कल्पनाओं की दुनिया में उड़ता मन... जो कभी किसी को पाने के ख़्याल से रोमांचित हो जाता है, तो कभी उस अजनबी के साथ कई सपने संजोने लगता है... उस एक शख़्स की ख़ातिर ज़मानेभर से बगावत कर बैठता है, तो कभी प्यार में हार मिलने पर ग़लत रास्ता भी अख़्तियार कर लेता है... ऐसे में सबसे मुश्किल की घड़ी होती है पैरेंट्स के लिए...
न ज़माने की परवाह, न समाज की बंदिशों का डर... ख़्वाहिश होती है, तो टीनएज लव यानी किशोरावस्था में प्यार कोई नई बात नहीं है. शायद ही कोई ऐसा शख़्स हो, जो इससे बच पाया हो. ऐसे समय में पैरेंट्स की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है. यदि वे इस समस्या को समझने की कोशिश करें, तो इसे हैंडल करना इतना मुश्किल भी नहीं. तो सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि आख़िर इस उम्र में यह आकर्षण क्यों होता है?टीनएज लव- एक सामान्य और स्वाभाविक प्रक्रिया
किशोरावस्था में हार्मोन्स के बदलाव के कारण बच्चे में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से बदलाव आते हैं. वह अति भावुक और संवेदनशील हो जाता है. स्वाभाविक तौर पर जननांग विकसित होने के साथ-साथ सेक्स के प्रति इच्छाएं भी बढ़ने लगती हैं. ऐसी स्थिति में जब वह न बच्चा रह जाता है और न वयस्क, जिसे किशोरावस्था कहा जा सकता है, में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण होने लगता है. यह आकर्षण किसी के भी प्रति हो सकता है. अपने से कम उम्रवाले के साथ भी और अधिक उम्रवाले व्यक्ति के साथ भी, शादीशुदा के साथ भी और अधेड़ उम्रवाले व्यक्ति के साथ भी. यह आकर्षण ही है, जिसे वे प्यार समझ बैठते हैं. उनके इस तथाकथित प्यार की न कोई बुनियाद होती है और न ही उसमें कोई परिपक्वता होती है. नई उम्र का जोश जब जुनून बन जाता है, तो परिणाम की परवाह किसे होती है. यह उनके लिए भी मुश्किल भरा समय होता है जब वो न खुद को समझ पाते हैं, न यह जान पाते हैं कि आख़िर उनकी चाहत क्या है और मंज़िल क्या है?कल्पनाशील होना
टीनएजर्स की कल्पनाओं का आकाश असीमित होता है. अपने ख़्वाबों-ख़्यालों को वे कब नया रंग-रूप दे देते हैं, शायद वे स्वयं भी नहीं जान पाते और फिर चल देते हैं उन्हें साकार रूप देने. टीनएजर लड़कियों पर मिल्स एंड बून की रोमांटिक नोवेल पढ़ने का एक जुनून-सा सवार होता है. अनजाने ही वे अपनी कल्पनाओं में एक टॉल, डार्क और हैंडसम लड़के को बसा लेती हैं और जब उनकी इस मूरत से मिलता-जुलता रूप कहीं देखने को मिलता है तो उसके आकर्षण के बंधन में बंधे बगैर नहीं रह पातीं.स्टेटस सिंबल है बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड बनाना
इस उम्र में प्यार व आकर्षण भले ही हर युग में रहा हो, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आधुनिक जीवनशैली के बढ़ते प्रभाव ने इसे और भी बढ़ावा दिया है. आज गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड बनाना स्टेटस सिंबल हो गया है और जो इस विचारधारा से परे हो, वह हंसी-मज़ाक का पात्र बन जाता है या फिर उसे दक़ियानूसी समझा जाता है. यानी जिसका बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड न हो, उसे हीन समझा