रेटिंग: ***
जादू-टोना, वशीकरण आदि पर आधारित फिल्मों से दर्शक यह अपेक्षा ज़रूर रखते हैं कि फिल्म दहशत ज़रूर पैदा करेगी. लेकिन अफ़सोस अजय देवगन अभिनीत व निर्मित शैतान इस मामले में निराश करती है. फिल्म डराती तो नहीं, पर अंत आते-आते एक संदेश कि माता-पिता अपने बच्चों की सुरक्षा, ज़िंदगी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, ज़रूर देती है.
शैतान फिल्म पिछले साल की साइकोलॉजिकल थ्रिलर गुजराती मूवी ‘वश’ की रीमेक है. कबीर बने अजय देवगन का हंसता-खेलता परिवार है, फिल्म की शुरुआत भी उसी तरह होती है. कबीर की बेटी जाह्नवी जो जानकी बोदीवाला हैं, ने गज़ब का परफॉर्मेंस दिया है. उनकी और शैतान बने वनराज, आर. माधवन की जुगलबंदी देखते ही बनती है.
कैसे जाह्नवी को लड्डू खिलाकर वनराज उसे अपने वश में कर लेता है. इसके बाद शैतान का शुरू होता है अजीबोग़रीब शैतानी खेल. वो जाह्नवी से जो कहता है उसके वशीभूत वो करती जाती है, फिर वो अपने पिता को थप्पड़ मारना हो, बेइंतहा हंसना, चाय की पत्ती खा जाना हो या भाई ध्रुव को खेलते डराना-परेशान करना, यहां तक की जान से मारने के लिए आमादा तक हो जाना है. ये सभी सीन्स ऑडियंस को हैरान-परेशान कर देते हैं.
शैतान माधवन पूरी दुनिया पर हुकूमत करना चाहता है. वो भगवान बनना चाहता है. इस मक़सद से जाह्नवी के पैरेंट्स को इस हद से ज़्यादा परेशान करता है. वो उनकी बेटी को वशीकरण द्वारा अपने काबू में करके अपने साथ ले जाना चाहता है, किंतु माता-पिता की अनुमति से. वो पिता जो अपनी बेटी को बेइंतहा प्यार करता है, इस हद तक व्यथित हो जाता है कि बेटी को ले जाने के लिए हामी भर देता है.
मां की भूमिका में ज्योतिका ने हिंदी फिल्मों में अपनी सेंकड इनिंग में लाजवाब एंट्री की है. बेटी को बचाने के लिए मां कुछ भी कर सकती है, यहां तक की शैतान से भिड़ने से भी नहीं कतराती. ज्योतिका का दर्द, क्रोध, लाचारी सब कुछ बेहद प्रभावित करता है. अजय देवगन पिता के दर्द, बेबसी और बाद में प्रतिशोध को इससे पहले भी कई फिल्मों में दिखा चुके हैं, वे उसे ही आगे बढ़ाते हैं. लेकिन उनकी ख़ामोश आंखें बहुत कुछ कहती हैं. क्लाइमेक्स में उनके माधवन के साथ संवाद प्रभावशाली हैं. यहां पर निर्देशक विकास बहल स्ट्रांग मैसेज दे जाते हैं कि किसी भी ग़लत शख़्स को ग़लत तरी़के से मां-पिता से नहीं टकराना चाहिए, वरना उसका अंज़ाम अच्छा नहीं होता. लेकिन ‘क्वीन’ जैसी लाजवाब फिल्म बना चुके विकास बहल कई जगहों पर चूक भी जाते हैं.
शुरू से फ्लो में बहती कहानी अचानक अजीबोगरीब मोड़ ले लेती है.
पूरी फिल्म एक रात की है. कैसे कबीर के फार्म हाउस पर वनराज आता है और जाह्नवी पर काला जादू कर अपने वश में कर पूरे परिवार के साथ तांडव करवाता है, वो सब देखने काबिल है. ये सभी दृश्य थोड़ा डराते, रोमांचित ज़रूर करते हैं.
सुधाकर रेड्डी व एकांती की सिनेमैटोग्राफी बढ़िया है. संदीप फ्रांसिस की बेहतरीन एडिटिंग फिल्म को बांधे रखती है. अमित त्रिवेदी व देवी श्री प्रसाद का म्यूज़िक ठीक-ठाक है.
अजय देवगन फिल्म्स, जियो स्टूडियाज व पैनोरमा स्टूडियो के बैनर तले बनी क़रीब सवा दो घंटे की शैतान सुपर नेचुरल हॉरर तो नहीं, पर थोड़ी थ्रिलर अवश्य है. निर्माता के तौर पर अजय देवगन के अलावा ज्योति देशपांडे, कुमार मंगत पाठक और अभिषेक पाठक जुड़े हुए हैं.
आर. माधवन, जानकी बोदीवाला, ज्योतिका, अंगद राज और अजय देवगन सभी का अभिनय बेमिसाल है. लेकिन पटकथा पर और अधिक काम करने की ज़रूरत थी. जिस डर और दहशत की पब्लिसिटी की गई थी, वो फिल्म में मिसिंग लगी. फिर भी माधवन व अजय देवगन के फैन और जाह्नवी बनी जानकी के लाजवाब अदाकारी के लिए फिल्म देखी जा सकती है. शेष फिर...
- ऊषा गुप्ता