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कविता- मेरे शिव… (Poem- Mere Shiv…)

ऊंचे पर्वत पर बैठे शिव हैं
सागर तीरे देखो शिव हैं
भारत के हर कण कण में
जन मानस के मन में शिव हैं

जन्म भी शिव हैं
मृत्यु शिव हैं
माया शिव हैं
मोक्ष भी शिव हैं

अंत की तुम चिंता ही छोड़ो
आदि अनंत महाकाल भी शिव हैं
त्याग भी शिव हैं
वैराग भी शिव हैं
जल थल वायु में भी शिव हैं

कोई ना दूजा उनके जैसा
हर प्राणी के अंदर शिव हैं
जप में शिव हैं
तप में शिव हैं
मानव के हर गप में शिव हैं

तीनों लोकों के जो स्वामी
त्रिलोकेश्वर वो मेरे शिव हैं
भक्तों के भक्ति में शिव हैं
पूजन की शक्ति में शिव हैं
बेलपत्र है प्रिय जिसे
वो भोले भंडारी शिव हैं

तीन नेत्रों वाले शिव हैं
भस्म धारी वो मेरे शिव हैं
अत्यंत सुंदर रूप है जिनका
वामदेव वो मेरे शिव हैं

भूत, भविष्य, वर्तमान भी शिव हैं
कष्टों का निवारण शिव हैं
चंद्रमा जिनके शीश पर शोभे
वो शशिशेखर भी मेरे शिव हैं

शूलपाणी  मेरे शिव हैं
मृगपाणी मेरे शिव हैं
सांपों के आभूषण जो पहने
वो भुजंगभूषण भी मेरे शिव हैं

धतूरा भांग कपूर में शिव हैं
चंदन चावल दूध में शिव हैं
हलाहल विष है जो पिए
वो नीलकंठ भी मेरे शिव हैं

सूर्य चंद्रमा अग्नि शिव हैं
पशुओं के पशुपति भी शिव हैं
विष्णु जी को अति प्रिय जो
वो विष्णुवल्लभ भी मेरे शिव हैं

मारुति रूप लिए जो वो शिव हैं
पार्वती को जो पाए वो शिव हैं
सारे जगत के गुरु जो हैं
वो जगतगुरु भी मेरे शिव हैं

जटाधारी मेरे शिव हैं
पंचभूतों के स्वामी शिव हैं
गणपति और कार्तिकेय के पिता जो
वो महादेव भी मेरे शिव हैं

कैलाश के वासी मेरे शिव हैं
सात सुरों के स्वामी शिव हैं
सबसे उत्तम नर्तक जो हैं
वो नटराज भी मेरे शिव हैं…

- शिल्पी कुमारी


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Photo Courtesy: Freepik

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