बॉलीवुड के फाइनस्ट एक्टर्स में से एक मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) इन दिनों अपनी फिल्म 'भैया जी' (Bhayyaji) की वजह से सुर्खियों में बने हुए हैं. उनकी यह फिल्म लोगों को काफी पसंद आ रही है. मनोज बाजपेयी के करियर की यह 100वीं फिल्म है. इस फिल्म के लिए मनोज बाजपेयी लगातार इंटरव्यू दे रहे हैं और अपनी लाइफ से जुड़ी कई मजेदार (Manoj Bajpayee shares funny moments) बातें शेयर कर रहे हैं. हाल ही में मनोज ने अपनी एक ऐसी हरकत के बारे में खुलासा किया, जिसके लिए उन्हें सब्जी वाले से भी डांट पड़ जाती है.
हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान मनोज बाजपेयी ने अपने बिहार के दिनों की यादें साझा की. उन्होंने बताया कि वे अब भी कई बार सब्जी या ग्रोसरी खरीदने निकल पड़ते हैं. शायद उनके फैंस को यकीन ना हो, लेकिन इतने बड़े एक्टर होने के बावजूद मनोज बाजपेयी रियल लाइफ में आज भी आम आदमी की तरह जीना पसंद करते हैं. उनके शौक भी आज भी मिडिल क्लास वाली ही है.
जब वो सब्जी खरीदने जाते हैं तो आम लोगों की तरह वो भी सब्जी वाले से मोलभाव करते हैं जिसकी वजह से उन्हें सब्जी वालों की डांट भी सुननी (Vegetable vendors scold Manoj Bajpayee) पड़ती है. और उन्होंने खुद ही इस बात का खुलासा किया है.
मनोज ने बताया, "मुझे सब्जी खरीदना अच्छा लगता है. बिजी शेड्यूल से जब भी समय मिलता है, तो मैं सब्जियां खरीदने जाता हूं तो बारगेन करने से खुद को रोक नहीं पाता. मैं उनसे थोड़े पैसे कम करने को बोलता हूं तो सब्जीवाले डांट देते हैं मुझे. वो बोलते हैं कि आप जैसे लोगों के मुंह से ये सब अच्छा नहीं लगता सर. फिर मैं उनसे कहता कि मैं तो सिर्फ मोलभाव की प्रैक्टिस कर रहा हूं."
मनोज बाजपेयी ने आगे बताया, "जब मैं अपनी पत्नी शबाना के साथ सब्जी खरीदने जाता हूं और अगर तब सब्जी वाले से मोलभाव करता हूं तो शबाना को ये बिलकुल अच्छा नहीं लगता. मार्केट में वो ऐसे बिहेव करने लगती हैं जैसे मुझे जानती ही नहीं. उन्हें बार्गेनिंग करना बिल्कुल ही पसंद नहीं." उन्होंने ये भी बताया कि सब्जी लाने के लिए वो प्लास्टिक का बैग नहीं, बल्कि कपड़े की थैली लेकर जाते हैं.
इसके अलावा मनोज ने अपनी वाइफ की एक मजेदार आदत के बारे में बताया और कहा कि उनकी वाइफ को विदेश में सेकंड हैंड कपड़ा खरीदना बहुत पसंद है. "शबाना को थ्रिप्ट स्टोर में शॉपिंग करना पसंद है, जहां सेकंड हैंड कपड़े मिलते हैं. हम जब भी विदेश जाते हैं, तो थ्रिपट स्टोर्स ढूंढते हैं और वहां शॉपिंग करते हैं. और जब हमें लगता है कि हमने कुछ कपड़े काफी पहन लिए तो उसे कार्टून में पैक करके अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भेज देते हैं, जो उन्हें जरूरतमंदों को बांट देते हैं. कपड़े फेंकने का कोई मतलब नहीं."