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कहानी- स्पर्श… (Short Story- Sparsh…)

Writer Vinita Rahurikar
विनीता राहुरीकर

“मैं भी यही सोच रही हूं… क्या हम सचमुच में अपने बच्चे से प्यार करते हैं? हम ईशान के लिए जो कुछ करते हैं, क्या उसे प्यार कहते हैं? या हमारे माता-पिता ने हमारे लिए जो किया वो प्यार था. तब पिज़्ज़ा, नूडल्स और चॉकलेट नहीं थी, लेकिन मां अपने हाथ से कितने प्यार से खाना खिलाती थी.” देर तक अपने में डूबे रहने के बाद इरा ने जवाब दिया.

रेडियो जॉकी ने रात्रि कालीन अंतिम सभा ख़त्म करते हुए उस दिन बहुत अजीब सा एक सवाल पूछा, “क्या आज आपने दिनभर में किसी भी समय में एक बार भी अपने बच्चों को प्यार किया?” और इतना कहकर जॉकी ने शुभरात्रि कहा और कार्यक्रम समाप्त कर दिया.
इरा ने पास में रखा हुआ रिमोट उठाकर रेडियो बंद किया और सोचने लगी, यह क्या अजीब बात बोली आज रेडियो जॉकी ने… भला यह भी कोई पूछने की बात है? सभी माता-पिता अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं. कौन ऐसा होगा, जो अपने बच्चों से प्यार नहीं करता. स़िर्फ आज की ही बात क्यों, हम तो हर दिन, हर पल, जीवनभर ही अपने बच्चे से बहुत प्यार करते हैं.
इरा ने सिर झटक दिया. वह दोबारा व्हाट्सएप और फेसबुक मैसेंजर पर अपने दोस्तों से चैट करने लगी. बगल में बैठा विशाल भी मोबाइल में आंख गड़ाकर वही कर रहा था. आज के आपाधापी वाले युग और अस्त-व्यस्त जीवनशैली ने रात की नींद भी छीन ली है. पलंग पर लेटने के बाद भी देर तक नींद ही नहीं आती, तब कोई क्या करे. वह तो भला हो इंटरनेट का, समय भी कट जाता है और दूर-दराज के दोस्तों-रिश्तेदारों का हालचाल पूछना और बातचीत भी हो जाती है.


मगर आज अचानक दोनों की उंगलियां स्थिर हो गईं. मस्तिष्क में बार-बार रेडियो पर सुना वाक्य घूम रहा था. दोनों के ही मन में एक अजीब सी उथल-पुथल मच गई थी. मोबाइल के स्क्रीन पर संदेश, जोक्स, वीडियो सब आते जा रहे थे, लेकिन आंखें वह सब पढ़ ही नहीं पा रही थीं. आंखों के सामने तो और ही कुछ घूम रहा था. दोनों ही सोच रहे थे.
उनका छह वर्षीय इकलौता बेटा ईशान अपने कमरे में आरामदायक और सुंदर ख़ासतौर पर उसके लिए डिज़ाइन किए गए बिस्तर पर सो रहा था. ईशान के पास अपना ख़ुद का कमरा था. बच्चों की पसंद के हिसाब से, उसकी ज़रूरत के पूरे सामान से सुसज्जित. ढेर सारे महंगे खिलौने थे. वह शहर के एक अच्छे और महंगे स्कूल में पढ़ता है. प्यार करना और किसे कहते हैं…
विशाल और इरा जब छोटे थे, तब उनके माता-पिता तो इतने समृद्ध भी नहीं थे. शायद ही एक आध खिलौना आया होगा कभी उनके लिए. तभी उन्होंने ईशान के लिए ढेर सारे खिलौने ख़रीदे हैं, ताकि उसे रत्ती भर भी अभाव न लगे. कभी खिलौनों के लिए उसका मन न तरसे. आख़िर विशाल और इरा एक बड़ी नामचीन कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, तो अपने इकलौते बेटे को वह किसी भी तरह की कमी कैसे होने दे सकते हैं. उसी के लिए तो कमा रहे हैं.
फिर?

