मां बनना हर नारी का सपना होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ गंभीर बीमारियों की स्थिति में मां बनना ख़तरनाक हो सकता है. यहां पर हम दोनों ही स्थितियों पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे, एक वो जब कई तरह की शारीरिक द़िक्क़तों से गुज़र रही महिला बच्चे की ख़्वाहिश रख रही है और दूसरा प्रेग्नेंसी के दौरान ही कुछ ऐसी जटिलताएं हो जाती हैं, तब मां-शिशु दोनों की जान पर बन आती है. इस विषय में डॉ. सी. केतु ने कई उपयोगी जानकारियां दीं.
हायपरटेंशन
यदि आप हायपरटेंशन की मरीज़ हैं, तो ऐसे में प्रेग्नेंसी में हार्ट प्रॉब्लम की समस्या बढ़ सकती है. इससे स्ट्रोक का रिस्क भी रहता है, जो कई बार जानलेवा साबित होता है. दरअसल, हाइपरटेंशन के कारण मां को हार्ट डिजीज का ख़तरा बढ़ जाता है. इससे प्री-एक्लेमप्सिया का रिस्क होता है, जो मां-शिशु दोनों के लिए रिस्की हो सकता है.
प्री-एक्लेमप्सिया
प्री-एक्लेमप्सिया में ब्लड वेसल्स की द़िक्क़तों के चलते प्लासेंटा सही तरी़के से विकसित नहीं होता है और ऐसा हाइपरटेंशन के कारण होता है. आगे चलकर इसका किडनी, लिवर, दिल आदि पर प्रभाव पड़ता है. इन सबके कारण गर्भावस्था में तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
यह भी पढ़ें: पैर हिलाना अपशकुन नहीं, इस बीमारी का संकेत (Leg Shaking Habit Is Good Or Bad)
मोटापा
यदि आप ओवरवेट हैं. आपका वज़न इतना अधिक है कि आप अपनी रोज़मर्रा के कामोें को भी आसानी से नहीं कर पाती हैं, तब ऐसी स्थिति में कंसीव करने से पहले आपको गर्भ धारण से जुड़ी तमाम बातों पर गहराई से विचार करना होगा. मोटापा अपने आपमें एक बहुत बड़ी समस्या है और उस पर आप मां बनने का सोचती हैं, तो यह आपके और शिशु दोनों के लिए रिस्की हो सकता है.
यदि आपका वज़न बहुत अधिक है और गर्भ धारण करती हैं, तो गर्भावस्था के दौरान कई तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे- सिजेरियन डिलीवरी, प्रीटर्म बर्थ यानी समय से पहले डिलीवरी होना प्रमुख हैं. इसके कारण मां-शिशु दोनों के ही हेल्थ पर कई तरह के निगेटिव प्रभाव पड़ते हैं.
ओबेसिटी यानी मोटापे को लेकर सबसे बड़ी समस्या यह है कि आमतौर पर लोग इसे बीमारी नहीं मानते. जबकि मोटापा एक मेटाबॉलिक बीमारी है, जिसके कारण शरीर में फैट का लेवल बढ़ता है. वेट बढ़ने से हेल्थ से जुड़ी कई समस्याएं शरीर को घेर लेती हैं. फैट्स के कारण हमारे शरीर में कई बदलाव होने लगते हैं, जो आगे चलकर गंभीर बीमारी बनते हैं और जानलेवा साबित होते हैं. मोटापे के कारण दिल की बीमारी, डायबिटीज़, कैंसर, स्ट्रोक जैसी बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है. ऐसे में ओवरवेट महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी जानलेवा हो सकती है.
यहां ध्यान देनेवाली बात यह भी है कि मोटापे से संघर्ष कर रही स्त्रियों के बच्चों में ओबेसिटी का रिस्क बहुत अधिक होता है. ऐसा जेनेटिक मॉडिफिकेशन के कारण होता है. वज़न बढ़ने के कारण अक्सर जेनेटिक परिवर्तन होते हैं, जो पैरेंट्स से शिशु में जाते हैं, जैसे इंटर जनरेशनल डायबिटीज़.
साथ ही जेस्टेशनल डायबिटीज़ का प्रभाव मां के हेल्थ पर तो होता ही है, लेकिन शिशु के लिए भी यह बेहद ख़तरनाक होता है. इसके कारण शिशु में कंजेनिटल हार्ट डिजीज और जन्मजात दिल की बीमारी का रिस्क अधिक होता है.
यह भी पढ़ें: हाई कोलेस्ट्रॉल को कम करने के 13 अचूक उपाय (13 Natural Remedies for High Cholesterol)
गर्भावस्था में हार्मोंस के बदलाव के कारण शारीरिक स्थितियों की वजह से कुछ बीमारियां शरीर को घेर लेती हैं. वैसे इनमें से कुछ समस्याएं शिशु के जन्म के बाद ख़त्म हो जाती हैं. आइए, उन पर एक नज़र डालते हैं.
