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फिल्म समीक्षाः आम आदमी को हवाई सफ़र कराने की ‘सरफिरा’ अक्षय कुमार के ख़्वाब-हक़ीक़त से जुड़ी संघर्षपूर्ण दिलचस्प दास्तान.. (Movie Review- Sarfira)

एक रुपए में हवाई जहाज की यात्रा कराना, ख़ासकर आम आदमी को… ऐसी उड़ान का सपना तो एक सरफिरा ही देख सकता है. जी हां, अक्षय कुमार की फिल्म ‘सरफिरा’ में अपनी इसी ख़्वाब को हक़ीक़त की धरातल पर मुक़म्मल करने के लिए न जाने कितने जद्दोज़ेहद से गुज़रते हैं वीर जगन्नाथ म्हात्रे, अक्षय कुमार. वीर के क़िरदार में अक्षय एक बेबस बेटे द्वारा पिता के अंतिम दर्शन के लिए घर न पहुंच पाना, क्योंकि एरोप्लेन की टिकट के लिए पर्याप्त पैसे न होने पर ट्रेन, बस, दूसरी तमाम सफ़र की द़िक्क़तों को झेलते हुए गांव में अपने घर तक जब पहुंचते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.


वीर की मां, सीमा बिस्वास की उलाहना, “बेटे के होते हुए किसी दूसरे से मुखाग्नि देनी पड़ी…” वीर को तोड़कर रख देती है. तब वह ज़िद पकड़ लेता है कि वो एक रुपए से लेकर किफ़ायती दामों में हवाई यात्रा की सुविधा आम लोगों के लिए मुहैया करवाएगा. ताकि किसी बेटे को अपने पिता के अंतिम समय में दूर से आने व मिलने के लिए देरी न हो. अपने इस जुनून को पूरा करने के लिए वीर तमाम उतार-चढ़ाव से गुज़रते हुए संघर्ष करता है.
मां का फोन पर कहना कि बाबा अंतिम बार तुझे देखना चाहते हैं… अपने एयरफोर्स की डयूटी से दूर गांव बाबा के पास आने के लिए वीर का प्लेन की टिकट लेने के लिए स्ट्रग्ल करना… हर उस आम इंसान की आंखें नम कर देता है, जो इस तरह की स्थिति से गुज़रे रहे हों.
वाक़ई टिकट के लिए पांच हज़ार रुपए की कमी होने पर वीर द्वारा टिकट विंडो के यहां लाइन में खड़े और आसपास के यात्रियों से पैसे उधार मांगने, गिड़गिड़ाने पर भी किसी का रहम नहीं करना, इंसानियत को ताक पर रख देने की पराकाष्ठा को दिखाता है. पिता से मिलने की तड़प, वीर और मां का दर्द, विमान यात्रा करने वाले लोगों व अधिकारियों का रूखा कठोर व्यवहार दर्द व आक्रोश को जन्म देता है.


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एयर डेक्कन भारत की ऐसी पहली एयरलाइन, जो सस्ते दामों में हवाई जहाज की टिकट उपलब्ध कराती थी. गरीब व निम्न वर्ग के लोग भी प्लेन में बैठने के अपने सपने को पूरा कर सके, इसके ख़ातिर भी भारतीय सेना के पूर्व कैप्टन गोरूर रामास्वामी अयंगर गोपीनाथ ने सस्ते दामों में अपनी एयर डेक्कन की शुरुआत की थी. उन्हीं के जीवनी पर आधारित है सरफिरा.


