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कहानी- उसे उड़ने दो… (Short Story- Usse Udne Do…)

"भाईसाहब, काश की मैं उस समय अपनी बात पर अडिग रह पाती, तो आज मेरा प्रेस रिपोटर बनने का सपना शायद पूरा हो गया होता. पर नहीं आप सबकी ज़िद के चलते मैं हार गई. लड़कियों पर सिर्फ़ टीचर, नर्स जैसे काम ही अच्छे लगते हैं, शादी करना जीवन में सबसे अहम है, बिना पति और बिन बच्चों के एक स्त्री का जीवन बेकार है… यही सब कहते थे न आप लोग मुझसे…"

निशा ने शादी के लिए आए इस छठे रिश्ते को भी ना कहा, तो उसकी मां सौदामिनी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया.
"यह सब आपकी लाडली बहन सीमा के कारण हो रहा है. उन्होंने ही निशा के दिमाग़ में शादी न करने की बात डाली है…" सौदामिनी ने अख़बार पढ़ रहे निशा के पापा धीरज जी से कहा.
"दुनियाभर की ख़बरें पढ़ लेना, लेकिन घर में क्या चल रहा है इसकी ख़बर कभी मत लेना…" सौदामिनी फिर बड़बड़ाई.
आख़िरकार धीरज जी अख़बार समेट कर ग़ुस्से में वहां से उठकर चले गए. बेटी निशा और बहन सीमा पर उन्हें भी ग़ुस्सा आ रहा था. कितने अच्छे-अच्छे रिश्ते उनके हाथों से यूं ही निकलते जा रहे थे, पर निशा की ज़िद के आगे वे भला क्या कर सकते हैं?


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रुआंसी निशा मां का लगातार बड़बड़ाना सुन रही थी. उसे सीमा बुआ के लिए निकल रहे मां के कड़वे शब्द परेशान कर रहे थे. निशा को कोई नहीं समझता था सिवाय सीमा बुआ के. वो जब भी परेशान होती उन्हीं से बात करके मन को हल्का कर लेती. आज भी उसने मन भारी होने पर सीमा बुआ को ही कॉल किया. बुआ ने मोबाइल की स्क्रीन पर निशा नाम देखते हुए चहककर कॉल रिसीव किया, "हेलो नीशू, कैसी है मेरी बच्ची?"
"बुआ, मम्मी-पापा मुझे क्यों नहीं समझ रहे हैं?" निशा ने उदास स्वर में कहा.
"मतलब फिर से उन्होंने तेरी शादी की बात छेड़ दी." बुआ ने बिन कहे निशा की परेशानी कह डाली.
"हा़ बुआ, और इस बार तो वे मेरा सारा दोष आप पर मढ़ रहे हैं. उन्हें लगता है कि आप मुझे शादी न करने के लिए भड़का रही हैं."
"तू फ़िक्र न कर, कल ही मैं लखनऊ का टिकट करा के जल्द तेरे पास आती हूं. इस बार आमने-समाने बैठकर भाईसाहब-भाभी को समझाऊंगी."


अगले ही हफ़्ते सीमा बुआ घर आईं, तो दूरी का लिहाज कर रही बहस आज छिड़ ही गई. बेमन से सीमा बुआ का स्वागत हुआ और उसके बाद निशा की बात चलते ही सौदामिनी के भीतर का गुबार फूट पड़ा, "सीमा दीदी, आप हमारे परिवारिक मुद्दों में दख़लअंदाज़ी करना बंद करें, प्लीज़."
"भाभी, परिवारिक मुद्दा मतलब, मैं अब इस परिवार की कुछ भी नहीं?" सीमा ने धीमे स्वर में कहा व, तो इस बार धीरज बोले, "सीमा, माना तुम हमारी छोटी बहन हो, निशा की बुआ हो, पर इस रिश्ते का तुम फ़ायदा मत उठाओ. तुमने हमारी बच्ची के दिमाग़ में बिल्कुल वही बातें डाल दी हैं, जो कभी तुम ख़ुद किया करती थीं. यह बात हम कहां तक बर्दाश्त करें?"


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"भाईसाहब, काश की मैं उस समय अपनी बात पर अडिग रह पाती, तो आज मेरा प्रेस रिपोटर बनने का सपना शायद पूरा हो गया होता. पर नहीं आप सबकी ज़िद के चलते मैं हार गई. लड़कियों पर सिर्फ़ टीचर, नर्स जैसे काम ही अच्छे लगते हैं, शादी करना जीवन में सबसे अहम है, बिना पति और बिन बच्चों के एक स्त्री का जीवन बेकार है… यही सब कहते थे न आप लोग मुझसे…"
मेरे साथ जो हुआ, सो हुआ, पर निशा के साथ अब मैं ग़लत नहीं होने दूंगी, उसका पायलट बनने का सपना सच होगा."
"दीदी, हम कौन सा उसके सपने के आड़े आ रहे हैं. सपने शादी के बाद भी पूरे हो सकते हैं, तो फिर शादी से परहेज़ क्यों?" कुछ तल्ख़ आवाज़ में सौदामिनी बोलीं.
"भाभी, अगर समझदार पति और ससुराल मिला तब तो ठीक है, पर अगर ग़लत सोच वाले लोग मिल गए तब? निशा शादी करना नहीं चाहती, तो उससे ज़बरदस्ती क्यों कर रहे हैं आप लोग?"
"मैंने ख़ुद इस दंश को झेला है, बच्चों की देखभाल, व्यस्त पति की ज़िम्मेदारियां, सास-ससुर की सेवा… इन सबके बीच मैंने अपने सपनों की आहुति दे दी. किसी ने भी मुझे नहीं समझा. उस पर टीचर की बेमन की नौकरी करते-करते मैं थक गई."
"आज की नई नस्ल के बच्चे बोझील रिश्तों को नहीं ढ़ोते. बेमन के काम नहीं करते. शादी करना, न करना उनकी मर्ज़ी है और इसमें ग़लत भी क्या है?"
उस दिन सीमा की वे बातें धीरज जी और सौदामिनी के गले नहीं उतरी. सीमा तो उस वक़्त उन दोनों को दुश्मन की तरह लग रही थी.
आख़िरकार निशा अपने सपनों को हवा देने के लिए चली गई थी. वक़्त अपनी तेज़ी से चलता रहा. तभी एक दिन सीमा के घर पर दस्तक़ हुई. दरवाज़े पर भाईसाहब-भाभी और पायलट की पोशाक में निशा को देखकर सीमा ख़ुशी से झूम उठी.
सीमा ने सौ बलाएं लेते हुए निशा को गर्व के भाव से देखा, तो सौदामिनी जी बोलीं, "ये सब आपकी ज़िद का नतीज़ा है दीदी."


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"नहीं यह सब इसकी मेहनत और आप लोगों के सहयोग का परिणाम है." सीमा ने दुलार भरा हाथ निशा के सिर पर फेरते हुए कहा, तो निशा बोल उठी, "नहीं बुआ, यह आप जैसी महिलाओं के संघर्ष का ही परिणाम है, जिन्होंने कई सालों से लगातार लड़कियों को उड़ान देने के लिए समाज से संघर्ष किया है. मैं कैसे आज इतने ऊपर उड़ पाती, अगर आप इस समाज से न कहती कि उसे उड़ने दो…"

writer poorti vaibhav khare
पूर्ति वैभव खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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