मैं झल्ला गया था, "मीनू, ऐसा तो है नहीं कि तुम पहली बार इंडिया आई हो.पली-बढ़ी तो यहीं हो, अब चार साल विदेश में रहकर विदेशी थोड़ी हो जाओगी… समस्याएं तो हर जगह हैं." वैसे इस ज्ञान का कोई मतलब नहीं था; हम लोग जब से यहां आए हैं, कोई भी अव्यवस्था देखते ही मीनू का "इंडिया में हो, झेलो…" का घिसा-पिटा ताना मारना...
हवाई जहाज के उड़ान भरते ही आंखें मूंदकर सिर कुर्सी पर टिका दिया. मेरा मन सुबह वाली घटना से बाहर नहीं आ पा रहा था. सड़क पर पड़े केले के छिलके पर पांव पड़ते ही मैं बुरी तरह लड़खड़ाया, लेकिन मेरी पत्नी "इंडिया में हो, झेलो…" का ज़हरीला ताना मारकर आगे बढ़ गई थी.
मैं झल्ला गया था, "मीनू, ऐसा तो है नहीं कि तुम पहली बार इंडिया आई हो. पली-बढ़ी तो यहीं हो, अब चार साल विदेश में रहकर विदेशी थोड़ी हो जाओगी… समस्याएं तो हर जगह हैं." वैसे इस ज्ञान का कोई मतलब नहीं था; हम लोग जब से यहां आए हैं, कोई भी अव्यवस्था देखते ही मीनू का "इंडिया में हो, झेलो…" का घिसा-पिटा ताना मारना... और उसके बाद बच्चे का हंसना, मेरे दिल को बार-बार घायल कर रहा था. मीनू के भाई की शादी ना होती तो शायद ये आती भी नहीं.
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"पापा, मुझे बहुत ठंड लग रही है. गले से सीटी की आवाज़ भी आ रही है." बेटा बेचैन हो रहा था.
"अभी ठीक हो जाएगा बाबू… मीनू, जैकेट निकालो इसकी और इन्हेलर भी, तकलीफ़ हो रही है इसको…"
"अरे, नहीं है…"
"पर्स में ये सब नहीं है? हद है यार!"
जैकेट, इन्हेलर सब चेक-इन लगेज में जा चुका था. मैं जाकर विमान कर्मी दल से पूछ आया. कंबल उनके पास भी नहीं था.
बेटे की हालत देखकर हमारे हाथ-पांव फूल रहे थे… तब तक आगे वाली सीट पर बैठी आंटी मुड़ीं, "अस्थमा है क्या बच्चे को? मुझे भी है ना, इसकी हालत देखकर समझ गई… ये लो! शॉल उढ़ाओ पहले, और ये देखो नया इन्हेलर रखा है मेरे पास… 'ऐस्थेलिन' देती हो?"
फटाफट सब सामान मिलने से थोड़ी देर में स्थिति सामान्य हो गई थी. हमारी जान में जान आई. मीनू 'थैंक्स' बोलकर सामान लौटाने लगी, तो उन्होंने वापस लेने से साफ़ मना कर दिया, "अरे, अपने ही पास रखो बेटा, हो सकता है फिर ज़रूरत पड़ जाए. मैं तो अभी यहीं दिल्ली में उतर जाऊंगी, तुम लोगों को आगे लखनऊ तक जाना है."
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मीनू झिझक रही थी, धीरे से मुझसे बोली, "पैसे वो लेंगी नहीं शायद… ये सब ऐसे कैसे ले लें?" अब मेरी बारी थी, मैंने उसका हाथ थपथपाया और मुस्कुराते हुए कहा, "इंडिया में हो,ले लो!"
- लकी
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