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पहला अफेयर- बूंदों की सरगम… (Love Story- Boondon Ki Sargam)

हल्की सी बूंदाबांदी शुरू हो गई. वह बूंदों की सरगम पर फिर गुनगुनाने लगी. उसका आसमानी दुपट्टा हवा से लहरा कर मुझे छू जाता, तो मन के साथ तन भी सिहर जाता. रातभर मेरे सपनों में एक नीला रंग आसमान से झर कर मेरे वजूद में समाता रहा.

बारिश की पहली फुहार के साथ ही मन की भिगी मिट्टी से यादों के न जाने कितने अंकुर फूट आते हैं, जाने कितने एहसास जाग जाते हैं. तृप्त करने वाले अनुभवों से मुक्त होने की कामना करता मन आकाश की ओर ताकता है.
बरखा जो प्रिय की बांहों का भीगा सा एहसास ले आती है अपने साथ.
मैं भी पिछले पंद्रह सालों से हर बारिश में किसी की यादों में खो जाता हूं. बूंदें सरगम बनकर उसकी कहानी कानों में गुनगुनाने लगती हैं और मैं आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादलों को तकते हुए उस कहानी को बूंद-बूंद ख़ुद में समाता रहता हूं जैसे तृप्त धरती बारिश की बूंदों को अपने में समाहित कर लेती हैे.


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तेईस साल पहले काम और परिवार के तनावों से थोड़ी देर तक मुक्त रहने के लिए मैं नैनीताल चला गया था. नैनी झील के पास की एक पहाड़ी पर बने छोटे से होटल में ठहरा था मैं, क्योंकि मैं एकदम शांति में रहना चाहता था. जून का महीना था. वहां मौसम अच्छा था, न सर्दी न गर्मी. मैं सुबह नाश्ता करने के बाद आसपास की हरीभरी पहाड़ियों पर पैदल ही घूमने निकल जाता. कभी किसी हरे पेड़ के नीचे शांति से घंटों बैठा रहता.
तीसरे-चौथे दिन हल्की बारिश होने लगी और मौसम ठंडा हो गया. अगले दिन बारिश थोड़ी तेज थी. मैं गर्म चाय का कप लेकर गैलरी में खड़ा हो कर भीगती वादियों के सौंदर्य को निहारने लगा. अचानक बूंदों की सरगम के बीच किसी सुरीली आवाज़ ने कानों में रस घोल दिया. मैंने इधर-उधर देखा. कोने वाले कमरे की गैलरी में एक लड़की खड़ी थी. वही गुनगुना रही थी एक पुराना रूमानी सा गीत.

हल्के हरे रंग का कढ़ाई वाला सूट पहने वह ख़ुद उन हसीन वादियों का एक हिस्सा लग रही थी. उसने हथेली गैलरी के बाहर फैला दी. उसकी हथेली पर बारिश की बूंदें सरगम बजाने लगी. हल्का सा कोहरा पेड़ों की फुनगियों पर उतर आया था और इस सुरमई शाम के रहस्यमयी परिवेश में वह बादलों से उतरी कोई परी सी लग रही थी, जो सबसे बेख़बर अपने में मगन हो गुनगुनाती जा रही थी.
मैं आंखें बंद कर उसके सुरों में खो सा गया. कितनी मीठी थी उसकी आवाज़ जो बूंदों की सरगम पर बड़ा दिलकश रूमानी गीत गुनगुना रही थी.
कुछ देर बाद उसका ध्यान मेरी तरफ़ गया, तो वह झेंप कर चुप हो गई. मैंने उसे कहा कि वह बहुत अच्छा गाती है, तो उसके नमकीन चेहरे पर बड़ी मीठी मुस्कुराहट आ गई. हम औपचारिक बातें करने लगे. पता चला वह अपनी मां के साथ नैनीताल घूमने आई है, लेकिन आज उसकी मां को बुखार लग रहा है, तो दोनों कमरे में ही थीं.


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दूसरे दिन बारिश रुक गई. मैं ज़रा टहलने निकल ही रहा था कि अचानक वह सामने आई और पूछने लगी कि क्या मैं मार्केट की तरफ़ जा रहा हूं. मेरे हां कहने पर बोली कि मां की दवाइयां और एक-दो ज़रूरी चीज़ें लेनी है, तो क्या वो मेरे साथ चल सकती हैै. मुझे भला क्या ऐतराज़ हो सकता था.
हम मेह में भिगी सड़कों पर चलते हुए नैनी झील के पार बने मार्केट में पहुंचे. उसने मेडिकल स्टोर से अपना सामान लिया और वापस आ गई. रास्ते में गरम-गरम भुट्टे सिंक रहे थे. हम ठंडी वादियों में गरम भुट्टे खाते हुए धीमे कदमों से लौट रहे थे.


जाने क्या कशिश थी उसमें या वो उम्र ही ऐसी थी कि दिल बरबस मेरे हाथ से निकलता जा रहा था. शायद पहली नज़र का प्यार हो गया था मुझे. लग रहा था कि ये रास्ता कभी ख़त्म ही न हो और वो बस मेरे साथ उम्रभर उस भिगी सड़क पर चलती रहे.
हल्की सी बूंदाबांदी शुरू हो गई. वह बूंदों की सरगम पर फिर गुनगुनाने लगी. उसका आसमानी दुपट्टा हवा से लहरा कर मुझे छू जाता, तो मन के साथ तन भी सिहर जाता. रातभर मेरे सपनों में एक नीला रंग आसमान से झर कर मेरे वजूद में समाता रहा.


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दूसरे दिन मैं मुक्तेश्‍वर निकल गया और देर हो जाने और तेज बारिश के कारण वहीं रुकना पड़ा. तीसरे दिन जब आया, तो वह जा चुकी थी. मैं उसका फोन नंबर लेना भी भूल गया. उसी दिन रात में मैं भी लौट गया. बूंदों की सरगम में भिगी वो शाम मेरी पूरी उम्र पर हावी हो गई. आज भी जब भी बारिश होती है ऐसा लगता है वो मेरे बहुत क़रीब ही कहीं एक रूमानी गीत गुनगुना रही है.

- विनीता राहुरीकर

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Photo Courtesy: Freepik

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