कश्मीर के मुद्दे को लेकर तमाम फिल्में बनी हैं, लेकिन हक़ीक़त, तथ्य, इतिहास की बातों को इतनी गहराई व छानबीन के साथ प्रस्तुत करना फिल्म के लेखक आदित्य धर और मोनल ठाकुर की काबिलियत को दर्शाता है. यूं तो फिल्म का ट्रेलर देखकर ही अंदाज़ा हो गया था कि उरि- द सर्जिकल स्ट्राइक के निर्देशन के बाद निर्माता के तौर पर आदित्य धर कुछ ख़ास लेकर आए हैं. वाकई में पौने तीन घंटे की फिल्म पूरी तरह से रोमांच और उत्सुकता के साथ दर्शकों को बांधे रखती है. यामी गौतम का एक्शन के साथ इमोशन दिल को छू जाता है. अपने पिता को खोने का दर्द, देशभक्ति और एक बेटी का कर्तव्य सब में वे बेहतरीन रहीं.
५ अगस्त, २०१९ को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद ३७० को निरस्त करने का निर्णय लिया था. यह वही आर्टिकल ३७० है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था और आज़ादी से यानी साल १९४७ से ही बहस का विषय बना हुआ था. तब किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इस धारा को खारिज करने के बाद जम्मू-कश्मीर ही नहीं देशभर में शांतिपूर्ण माहौल रह पाएगा. लेकिन उस समय न केवल यह ऐतिहासिक फ़ैसला सफल रहा, बल्कि बिना किसी शोर-शराबे, दंगे-फसाद के आपसी भाईचारे व प्रेम को दर्शाते हुए सभी ने सहयोग भी दिया.
फिल्म में इस अनुच्छेद को राज्यसभा-लोकसभा में प्रस्तुत करने से पहले प्रधानमंत्री के कार्यालय की सचिव राजेश्वरी, प्रियामणि की टीम के साथ पूरी तैयारी, हर स्तर पर हर पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सावधानियां, चौंकानेवाले तथ्य, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राष्ट्रपति की हाई लेवल की मीटिंग सब पूरे विस्तार से दिखाया गया है. पीएमओ सचिव के रूप में प्रियामणि लाजवाब रहीं. वे जब-जब पर्दे पर आती हैं एक जादू सा चल जाता है. उनका अभिनय, ग्रेसफुल पहनावा, डायलॉग बेहद प्रभावित करता है.
इसे छह अध्याय में बांटा गया है, जो आंतकवादी बुरहान के एनकाउंटर से शुरू होती है. फिल्म में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे हमारे दस्तावेजों के साथ भी छेड़खानी की गई थी. लेकिन कुछ चीज़ें खटकती भी हैं, ख़ासकर जब पुराने सरकारी पुस्तकालय से दस्तावेजों में हुई चूक के पेपर्स को सबूत के तौर पर इकट्ठा करनेवाला सीन. थोड़ा फिल्मी भी है, पर फिल्मों में तो थोड़ी लिबर्टी ली जा सकती है.
हम घर बैठे कितनी आसानी से कह देते हैं कि यह फ़ैसला सही था या फिर वो निर्णय ग़लत था, परंतु उसकी पृष्ठभूमि को हम कितना समझ पाते हैं? आर्टिकल ३७० को हटाने में न जाने कितने दस्तावेजों को देखा-समझा गया, इन सब बातों की भी जानकारी मिलती है. अक्सर इतिहास में घटी बड़ी घटनाओं की छोटी-छोटी बातों को जानने की उत्सुकता हम सभी में रहती है और निर्देशक आदित्य सुहास जंभाले ने अपनी बेहतरीन निर्देशन से उन जिज्ञासों को बख़ूबी संतुष्ट किया है.
यश चौहान की भूमिका में वैभव तत्ववादी लाजवाब रहे हैं. उनकी उपस्थिति माहौल को ख़ुशनुमा बनाती है. इसके अलावा राज जुत्सी, दिव्या सेठ, सुमित कौल, स्कन्द ठाकुर, इरावती हर्षे, राज अर्जुन, किरण कर्माकर (गृहमंत्री) और अरुण गोविल (प्रधानमंत्री) ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है.
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने कश्मीर की एक सभा में भाषण देते हुए इस फिल्म का ज़िक्र किया था, जिसे यामी गौतम ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट्स पर शेयर करते हुए उन्हें धन्यवाद भी कहा था.
"पूरा का पूरा कश्मीर भारत का हिस्सा था, है और रहेगा…" जब गृहमंत्री इसे अपने अंदाज़ में बोलते हैं, तो हॉल तालियों से गूंज उठता है. फिल्म में ऐसे कई जज़्बातों से भरे प्रभावशाली संवाद हैं.
१४ फरवरी २०१९ को आतंकवादियों द्वारा पुलवामा पर किए गए हमले में शहीद हुए ४० शहीद जवानों की कहानी भी ग़मगीन करने के साथ झिंझोड़ देती है.
फिल्म की सबसे अच्छी बात यह भी रही कि बेवजह का गीत-संगीत नहीं दिया गया है. आंधी… इश्क़ तेरा… दुआ… जुबिन नौटियाल, शाश्वत सचदेव, क्लिंटन, शाहजाद अली की आवाज़ों में अच्छा बन पड़ा है. फिल्म की सिनेमैटोग्राफी व बैकग्राउंड म्यूज़िक बढ़िया है. वाकई में सिद्धार्थ वासानी की सिनेमैटोग्राफी उम्दा है. आदित्य धर के साथ ज्योति देशपांडे और लोकेश धर भी निर्माता रहे हैं फिल्म के. जिओ स्टूडियो प्रेजेंट्स और एबी62 स्टूडियोज़ प्रोडक्शन की यह फिल्म इस साल की बेहतरीन फिल्मों से एक है इसमें कोई दो राय नहीं.
आर्टिकल ३७० का जन्म कैसे हुआ अजय देवगन की आवाज़ में इसका पूरा लेखा-जोखा बताया गया है और किस तरह से ७० साल पहले की गई इस ग़लती को सुधारा गया वह दृश्य भी बेजोड़ है.
आर्टिकल ३७० भले ही सच्ची घटना पर आधारित फिल्म रही है, लेकिन फिल्म की कथा-पटकथा, कलाकारों के अभिनय ने इसे उत्कृष्ट बना दिया है, जिसे देखने-समझने के लिए फिल्म ज़रूर देखनी होगी. शेष फिर…
- ऊषा गुप्ता
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