मैं कहना तो चाहता था कि ना ऐसे दयनीय बुज़ुर्गों में तुम आते हो, ना तुम्हारे बहू-बेटे निष्ठुर औलादों का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन जब कोई अपनी स्वर्गवासी पत्नी को याद करके दुखी हो, ऐसे में दोस्त होने के नाते, मेरा तल्ख़ होना ठीक नहीं.
"अरे वाह! नाश्ता चल रहा है. लाओ यार, एकाध परांठा इधर भी दो…" मैंने थाली में झांकते हुए चुहलबाज़ी की. लेकिन कुछ तो बात थी कि मुझे देखकर हरदयाल के चेहरे पर मुस्कान नहीं खिली.
"आओ, खाओ ठंडा परांठा! बड़ा शौकिया रहे हो." उसने थाली को घूरा.
"क्या हुआ, फिर लड़ लिए क्या बहू से?"
"अरे नहीं! लड़ाई-झगड़ा नहीं… नाश्ता बनाकर रख दिया जाता है, खाओ ठंडा, बेस्वाद… बहूरानी तो क्लब हाउस जाती हैं, जुम्बा करने." हरदयाल ने हाथ मटकाकर बताया.
"जुम्बा नहीं यार, ज़ुम्बा बोलते हैं.. ज़ेड यू एम बी ए."
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"चुप रहो यार! कुछ भी बोलते हो, बस मौज-मस्ती का बहाना है… घर से निकलने का मौक़ा मिल जाए बहुओं को. भले ही घर के बुज़ुर्ग भूखे मरें! तुम तो जानते हो, पुष्पा जब तक थी, एक-एक रोटी गर्म खाई हमने…" थाली खिसकाते हुए उसका स्वर थोड़ा भीग गया.
मैं कहना तो चाहता था कि ना ऐसे दयनीय बुज़ुर्गों में तुम आते हो, ना तुम्हारे बहू-बेटे निष्ठुर औलादों का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन जब कोई अपनी स्वर्गवासी पत्नी को याद करके दुखी हो, ऐसे में दोस्त होने के नाते, मेरा तल्ख़ होना ठीक नहीं.
"दिल छोटा ना करो हरदयाल! बेटा-बहू ख़्याल तो बहुत रखते हैं तुम्हारा… अब ज़ुम्बा जाना ख़राब बात थोड़ी है, तुम कह दिया करो कि जाने से पहले तुम्हें नाश्ता करा दिया करे."
"वो तो कहती है," हरदयाल का स्वर थोड़ा नर्म पड़ा.
"लेकिन साढ़े नौ बजे हमें भूख नहीं लगती, दस बजे ही खा पाते हैं… अब बताओ भूख लगने पर खाएं या जुम्बा क्लास के हिसाब से?.. घूमो-फिरो सब, हम तो हैं ही चौकीदारी के लिए."
मैंने अपना माथा पीट लिया. बात ठंडा-गर्म, ज़ुम्बा की नहीं, मुख्य समस्या थी इसके जुम्बिश ना करने की. दिनभर घर पर पड़े-पड़े फोन और टीवी के चक्कर में ये सब हो रहा था.
मैंने डांटा, "वाह भई! साढ़े नौ बजे तुम्हें भूख नहीं लगती और दस बजे भूख से बिलबिलाने लगते हो? कहीं आते-जाते तो हो नहीं. अरे! सुबह टहलने पार्क आया करो… दस बजे हम सब बुड्ढे क्लब हाउस में कैरम-बोर्ड खेलते हैं, वहां आ जाया करो… थोड़ा हिलो-डुलो, जुम्बिश करो, तो समय से भूख लगे! सुन रहे हो? बहू से कुछ ना कहना अब ज़ुम्बा क्लास के बारे में…"
हरदयाल एकटक मुझे देख रहा था, कुछ सोचते हुए बोला, "कहूंगा बहू से.."
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" उहुं, क्या कहोगे?"
अपनी ओर थाली खिसकाते हुए बोला, "कहूंगा कि जुम्बा जाने से पहले नाश्ता करा दो, हमें कैरमबोर्ड खेलने जाना है!"
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