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फिर भी आज मन बच्चे से प्यार करने की बात पर विचलित क्यों हो गया? इरा ने बेचैनी से विशाल की ओर देखा, तो पाया कि वह भी मोबाइल हाथ में पकड़े हुए सामने रेडियो की ओर घूरता हुआ अपने आप में खोया हुआ था. दोनों ही जैसे झटके से आभासी दुनिया से कटकर वास्तविकता में आकर अपना विश्‍लेषण कर रहे थे. इरा और विशाल ने अपने-अपने मोबाइल रख दिए.
“क्या हम अपने बच्चे से प्यार नहीं करते?” पांच मिनट की चुप्पी के बाद विशाल ने इरा से पूछा.
इरा चुप थी.
क्या पैसे से ख़रीद कर दिए जानेवाले खिलौनों और सुख-सुविधाओं के सामान को ही वास्तव में प्यार कहते हैं? कब आख़िरी बार ईशान को गोद में लिया था, कब उसके माथे पर स्नेह से चुंबन लिया था, कब उसे कहानी सुनाई थी, अपने हाथों से उसे खाना खिलाया था, याद नहीं…
करियर की चकाचौंध, पैसा कमाने की होड़ और घर लौटने के बाद रिलैक्स करने के नाम पर आभासी दुनिया के आभासी रिश्तों की धुंध में खो जाना- यही दिनचर्या थी उनकी. वास्तव से अधिक आभासी से अपनत्व टेक्नोलॉजी के विकास में मनुष्य को कितना पर्सनलाइज्ड कर दिया है.
दूरियां तो कम नहीं हुईं, उल्टे मनुष्य अपने व्यक्तिगत खोल में सिमटता चला गया है. पर्सनल अकाउंट, पर्सनल फोन, पर्सनल एफबी और व्हाट्सऐप और पर्सनल फ्रेंड्स, घर-परिवार और साथ रहनेवालों से अलग-थलग व्यक्ति स्वयं में ही डूबा रहता है. दूर देशों में बसे लोगों से चैट करने में मशगूल होकर साथ में बैठे व्यक्ति को भी भूल जाता है. इस तकनीकी विकास ने हमें पास लाया है या दूर कर दिया है.
ईशान को जो समय देना चाहिए, वह समय दोनों चैटिंग को दे देते हैं. दिनभर आया के पास रहनेवाला ईशान कितना तरस जाता होगा माता-पिता के स्पर्श के लिए, स्नेह के लिए. आज रेडियो जॉकी के एक प्रश्‍न ने उन्हें अपने अंतर्मन में झांकने और सोचने पर मजबूर कर दिया.
“मैं भी यही सोच रही हूं… क्या हम सचमुच में अपने बच्चे से प्यार करते हैं? हम ईशान के लिए जो कुछ करते हैं, क्या उसे प्यार कहते हैं? या हमारे माता-पिता ने हमारे लिए जो किया वह प्यार था. तब पिज़्ज़ा, नूडल्स और चॉकलेट नहीं थी, लेकिन मां अपने हाथ से कितने प्यार से खाना खिलाती थी.” देर तक अपने में डूबे रहने के बाद इरा ने जवाब दिया. 
“हां इरा, कभी घर के कामों में मां व्यस्त रहती तो दादी, बुआ, चाची, ताई, बहनें कितने सारे रिश्ते थे हमारे पास… कोई भी गोद में उठा लेता था, दुलार लेता, खाना खिला देता. नहीं खाते थे तो कितनी मनुहार कर करके खिलाते थे.” विशाल पुरानी यादों में खो गया.
बचपन के रिश्तों और भरे-पूरे संयुक्त परिवार की ना जाने कितनी प्यार भरी यादें और बातें मन में कौंधने लगी थीं, जिन्हें उसने इस आपाधापी और चकाचौंध भरे जीवन में ना जाने कब से भुला दिया था.


