short Story- Tu Mera Chand…)

बेटी की बात सुनकर मां वात्सल्य से भर उठी और हंस के बोली, "अच्छा बाबा! रह लेना, लेकिन आज सुबह तो तुमने नाश्ता कर लिया, इसलिए अगली बार जब फिर चौथ आए तब तुम भी व्रत रहना ठीक है."

करवाचौथ का दिन था, रसोई पकवानों से महक रही थी. घर में, आस-पड़ोस में बेहद रौनक़ थी. तभी एक छोटी सी बच्ची के मन में यह सब देख कई सवाल आए और वो अपनी जिज्ञासावश मां से बड़ी मासूमियत से बोली, "मां… मां आज क्या है?" 
मां- बेटी, आज करवा चौथ है.
बेटी- मां ये करवा चौथ क्या होता है?
मां- ये एक व्रत होता है, जिसमें बिना कुछ खाए-पीए, तब तक रहना होता है, जब तक की आसमान में चांद न दिखने लगे.
बेटी- ओह! ये तो बहुत कठिन है मां!
मां- हां, कठिन तो है.
बेटी- मां, मुझे भी रहना है.
मां- अरे, पगली ये व्रत शादीशुदा लड़कियां रहती हैं. जब तेरी शादी हो जाए, तो तू भी रहना मेरे दामाद के लिए, ठीक है.

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बेटी- मां, आप कितने सारे व्रत करती हैं, कभी पापा के लिए, कभी मेरे लिए, कभी घर की ख़ुशहाली के लिए. आज आपके लिए मैं व्रत करूंगी, क्योंकि इतना कठिन व्रत अगर किसी के लिए रहना चाहिए, तो वो है मां यानी आप. इसलिए आपके लिए मैं रखूंगी यह व्रत.
बेटी की बात सुनकर मां वात्सल्य से भर उठी और हंस के बोली, "अच्छा बाबा! रह लेना, लेकिन आज सुबह तो तुमने नाश्ता कर लिया, इसलिए अगली बार जब फिर चौथ आए तब तुम भी व्रत रहना ठीक है."
 दोनों की बीच संवाद यहीं ख़त्म हुआ. मां रात की पूजा की तैयारियों में लग गई.
देखते-देखते शाम और फिर रात हो गई. चांद हमेशा की तरह इस बार भी भाव खा रहा था. आस-पड़ोस की सुहागिन सब उसके इंतज़ार में थीं.
तभी  बेटी आई और बोली, "मां, चांद कब आएगा?"
मां, "आ जाएगा बेटी! तू परेशान मत हो."
बेटी बड़ी मासूमियत से बोली, "मां, मुझे ज़ोरों की भूख लगी है. दरअसल, मै आपके लिए व्रत हूं, मैंने सुबह के नाश्ते के बाद कुछ नहीं खाया. नाश्ते के बाद से मैं भी व्रत हूं."


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मां आश्चर्य में पड़ गई और छलनी उठा उसे निहारते हुए बोली, "तेरी मां ही तेरा चांद है. मुझे देख और जल्दी से कुछ खा लो बेटा."
तभी छलनी के इस पार मां और उस पार बेटी थी. मां की आंखों से अपनी चांद सी बेटी को  अर्घ्य देने के लिए‌ आंसू गिर रहे थे.
तभी एक पड़ोसी महिला उनसे बोली, "अरे, ये क्या कर रही हैं आप? इस छलनी से चांद के पहले किसी को नहीं देखा जाता. पति को भी चांद देखने के बाद ही देखते हैं छलनी से.


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मां मन ही मन मुस्कुराई और सोचने लगी मेरे इस चांद (मेरी बेटी) से पवित्र और भला कौन सा चांद होगा.
तभी चांद आसमान पर उतर आया जैसे वो भी इस दुर्लभ और मनोहर दृश्य की तस्वीर निकालना चाहता हो.

पूर्ति खरे


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Photo Courtesy: Freepik

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