रेटिंग: 3 ***
यूं तो फिल्में मनोरंजन के लिए देखी जाती हैं, लेकिन किल को लेकर आपकी ऐसी सोच है, तो ज़रा ठहरें और ख़ुद को टटोलें कि क्या आप क़रीब दो घंटे की इस फिल्म में एक अलग तरह के एक्शन के साथ लूट-पाट, रक्तरंजित खूनी मंजर को देख सकते हैं?.. तभी ही आप किल फिल्म देखने का रिस्क उठा सकते हैं. केवल वयस्कों के लिए यानी एडल्ट फिल्म की श्रेणी में रखी गई इस फिल्म में पहली बार किसी हिंदी फिल्म में ट्रेन में मारधाड़ से भरपूर खूनी भयानक खेल खेला गया है. वैसे भी फिल्म के निर्माताओं ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि कमज़ोर दिल वाले इस फिल्म को न देखें.
'अपूर्वा' जैसी फिल्म को निर्देशित कर चुके निखिल नागेश भट्ट किल को एक भिन्न तरह के जॉनर में ले जाते हैं. शुरू के कुछ लम्हे छोड़ दिए जाए, तो बाद में पूरी मूवी ब्लड, वॉयलेंस, मर्डस से लैस है. हिंसा के ऐसे दृश्य देख एकबारगी आप कांप जाएंगे. रक्त के इस उत्पात से दिल दहलाने के पीछे एक्शन कोरियोग्राफर को येओंग ओह के साथ परवेज शेख की बहुत बड़ी भूमिका रही है. इस पर सोने पे सुहागा रही राफे महमूद की सिनेमैटोग्राफी.
कलाकारों में लक्ष्य लालवानी ने अपनी पहली फिल्म में ही यह साबित कर दिया कि उनमें कितना दमखम है. जहां वे आर्मी के कंमाडो के रूप में प्रभावशाली रहे हैं, तो वहीं रोमांटिक प्रेमी के रूप में भी आकर्षित करते हैं, लेकिन सबसे अहम उनका ज़बर्दस्त धमाकेदार एक्शन सारी वाहवाही लुट लेता है. लक्ष्य के अभिनय व फाइट्स को देखकर एक पल भी नहीं लगता कि यह उनकी पहली फिल्म है. वे एक मंजे हुए लाजवाब अभिनेता की तरह ऑलराउंडर परफॉर्मेंस देते हैं. उन्हीं के साथ अभिनेत्री तान्या मानिकतला भी अपनी अदाओं, शोख अंदाज़ व सादगी भरी ख़ूबसूरत एक्टिंग से प्रभावित करती हैं.
राघव जुयाल की कॉमेडी और डांस से तो हर कोई इम्प्रेस रहा है, पर यहां पर अपनी खलनायकी से वे फणि डकैत के रूप में छा जाते हैं. उनका किल करने का ख़तरनाक स्टाइल पर मसखरेपन का अंदाज़ डर के साथ चेहरे पर मुस्कान भी ले आता है. ख़ासकर अपने पिता बेनी, आशीष विद्यार्थी के साथ उनकी जुगलबंदी देखते ही बनती है.
किल की कहानी बस इतनी सी है कि अमृत, लक्ष्य लालवानी और तूलिका, तान्या मानिकतला एक-दूसरे से प्यार करते हैं. जब अमृत को पता चलता है कि रांची में तूलिका की किसी और से सगाई हो रही है, तो उसे रोकने वहां पहुंचता है, लेकिन तब तक एंगेजमेंट हो जाती है. अमृत तूलिका को अपने प्यार की दुहाई देता है. परिवार के साथ रांची से दिल्ली लौट रही तूलिका से लक्ष्य की ट्रेन में मुलाक़ात. फिर शुरू होता है ट्रेन के टॉयलेट में रोमानी अंदाज़ में अमृत का तूलिका को प्रपोज़ करना और उतने ही दिलकश अंदाज़ तूलिका का हामी भरना. सब कुछ बहुत ही प्यारभरा ख़ुशनुमा अंदाज़ में चल रहा होता है. सभी यात्री ट्रेन में सफ़र का आनंद ले रहे होते हैं कि लूटपाट के इरादे से क़रीब बीस देसी डाकुओं का ट्रेन में आगमन. बस, यही से शुरू हो जाता है ख़ून-ख़राबे का ऐसा वीभत्स हिंसक ताडंव की आप सकते में आ जाते हैं कि अभी तो सब कुछ कितना सुंदर और मोहब्बत से भरपूर चल रहा था, ऐसे में यह खूनी आंधी कहां से आई.
इस मर्डर सीरीज़ में बंदूक कम, पर हथौड़ा, चाकू, देसी कट्टे के इस्तेमाल अधिक किए गए हैं.
लक्ष्य लालवानी, राघव जुयाल, तान्या मानिकतला, आशीष विद्यार्थी, हर्ष छाया, अभिषेक चौहान, अद्रिजा सिन्हा हर किसी ने अपना बेहतरीन दिया है. एडिटर शिवकुमार वी पानिकर की भी तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने ढिलाई नहीं दी. अपने चुस्त संपादन से फिल्म को शॉर्ट और स्वीट रखा. फिल्म में केवल एक ही गाना है, वो भी बैकग्राउंड में, जो प्रभावित करता है. फिल्म की कहानी निर्देशक नागेश ने आयशा सैयद के साथ मिलकर लिखी है.
निर्मिताओं में करण जौहर, अपूर्व मेहता, गुनीत मोंगा कपूर व अचिन जैन की चौकड़ी है. सुनने में आ रहा है कि इस फिल्म के हॉलीवुड में रीमेक बनने की प्लानिंग चल रही है, जो एक सुखद ख़बर है.
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