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इरा को भी याद आया, वह नानी, दादी, मौसी, बुआ का प्यार से गोद में बिठाकर खाना खिलाना. शादी होने तक कभी याद नहीं इरा को कि उसे अपने हाथ से अपनी थाली परोसनी पड़ी होगी. दादी नहीं, तो मां हमेशा उसकी थाली लगाती और उसका खाना ख़त्म होने तक उसके साथ बैठती. लेकिन ईशान? उसे ममता की छांव में सहेजनेवाला कौन है? उसके पास तो सख्त अनुशासन में रखने वाली नैनी और एक टयूटर है बस.
नैनी की सख्त भाव-भंगिमा से डरा हुआ बच्चा कैसे अपना खाना ख़त्म करता होगा और ऐसे डर में खाया हुआ खाना क्या पोषण दे पाता होगा उसे. तभी तो इतना सब होते हुए भी कैसा मुरझाया हुआ और उदास सा लगता है वह.
आजकल के बच्चों का जीवन सच में समृद्ध है क्या? क्या समृद्धि स़िर्फ पैसों से ही होती है?
विशाल जब छोटा था, तब मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलते हुए किसी बात पर उसकी कहासुनी हो गई थी. तब उम्र में उससे दो-तीन साल बड़े दो लड़के उसे मारने उसकी तरफ़ बढ़े. विशाल के तो डर के मारे पैर ही ज़मीन से चिपक गए, वह भाग भी नहीं पाया. तभी पीछे से उसके बड़े भैया जो काफ़ी हट्टे-कट्टे थे, आकर उसके साथ खड़े हो गए और उन्होंने उसका हाथ थाम लिया.
सुरक्षा और विश्‍वास का कैसा गहरा और स्नेहपूर्ण आश्‍वासन था भैया के स्पर्श में कि विशाल का सारा डर एकदम से छूमंतर हो गया. भैया को देखते ही दोनों लड़के भाग गए. क्या ईशान के पास सुरक्षा का वैसा प्रेम पूर्ण आश्‍वासन है? क्या महंगे खिलौने और वीडियो गेम उसे वो एहसास दे सकते हैं, वह सुरक्षा दे सकते हैं?
आज तक उन दोनों ने क्या आजकल के अधिकतर माता-पिता ने इस पहलू के बारे में कभी नहीं सोचा होगा. उनकी भावनाओं की नदी तो कब की बहना भूलकर शांत स्थिर जलाशय में तब्दील हो चुकी थी. बल्कि सच कहा जाए तो सूख ही चली थी. लेकिन आज आरजे के एक प्रश्‍न ने उस स्थिर जलाशय में फिर से तरंगें उठा दी थीं. उन्हें माता-पिता के रूप में अपना विश्‍लेषण और मूल्यांकन करने पर मजबूर कर दिया था.
मोबाइल पर लगातार मैसेजेस की बीप आ रही थी, लेकिन दोनों का ही मन नहीं लग रहा था कि मैसेज बॉक्स ओपन करके पढ़ें और जवाब दें. विशाल ने अपना मोबाइल साइलेंट पर करके एक ओर रख दिया.
“आज सुबह ईशान कुछ काग़ज़ दिखाने आया था. मैं फोन कॉल पर था, तो देख नहीं पाया. इशारे से उसे कह दिया था तुम्हें दिखाने को. क्या था वह? कुछ स्कूल की तरफ़ से नोटिस वगैरह था क्या?” विशाल को अचानक याद आया.
“नहीं कह रहा था कि कुछ उसने बनाया है.” इरा सकुचाती हुई बोली.
“क्या बनाया है?” विशाल ने उत्सुकता से पूछा.
“मैं देख नहीं पाई ऑफिस जाते हुए काम की जल्दी में थी.” इरा झूठ बोलकर असली बात छुपा गई. किस मुंह से कहती कि ईशान बहुत उत्साह से उसे काग़ज़ पर कुछ बना कर दिखाने लाया था.
“मां, देखो ना मैंने क्या बनाया है…”
लेकिन इरा तब ऑफिस में मिले प्रमोशन की ख़बर पर एफबी पर आए बधाई संदेशों को पढ़ने और उनका जवाब देने में व्यस्त थी. उसने उस समय देखा तक नहीं कि बच्चा क्या देखने को उससे मनुहार कर रहा है.
इरा की मां ने क्या उसे इस तरह से उपेक्षित किया था कभी? मां कितनी भी व्यस्त क्यों ना रहती थी, लेकिन इरा या उसके भाई-बहनों की बातें सबसे पहले सुनती थी. भले ही कितनी भी साधारण सी बात क्यों ना हो, पर मां उस पर पूरा ध्यान और समय देती थी. 


