"ये वाला? ठीक से याद नहीं… शायद मम्मी लाई थीं."
अब सब साफ़ था. हफ़्ते भर पहले मांजी यहां से दिल्ली गई थीं, तब से ही नहीं दिखाई दिया है. मन खिन्न हो गया. इतनी पूजा-पाठ करती हैं, सत्संग जाती हैं… आख़िर कर ही दी ना वही सास वाली हरकत!
फोटो में जो दिखाई दे रहा था वो सच कैसे हो सकता था? मुन्ना का खोया हुआ झुनझुना, ननद के बेटे के पास? बिल्कुल वैसा ही टेलीफ़ोन के आकार वाला… नहीं! मन में आए ख़्यालों को झटका… मांजी ऐसा नहीं कर सकती हैं, लेकिन शंका दिमाग़ में घुसपैठ कर चुकी थी.
"हैलो! हां मीतू, कैसी हो? बहुत प्यारा लग रहा है गुट्टु हर फोटो में!.. ये क्या पकड़ा हुआ है हाथ में… हा हा हा बहुत शैतान लग रहा है." घुमा-फिराकर मैंने पूछ ही लिया.
"अरे भाभी! ये झुनझुना है इसका, दिनभर दांत से काटता रहता है बदमाश!.. और बताइए मुन्ना कैसा है?"
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"हैं?.. मुन्ना ठीक है।… कहा से लिया ये झुनझुना? बहुत अच्छा लग रहा है. इसके लिए भी लाऊंगी." मेरी सुई वहीं अटकी हुई थी.
"ये वाला? ठीक से याद नहीं… शायद मम्मी लाई थीं."
अब सब साफ़ था. हफ़्ते भर पहले मांजी यहां से दिल्ली गई थीं, तब से ही नहीं दिखाई दिया है. मन खिन्न हो गया. इतनी पूजा-पाठ करती हैं, सत्संग जाती हैं… आख़िर कर ही दी ना वही सास वाली हरकत!
"किरण राखी भाभी आई हैं… फर्स्ट फ्लोर वाली." पति की आवाज़ से मैं चौंकी.
"ये लो प्रसाद, वैष्णो देवी माता का! आज ही तो लौटी हूं…देख, बालकनी में ये सब सामान मिला, जो तुम्हारा लाडला नीचे फेंकता रहता है…" मुन्ने को दुलारते हुए राखी भाभी ने सामान दिखाया. कपड़े की चिमटियां, चम्मच, चाभी… और वही टेलीफोन वाला झुनझुना!
मन अपराधबोध से भर गया. एक अदनी सी चीज़ के लिए इतनी पढ़ी-लिखी होकर आखिर कर ही दी ना मैंने, वही बहू वाली हरकत!
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