सूजी और पथराई आंखें, उपले सा चेहरा, एक्स्प्रेशन का अभाव… ये पहचान है अवसादग्रस्त इंसान की. उसे दूसरे लोगों का हंसना-बोलना भी नहीं भाता. घर के लोग जो कभी जान से प्यारे हुआ करते थे अब जी का जंजाल लगते हैं. बस एकांत भाता है ऐसे लोगों को… ना किसी से बोलना, ना किसी को देखना. दरअसल, इन्हें डर रहता है कि नॉर्मल लोगों के बीच रहने से कही अवसाद का व्रत भंग हो गया तो!
इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा ना हुआ…
ज़िंदगी देने वाले सुन, तेरी दुनिया से दिल भर गयाऽऽ…
मैं अवसाद हूं और ये हैं मेरे फेवरेट सॉन्ग! जी हां, मैं आपका बड़ा ख़ास दोस्त हूं. आप मुझे बुलाओ या मत बुलाओ मैं ढीठ हूं, आपसे मिलने ख़ुद ही चला आता हूं. आजकल मुझे आपके साथ रहने के लिए किसी ख़ास रीज़न की ज़रूरत नहीं है. बड़ा ही फ्लेक्सिबल हूं यारों, छोटी-छोटी बातों पर ही धर दबोचता हूं.
चलिए, मैं आपको ख़ुद से इंट्रोड्यूस कराता हूं. लोग मुझे बीमारी समझ लेते हैं, नहीं भाईसाहब! मैं कोई बीमारी-शीमारी नहीं हूं, मैं तो बस समाज सेवक हूं. लोगों की मदद करना चाहता हूं. ये अलग बात है कि मेरी मदद की ओवरडोज से लोग 'टपक' जाते हैं. पता नहीं क्यों? मैं तो बस उन्हें कंपनी देता हूं.
खैर मैं बता रहा था कि मैं लोगों की किस तरह से हेल्प करता हूं. अगर किसी की ज़िंदगी में बड़ा कांड़ हुआ हो, तो ठीक! अदरवाइज़ मैं बिना नखरें इन कारणों से भी आ जाता हूं.
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• पति/पत्नी से मामूली झड़प.
• फोन का ख़राब होना.
• दिल से बनाई सब्ज़ी का बेस्वाद बनना.
• बच्चों के नंबर (पड़ोसन के बच्चे से) कम आना.
• फेसबुक पोस्ट पर लाइक, कमेंट ना आना.
• रील के व्यूज़ नहीं बढ़ना.
• अपने जैसी सेम ड्रेस किसी और को पहने देखना.
• हेयर कट बिगड़ना.
• रिश्तेदारों का फोन आ जाना.
• बेस्ट फ्रेंड का किसी और से बात करना.
• गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड से ब्रेकअप (आजकल ये बहुत ट्रेंडिंग है)
• पार्टी में अटेंशन ना मिलना.
इन सब के अलावा एक और कारण है…"कोई कारण ना होना" ये बड़ा घातक है! एक तो बंदा अवसाद यानी डिप्रेशन में ऊपर से वज़ह पता नहीं. दिल करता है दोनों हाथों से अपने सिर के बाल नोंच ले. (मैं ऐसे लोगों के बाल इकट्ठे कर विग बनाने वाले अंकल को दे आता हूं).
मैं अपने साथ ले आता हूं बेचैनी! नींद को हरी चटनी लगा खा जाता हूं और सुकून को मोमोज़ वाली तीखी चटनी के साथ निगलता हूं. बस पल भर में मोमोज़ की तरह सुकून भी गायब! बंदे की शक्ल ऐसी हो जाती है जैसे घर के बाहर टंगा नज़रबट्टू हो, मजाल है जो हंसी की एक लेयर भी आ जाए. और कभी कहीं संकट में फंस बंदा मुस्कुरा दिया, फिर उसकी खैर नहीं! तकिए को निचोड़ने लायक होने तक उसे रुलाता हूं. बंदा समझ ही नहीं पाता कि रो क्यों रहा है.
सूजी और पथराई आंखें, उपले सा चेहरा, एक्स्प्रेशन का अभाव… ये पहचान है अवसादग्रस्त इंसान की. उसे दूसरे लोगों का हंसना-बोलना भी नहीं भाता. घर के लोग जो कभी जान से प्यारे हुआ करते थे अब जी का जंजाल लगते हैं. बस एकांत भाता है ऐसे लोगों को… ना किसी से बोलना, ना किसी को देखना. दरअसल, इन्हें डर रहता है कि नॉर्मल लोगों के बीच रहने से कही अवसाद का व्रत भंग हो गया तो!
जिन्हें मुझ से दोस्ती रखनी है, उन्हें हर हाल में हंसमुख, ज़िंदादिल और पॉजिटिव लोगों से दूरी बनानी होगी. अपनी निगेटिविटी को बढ़ाने के लिए दिन में कई बार दोहराना होगा, "मैं परेशान हूं, मेरा कोई नहीं है, मैं अकेला हूं!"
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इस मंत्र का जाप करने के साथ ही आपको ओंधे मुंह बिस्तर पर गिरकर दर्द भरे नगमे सुनने चाहिए. रोना बहुत ज़रूरी है… रोइए! बुक्का फाड़ के रोइए. आप लोग मेरा साथ दे कर तो देखिए मैं जल्द ही पूरी दुनिया को अवसाद से पोत दूंगा. बस, हंसी और हंसोड़ लोगों को देख तिरछा होंठ कर 'हूंह' कहिए और अवसाद में रोते रहिए.
- संयुक्ता त्यागी
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