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फिर आज की पीढ़ी की प्राथमिकताएं क्यों बदल गईं? कब और कैसे बदल गईं? ईशान जब भी पास आने की, कुछ कहने की कोशिश करता, दोनों ही उसे झिड़क देते. क्यों इतने आत्मकेंद्रित हो गए वे?
विशाल और इरा के मन भारी हो गए. संयुक्त परिवारों की परंपरा टूट गई, तो बच्चों से वैसे ही सारे रिश्ते टूट गए और अब तो माता-पिता भी विमुख हो गए, तो बच्चा स्नेह के लिए आख़िर किसका मुंह तकेगा.
दोनों उठकर ईशान के कमरे में चले गए. ईशान एक टेडी से चिपक कर सो रहा था. उसने टेडी बेयर का एक हाथ अपने ऊपर रखा था और उसके गले से ऐसे चिपका
हुआ था जैसे बच्चा मां के गले से चिपकता है सोते समय.
पलंग पर तकिए के पास एक काग़ज़ पड़ा था. विशाल ने काग़ज़ उठाकर देखा.
आड़ी-तिरछी रेखाओं से ईशान ने एक चित्र बनाया था. एक पलंग पर माता-पिता के बीच में सोया बच्चा. चित्र में बच्चे के ऊपर माता-पिता ने अपना एक-एक हाथ रखा हुआ था. चित्र का बच्चा नींद में भी मुस्कुरा रहा था.
इरा की आंखें भर आईं. चित्र का बच्चा मुस्कुरा रहा था और उसका अपना
बच्चा- कुम्हलाया हुआ, उदास सा एक बेजान खिलौने में स्नेह की धड़कन ढूंढ़ता हुआ उससे चिपक कर सो रहा है. बच्चा जो बोल कर दोनों को बता नहीं पाया, अपनी इस इच्छा को उसने चित्र के माध्यम से दोनों को समझाना चाहा कि उसकी ख़ुशी माता-पिता के सानिध्य में है, खिलौनों में नहीं. तभी चित्र में उसके पलंग पर स़िर्फ माता-पिता थे खिलौने नहीं.
विशाल ने ईशान को गोद में उठाकर अपने कमरे में दोनों के बीच सुला लिया. इरा ने उसके सिर पर हाथ फेरा. स्नेह स्पर्श को पहचानकर ईशान नींद में ठीक चित्र के बच्चे की तरह मुस्कुरा दिया. अब उन्हें जॉकी की बात का अर्थ समझ में आया.
प्रेम पूर्ण स्पर्श ही सच्चा प्यार है. स्पर्श किसी भी दूसरी वस्तु से अधिक क़ीमती है. हां, अब वे दोनों आज से अपने बच्चे से सचमुच ही प्यार करेंगे. गले लगाएंगे, अपने हाथों से खाना खिलाएंगे.
कितना सुख मिल रहा है उसके नाज़ुक ममतामयी कोमल स्पर्श में. उस रात बड़े सालों बाद दोनों को बड़ी गहरी नींद आई. मन ही मन उन्होंने रेडियो जॉकी को धन्यवाद दिया और कहा, “हां, आज हमने अपने बच्चे को प्यार किया और हर दिन, हर पल करेंगे…”

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