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कविता- संभावनाएं अभी बाकी हैं (Poetry- Sambhavnayen Abhi Baki Hain)

अधिकांशतः
कविताओं को लिखा गया
इतराती हुई सुबहो में, उदास शामों में
या इंतज़ार की लंबी-लंबी रातों में
तीखी चटख दोपहरियों के हिस्से में
कविताएं ज़रा कम ही रहीं

आज
४८ डिग्री के तापमान में
दिन के तीन बजे भी
सड़कों पर
दूर तक पसरा हुआ था उदासीन सा शोर..
रोज़ी-रोटी की अनगिनत व्यथाएं
यकायक महसूस होने लगीं
बेबसी के बहुत से मंजर धूप में सिकते नज़र आए..

लेकिन
फिर थोड़ा सुकून भी मिला
कुछ दूरी पर
तपती हुई धूल-धक्कड़ सड़कों के दोनों ओर
खड़े मुस्कुरा रहे थे
कुछ गुलमोहर, और पीले पलाश के वृक्ष..
पास ही किसी एक छोटी सी क्यारी में
शान से इतरा रहा था
एक नन्हा सूरजमुखी भी..

ओ गुलमोहर!
चिलकती धूप के इस सफ़र में
अब नहीं हो तुम अकेले

यक़ीनन
कड़क धूप में पसरा जीवन का ये सौंदर्य
कविताओं के लिए काफ़ी होगा
क्योंकि हमारी प्रकृति
संभावनाओं की गुंजाइश सदैव ही साथ रखती है.. है न!

- नमिता गुप्ता 'मनसी'


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Photo Courtesy: Freepik

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