'मेट्रो इन दिनों' और 'इमरजेंसी' में अनुपम खेर अभिनय की एक अलग ऊंचाई को छूते हुए नज़र आएंगे. आइए उनसे जुड़ी कही-अनकही बातों को जानते हैं.
- मैं तो पैदा होते ही डिमांड में था, जब नर्स ने मेरी मां से कहा- मेरे बच्चे नहीं है, क्या मैं आपके बच्चे को गोद ले सकती हूं.
- ज़िंदगी में कब-क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. कुछ साल पहले मैं टीवी शो में निर्माता के तौर पर जुड़ा, जिसमें काफ़ी नुक़सान हुआ. इसी बीच फेशियल पैरालिसिस भी हो गया. डॉक्टर ने दो महीने आराम करने के लिए कहा. लेकिन आर्थिक परेशानियां और काम का जुनून के चलते अलग फ़ैसला लिया. उन्हीं दिनों सूरज बड़जात्या को अपनी बीमारी के बारे में बताया और उनकी फिल्म की शूटिंग की. मेरा यह सोचना था कि अब काम से दूर हुआ, तो डर कर जीवन बिताना होगा.
- सूरज जी की ‘हम आपके हैं कौन’ के समय फेशियल पैरालिसिस होने के कारण ही मेरे सभी लॉन्ग शॉट्स लिए गए थे. फिल्म में मेरा एक भी क्लोज शॉट्स नहीं था.
- ज़िंदगी का हर पल ख़ास रहता है और उसमें रास्ते छुपे रहते हैं. हमें थमना नहीं चाहिए. हर चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए.
- अपनी ज़िंदगी की नाकामयाबियों से प्रेरित होकर मैंने एक नाटक लिखा 'कुछ भी हो सकता है' जिसे लोगों ने इतना पसंद किया कि क़रीब दस साल में मैंने इसके तीन सौ से अधिक शोज़ किए.
- जब ईश्वर आपको कुछ बनाता है, तो आपकी भी ज़िम्मेदारी बनती है कि आप समाज में जागरूकता लाएं. जब माता-पिता बुज़ुर्ग हो जाते हैं, तो उनको सुनना बहुत ज़रूरी होता है. हम उनके अनुभव से काफ़ी कुछ सीख सकते हैं. ऐसा नहीं कि उनकी इच्छाएं ख़त्म हो जाती हैं, बल्कि उनके प्रति हमारी ज़िम्मेदारी काफ़ी बढ़ जाती है.
- मां के लिए उसके बेटे से बढ़कर कोई स्टार नहीं होता. मां मुझे बहुत प्यार करती हैं, उनसे मुझे प्रेरणा और शक्ति मिलती है. एक बार मैं महेश भट्ट के घर मां को लेकर गया था. उन्होंने कहा कि आपके बेटे को हमने स्टार बना दिया. तब मां ने मुस्कुराते हुए कहा कि कुछ तो मेरे बेटे में बात रही होगी, तभी तो आपने उसे लिया था.
- देखा जाए तो हमारी ज़िंदगी का नब्बे प्रतिशत हिस्सा एकरस ही होता है, केवल दस प्रतिशत में ही रोमांच रहता है. कुछ क़िरदार ऐसे होते हैं, जो लोगों को प्रभावित करते हैं और नई छाप छोड़ते हैं.
- नए निर्देशक अपने साथ कुछ कर गुज़रने का जज़्बा और जुनून लेकर आते हैं और उनके साथ काम करने का अपना ही मज़ा होता है. आदित्य चोपड़ा, दीपाकर बनर्जी, करण जौहर, नीरज पांडे, अयान मुखर्जी ऐसे तमाम लोग रहें, जिनकी पहली फिल्म में मैंने काम किया और उनके लिए लकी भी रहा. इस कारण भी मुझे फिल्म इंडस्ट्री में पहली फिल्म करनेवालों के लिए लकी मैस्कॉट कहा जाने लगा.
- मैं किसी भी तरह का दिखावा या किसी और की तरह बनने की कभी कोशिश नहीं की. मुझे लगता है, जो मैं हूं वह अच्छा हूं और मुझे वैसे ही अपने आपको दिखाना है.
अनुपम खेर की दो-चार लाइना भी बेहद मशहूर और अर्थपूर्ण हैं, उन पर एक नज़र...
- ऊषा गुप्ता
Photo Courtesy: Social Media
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