उनकी ऑटोबायोग्राफी ‘सिंपली फ्लाई- ए डेक्कन ओडिसी’ से प्रभावित होकर निर्देशिका सुधा कोंगारा ने एक्टर सूर्या को लेकर तमिल में सुररै पोट्टू फिल्म बनार्ई थी. इसी की रीमेक है सरफिरा.  वर्तमान में कैप्टन गोपीनाथ एरोप्लेन के सस्ते टिकट की सरकारी योजना उड़ान का भी हिस्सा हैं.
सरफिरा में शुरू से अंत तक अक्षय कुमार अपने सरफिरे अंदाज़ में छाए हुए हैं, फिर वो बैंड बाजे के साथ दोस्त की अर्थी बारात की तरह निकालने का दृश्य हो, रानी बनी राधिका मदान को रिक्शे पर चलते-चलते शादी के लिए मनवाना ही क्यों ना हो. चूंकि वीर को महाराष्ट्र के एक छोटे गांव का बताया गया है, तो यहां पर अधिकतर कलाकारों ने मराठी भी जम कर बोली है, जो मज़ेदार है. ऐसे में अक्षय कुमार और राधिका मदान की केमेस्ट्री देखते ही बनती है.


रानी, राधिका मदान का भी केक, पेस्ट्री बनाने के लिए बेकरी खोलने का सपना है. कैसे वीर-रानी दोनों ही अपने सपने को पूरा करने के लिए प्यार भरा समझौता करते हैं की प्रस्तुति रोचक है. दोनों के बीच की नोक-झोंक, डायलॉग्स अफलातून हैं. अपने रानी के निराले लुक व स्टाइल में बहुत ख़ूब जमी हैं राधिका.
वीर को ख़ुद की सस्ती एयरलाइन के लिए सरकारी महकमे, विमान विभाग के तमाम नीचे-ऊपर के कर्मचारी से लेकर अधिकारियों तक से जूझना पड़ता है. लालफिताशाही की ये उड़ान हर आम व्यक्ति के कुछ बनने व करने के जज़्बे पर तीखा प्रहार करती है.
खलनायक बने परेश रावल, जो वीर के रोल मॉडल भी रहते हैं, लेकिन वीर के एयरलाइन के ड्रीम प्रोजेक्ट में हमेशा रोड़ा अटकाते हैं. दरअसल, उनकी ख़ुद की एयरलाइन है और वे नहीं चाहते कि एक आम आदमी भी उनके साथ महंगी व अमीर लोगों के लिए बनी हवाई यात्रा का आनंद उठा सके. उनके अनुसार, तब तो ऊंच-नीच का भेद ही मिट जाएगा. विलेन के रोल में परेश रावल प्रभावशाली रहे हैं. जब-जब उनका और अक्षय का सामना होता है बरबस हेरा-फेरी फिल्म और बाबू भाई याद आ जाते हैं. 


अक्षय कुमार, राधिक मदान, सीमा बिस्वास परेश रावल के साथ-साथ अन्य सहयोगी कलाकारों ने लाजवाब अभिनय किया है. अनिल चरणजीत, सरथकुमार रामनाथन, कृष्णकुमार बालसुब्रमण्यम, प्रकाश बेलवाड़ी, इरावती हर्षे, राहुल वोहरा, सौरभ गोयल सभी ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.
तनिष्क बागची, जीवी प्रकाश कुमार व सुहित अभ्यंकर का म्यूज़िक स्थिति-परिस्थितियों के हिसाब से ठीक-ठाक है.


सरफिरा की कहानी महिलाओं की तिकड़ी डायरेक्टर सुधा ने पूजा तोलानी व शालिनी ऊषा देवी के साथ मिलकर लिखी है. वहीं पटकथा में भी सुधा व शालिनी की जोड़ी ने कमाल दिखाया है. निर्माताओं की भी लंबी लिस्ट है, जिसमें विक्रम मल्होत्रा, ज्योतिका, अरुणा भाटिया, सूर्या व सुधा कोंगारा शामिल हैं.


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वीर के दोस्तों का साथ, पत्नी रानी की दंबगई, बिज़नेस व गवर्मेंट से लेकर पॉलिटिकल पार्टी तक के दांव-पेंच, एक बेटे का अपने माता-पिता के प्रति प्यार-समर्पण, उड़ान का जुनून, आम गांव वालों का विश्‍वास-साथ ये तमाम बातें फिल्म को ख़ास बना देती हैं. सच्ची घटना पर आधारित प्रेरक कहानी पर बनी सरफिरा देखने के साथ बहुत कुछ सोचने पर भी मजबूर करती है.

- ऊषा गुप्ता

Photo Courtesy: Social Media

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