- प्रेग्नेंसी के समय अपच, कब्ज़ की तकलीफ़ आमतौर पर सभी स्त्रियों को होती है. यदि इसे गंभीरता से न लिया जाए, तो आगे चलकर पाइल्स की बीमारी हो सकती है. इसे कंट्रोल में ना किया जाए, तो इसकी वजह से गर्भावस्था में खून की कमी यानी एनीमिया भी हो सकता है.
- दरअसल, गर्भावस्था में प्रोजेस्टेरॉन हार्मोन डायजेस्टिव सिस्टम में गड़बड़ी पैदा करता है, इस कारण कब्ज़ की समस्या उत्पन्न होती है. गर्भावस्था में जी मिचलाने की परेशानी होने पर स्त्रियां भोजन से दूरी बनाने लगती हैं, इस वजह से भी कब्ज़ होता है.
- गर्भावस्था में आयरन लेने से खून की कमी की समस्या तो दूर होती है, पर इसके साइड इफेक्ट के तौर पर कॉन्सिटीपेशन यानी कब्ज़ की प्रॉब्लम होने लगती है.
- गर्भावस्था के 20वें हफ़्ते के बाद हाई ब्लड प्रेशर की परेशानी होने लगती है. यह इसलिए होता है कि गर्भावस्था में गर्भवती का वज़न बढ़ने के साथ खून की मात्रा भी सामान्य से दुगुनी हो जाती है. बीपी हाई होने पर डिलीवरी में द़िक्क़तें आती हैं, जिससे मां-शिशु दोनों का हेल्थ प्रभावित होता है.
- प्रेग्नेंसी में बीपी नॉर्मल रहे, इसके लिए ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ करें. नमक उचित मात्रा में लें. ध्यान-प्राणायाम के साथ लाइट एक्सरसाइज़ करें. डिब्बाबंद भोजन, फास्ट फूड से दूर रहें.
- आंकड़ों के अनुसार, तक़रीबन नौ प्रतिशत महिलाओं को गर्भावस्था के समय डायबिटीज़ की परेशानी होती है, जिससे प्रेग्नेंसी में द़िक्क़तें आती हैं.
- प्रेग्नेंसी में हाइपोथाइरॉयडिज़्म या हाइपरथाइरॉयडिज़्म की बीमारी ऑटो इम्यून डिजीज के कारण होती है. ऐसे में मां व शिशु दोनों के लिए ही थाइरॉयड का संतुलित होना ज़रूरी होता है. यदि इसमें कोई गड़बड़ी होती है, तो प्री मैच्योर डिलीवरी या फिर गर्भपात तक हो सकता है. शिशु के मेंटल हेल्थ पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है.
- गर्भावस्था में 35 या 36 वें हफ़्ते में लिवर की बीमारी हेपेटाइटिस ई की समस्या हो सकती है. यूं तो आम व्यक्ति के लिए यह कोई परेशानी वाली बात नहीं है, लेकिन प्रेग्नेंट वुमन के लिए ये काफ़ी रिस्की होती है. ये हार्मोन की अनियमितता की वजह से होता है.
एक पहलू यह भी…
जिन कपल्स को कंसीव करने में प्रॉब्लम आ रही है या फिर गर्भपात की समस्या हो रही है,
आईवीएफ द्वारा भी गर्भ नहीं ठहर पा रहा है, तो उन्हें जेनेटिक टेस्ट कराना चाहिए. फर्टिलिटी से जुड़ी प्रॉब्लम के बारे में भी इस टेस्ट से जान सकते हैं. जहां जींस में गड़बड़ी की वजह से कुछ पुरुषों में कम स्पर्म बनते हैं, वहीं स्त्रियों में मेनोपॉज़ से पहले ही कम एग्स बनते हैं या फिर एग्स बनने ही बंद हो जाते हैं. इस कारण पैरेंट्स बनने में मुश्किलें आती हैं.
यदि बचपन में ही जेनेटिक टेस्ट कराते हैं, तो इस बात की जानकारी मिल सकती है कि भविष्य में वो पैरेंट बन सकता है या नहीं. ऐसे में समय पर ट्रीटमेंट शुरू कर सकते हैं.
साथ ही बीमारी के प्रभाव दिखाने से पहले स्पर्म व एग्स फ्रीज भी करवा सकते हैं, जिससे भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर आईवीएफ की सहायता ली जा सके.
यह भी पढ़ें: बॉडी डिटॉक्स करने के स्मार्ट टिप्स (Smart Tips To Detox Your Body)
हेल्थ अलर्ट
- हर साल कम से कम दस हज़ार प्रेग्नेंसी डेथ मलेरिया के कारण होती है.
- हेपेटाइटिस, रूबेला, चिकन पॉक्स, एचआईवी से पीड़ित मरीज़ों से गर्भवती महिला को दूर रहना चाहिए, वरना मां-शिशु दोनों के लिए जानलेवा हो सकता है.
- रिसर्च के अनुसार, जिन स्त्रियों का अबॉर्शन हुआ होता है या फिर मृत शिशु पैदा होता है, उन्हें स्ट्रोक का ख़तरा अधिक होता है.
- ऊषा गुप्ता