गुरु रंधावा जो पंजाबी गायक हैं ने नायक बनने की अच्छी कोशिश की ‘कुछ खट्टा हो जाए’ फिल्म से, पर सफलता के मामले में चूक गए. फिल्म का विषय तो बढ़िया था, पर पटकथा व निर्देशन कमाल की नहीं हो पाई. जबकि कहानी को चार लोगों ने मिलकर लिखा था और निर्देशन भी तेलुगु के लाजवाब निर्देशक जी. अशोक के थे. इन सब के बावजूद बात न बन पाई.
एक तरफ़ ऐसा भी लगता रहा कि अकेले अनुपम खेर के कंधे पर बंदूक रखकर गोली चलाई जा रही है यानी फिल्म की नैय्या पार की जा रही है. अनुपम खेर पूरी फिल्म पर छाए रहे. उनकी उपस्थिति कभी हंसाती, गुदगुदाती तो कभी भावविभोर भी कर देती है.
सई मांजरेकर ने अपनी पहली फिल्म ‘दंबग 3’ से हिंदी सिनेमा में पैर जमाने की कोशिश कर रही हैं. इसके लिए वे मेहनत भी ख़ूब कर रही हैं. फिल्म में गुरु के साथ उनकी जोड़ी ख़ूबसूरत लगती है. दोनों पर फिल्माए गए गाने भी लाजवाब बने हैं.
एक खानदानी मिठाईवाले अमीर परिवार के हीर चावला, गुरु रंधावा को इरा, सई मांजरेकर से प्यार हो जाता है. दोनों अच्छे दोस्त हैं. इरा आईएएस की पढ़ाई कर देश की सेवा कर अपने पिता का ख़्वाब पूरा करना चाहती है. लेकिन कहानी में तब मोड़ आता है, जब उसकी वजह से छोटी बहन की शादी मुश्किल में पड़ जाती है. वहीं गुरु के दादाजी अनुपम खेर चाहते हैं कि पोता शादी करके उन्हें पर दादा बनने का सुख दे.
हालात कुछ ऐसे बन जाते हैं कि हीर-इरा की शादी हो जाती है. परिवार की ख़ुशी के लिए कई ड्रामे किए जाते हैं, जिसमें नकली पैरेंट्स बनना भी है. क्या इरा अपने पिता का सपना पूरा कर पाती है? वो आईएएस क्लीयर कर पाती है? हीर दादाजी को पर पोते का सुख दे पाते हैं? इरा-हीर, दोनों की दोस्ती से शुरू हुई लव स्टोरी का अंत क्या होता है, यह सब जानने के लिए फिल्म देखनी होगी.
फिल्म में कई संवाद और कुछ सीन्स बढ़िया है. आज की पीढ़ी के लिए एक संदेश भी है. लेकिन फिल्म की कमज़ोर कड़ी इसका निर्देशन है. फिल्म देख यूं लग रहा था डायरेक्टर को इसे जैसे-तैसे जल्दी पूरी कर देने की हड़बड़ाहट सी थी, वरना भूमि पेडनेकर वाली दुर्गामती वाला कमाल यहां वे दिखा पाते.
कुछ खट्टा हो जाए का मीठा पहलू रहा सहयोगी कलाकारों के हास्य से परिपूर्ण चुटीले संवाद और बढ़िया अदाकारी, जिसमें इला अरुण, अतुल श्रीवास्तव, परेश गनात्रा, परितोष त्रिपाठी, ब्रह्मानंद बाजी मार ले जाते हैं. कई बार तो गंभीर सिचुएशन भी कॉमेडी से भरपूर हो जाती है. इसे ही कहेंगे आर्टिस्ट और डायरेक्टर का कमाल.
लेखक की चौकड़ी विजय पाल सिंह, राज सलूजा, शोभित सिन्हा व निकेत पांडे की धारदार लेखनी को प्रणाम, कहानी के बारे में इतना ही कह सकते हैं. अमित और लवीना भाटिया ने फिल्म बनाने का हौसला दिखाया, उन्हें भी हमारी शुभकामनाएं.
निर्देशक जी. अशोक जिन्होंने अनुष्का शेट्टी को लेकर ‘भागमति’ जैसी कामयाब फिल्म बनाई थी, जिसके रीमेक दुर्गामति में भूमि ने काम किया था. अशोकजी से काफ़ी उम्मीदें थीं, जिस पर वे खरे नहीं उतर पाए.
सई मांजरेकर ‘दबंग 3’ के अलावा ‘मेजर’ में भी अपने अभिनय का जलवा दिखा चुकी हैं, लेकिन सफलता अब तक उनके हाथ नहीं लगी. मंजे हुए अभिनेता महेश मांजरेकर की बेटी सई रेखाजी को अपना रोल मॉडल मानती हैं. ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि वे अपने अभिनय को और भी सशक्त बनाएं.
रही बात गुरु रंधावा की तो वे भी हिंदी मीडियम, ब्लैकमेल, टाइम टू डांस फिल्मों में गाने के ज़रिए बड़े पर्दे पर आ चुके हैं. यदि उन्हें बढ़िया अभिनेता बनना है, तो उन्हें अभिनय में बेहद मेहनत करने की ज़रूरत है.
टी-सीरीज़ के बैनर तले इसके गीत-संगीत मधुर हैं. परंपरा के संगीत में गुरु और सुचेता का गाया गाना अच्छा बन पड़ा है. साफ़-सुथरी, मनोरंजन से भरपूर कुछ खट्टा के उद्देश्य से फिल्म देखी जा सकती है.
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