जाता है. सातवीं कक्षा में पढ़ रही 13 वर्षीय अंजलि से जब पूछा गया कि आख़िर उसे बॉयफ्रेंड की ज़रूरत क्या है? तो उसका जवाब था कि साथ-साथ घूमने-फिरने और पार्टियों में जाने के लिए एक बॉयफ्रेंड तो चाहिए ही, वरना लोग सोचेंगे कि मुझमें कोई आकर्षण ही नहीं है. मेरी सभी सहेलियों के तो बॉयफ्रेंड हैं. बॉयफ्रेंड के साथ घूमने-फिरने का सिलसिला यदि उन्हें सेक्स के अंजाम तक भी पहुंचा दे, तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं.कम उम्र में अधिक ज्ञान की ओर बढ़ती पीढ़ी
एक तरफ़ तेज़ गति से भागती ज़िंदगी है, तो दूसरी तरफ़ सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का बदलाव. इन सबने मिलकर एक बिगड़ैल पीढ़ी को जन्म दिया है, जो हर तरह की वर्जनाओं से बेपरवाह होती जा रही है. फ़िल्में, इंटरनेट, अश्लील म्यूज़िक अलबम और पोर्नोग्राफ़िक पत्रिकाओं की भौंडी जानकारियों के कारण प्यूबर्टी स्टेज आने के पहले ही आज के बच्चे सेक्स और स्त्री-पुरुष के बीच घनिष्ठ संबंधों से परिचित होने लगे हैं. अपनी सेक्सुअल इच्छाओं की पूर्ति के लिए होमोसेक्सुअल संबंधों को आज़माने से भी ये नहीं चूकते. * इस उम्र में जोश और उत्साह बहुत अधिक होता है. ऊपर से खान-पान की बिगड़ती आदत और अधिक ऊर्जा उनमें सेक्स इच्छा को बढ़ावा देती है. * घरवालों से बेरूखी, उन्हें पर्याप्त प्यार और समय न मिलना, उनका असामान्य व्यवहार या फिर घरेलू कलह आदि उनमें असुरक्षा की भावना पैदा करते हैं. ऐसे में घर से दूर वे एक साथी की तलाश करने लगते हैं. दरअसल बच्चों पर सूने घरों में लौटने और तन्हा रहने का असर जितना हम सोचते थे, उससे कहीं अधिक हुआ है. बच्चों में जो अतृप्त जिज्ञासाएं उभर आई हैं, उनका जवाब देने का व़क़्त और धैर्य भी उनके माता-पिता के पास अब नहीं रह गया है. * बदलती जीवनशैली ने बच्चों को तनावग्रस्त बना दिया है. ऐसे में अपने आपको तनावमुक्त करने के लिए वे अपनेपन का सहारा ढूंढ़ने लगते हैं. टीनएज लव एक स्वभाविक क्रिया है, जिसे रोकना मुश्किल है, लेकिन यदि सही समय पर समझदारी और धैर्य से काम लिया जाए, तो टीनएजर्स को कम से कम भटकने से तो बचाया जा सकता है.कैसे करें हैंडल?
* स्वभाविक तौर पर मूडी, थोड़े बागी, हिंसक, संवेदनशील, भावुक, बेपरवाह और परिणाम की फ़िक़्र किए बगैर तुरंत निर्णय लेनेवाले ये टीनएजर कब कौन-सा क़दम उठा लें, यह जानना भी मुश्किल है. भावुकता में वे कोई भी ग़लत निर्णय ले सकते हैं. कभी-कभी प्यार में धोखा खाने या दिल टूट जाने पर वे ये सब सहन नहीं कर पाते. इसके पहले कि आपका बच्चा मानसिक तौर पर टूट जाए और आत्महत्या का प्रयास करे या फिर अपना मानसिक संतुलन खो बैठे, उसे संभाल लें. * तनीषा की मां को जैसे ही पता चला कि उनकी बेटी आजकल कॉलेज बंक करके अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ फ़िल्म और रेस्टॉरेंट जाने लगी है तभी उन्होंने उसे अपने पास बुलाकर प्यार से समझाया कि यह समय उसके लिए कितना महत्वपूर्ण है. यदि उसने अभी यह समय गंवा दिया तो शायद उसके करियर में रुकावट आ जाए, वह कुछ न बन पाए और फिर ज़िन्दगी की दौड़ में शायद वह अन्य साथियों के मुक़ाबले पीछे रह जाए. * अपनी मां की बातें तनीषा के लिए काफ़ी प्रभावशाली साबित हुईं. उसने इन बातों को गंभीरता से लिया और तुरंत ही प़ढ़ाई के प्रति सतर्क हो गई. * स़िर्फ बच्चों को जन्म देना, पैसों व सुख-सुविधाओं से उन्हें संतुष्ट करके अपनी ज़िम्मेदारियों से इतिश्री कर लेना ही काफ़ी नहीं है. * अच्छी परवरिश के लिए ज़रूरी है अच्छे संस्कार, जो उन्हें स़िर्फ उनके माता-पिता ही दे सकते हैं. पैरेंट्स को चाहिए कि व्यक्तिगत वजहों के चलते बच्चों से कटे-कटे रहने के बदले अपने बच्चों के जीवन की मौजूदा स्थितियों से बाख़बर रहें. * बच्चों को उपदेश की आवश्यकता नहीं होती, ज़रूरत होती है उन्हें समझने की और समझाने की. * बेहतर होगा कि समझाने के लिए उपदेशात्मक रवैया बिल्कुल इस्तेमाल न करें. ज्ञान की बातें तो वे क़िताबों से भी ग्रहण कर सकते हैं. * हिटलरशाही या तानाशाही व्यवहार न रखें. * आप उनके माता-पिता हैं और मार्गदर्शक भी. * ये न भूलें कि आप भी उसी उम्र से गुज़र चुके हैं. ऐसे में उन्हें आपसे ज़्यादा भला कौन समझेगा? * इस तरह बच्चे बागी बन जाते हैं. मारपीट से बच्चे सुधरते नहीं, बल्कि बिगड़ते हैं. * जब पता चल जाए कि आपके बच्चे को किसी से प्यार हो गया है, तो उसे समझाएं कि ये कच्ची उम्र का प्यार है या प्यार नहीं महज आकर्षण है, जो शायद व़क़्त के साथ ख़त्म हो जाए. * उन्हें बताएं कि ज़िंदगी में पढ़ाई और करियर कितना महत्व रखता है, गया व़क़्त लौटकर उनकी ज़िंदगी में कभी नहीं आएगा. वक्त की कदर करना सिखाएं. * वे बेहद भावुक और संवेदनशील होते हैं, इसलिए उनकी भावनाओं को समझना बहुत ज़रूरी है. * प्यार में दिल टूटने पर उनका तिरस्कार न करें. उन्हें दोस्त की तरह समझाएं. * उनके ग़म को अपना ग़म समझकर उन्हें गले से लगा लें. वे स्वयं समझ जाएंगे कि उनसे कहां ग़लती हुई थी. * उनके प्यार करने की ग़लती पर सज़ा देने की बजाए उन्हें माफ़ करना सीखें. * अपनी व्यस्तता के चलते बच्चों की हरकत को नज़रअंदाज़ न करें. * उनके मूड, स्वभाव, इच्छाओं व अनिच्छाओं को जानें. * यदि बच्चे का ध्यान पढ़ाई से हटकर अपने आपको संवारने-निखारने में ही लग गया है, तो उसकी हरकतों पर गौर करें. * उसके साथी (गर्लफ्रेंड या ब्वॉयफ्रेंड) के बारे में पूरी जानकारी हासिल करें और घर पर बुलाकर उनसे बातचीत का रवैया अपनाएं, जिससे आपके बच्चे को आपसे कुछ छिपाने की आवश्यकता न पड़े और वह हर बात आपके साथ बांट सके. * परवरिश और संस्कार ही बच्चों के चरित्र का निर्माण करते हैं. * अपने बच्चों को नैतिक मूल्यों से अवगत कराएं. * आपका अपने बच्चों के प्रति विश्वास ही उन्हें ग़लत रास्ते पर जाने से बचाएगा. * यह उनकी उम्र का नाज़ुक मोड़ है. ऐसे में ज़रूरत है आपको अपनी व्यस्तता से निकलकर धैर्यपूर्वक उन पर ध्यान देने की, उन्हें मार्गदर्शन देने की और उन्हें समझने की. अपनी थोड़ी-सी कोशिश से आप अपने बच्चों को सही राह दिखा सकते हैं और उनमें सकारात्मक सोच विकसित कर सकते हैं, क्योंकि शैक्षिक उपलब्धियों और परीक्षाओं में अच्छे अंक लाने के अलावा जीवन संवारने के कौशल संबंधी विकल्प स्कूल में नहीं सिखाए जाते. आज ज़रूरत है उनकी भावनाओं और संवेदनाओं को समझने की.- सुमन शर्मा
Link Copied