रितिक रोशन की दीपिका पादुकोण और अनिल कपूर के साथ ‘फाइटर’ फिल्म की ख़ूब चर्चा हो रही है. अपने एक्शन, डांस और परफॉर्मेंस से रितिक ने हर किसी का दिल जीता है. आइए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ कही-अनकही बातें.
- ‘फाइटर’ फिल्म में दीपिका पादुकोण के साथ काम करने में बहुत मज़ा आया. एक अच्छा एक्सपीरिएंस रहा.
- अनिल कपूर जी की ‘खेल’ फिल्म में मैं असिस्टेंट डायरेक्टर था. आज उनके साथ ‘फाइटर’ में काम करते हुए एक चीज़ हमेशा मैंने बरक़रार देखी, काम के प्रति उनका जुनून और उनकी एनर्जी. वे लाजवाब कलाकार होने के साथ एक बेहतरीन इंसान भी हैं.
- आज मैं जहां भी हूं, अपनी असफलताओं के कारण ही हूं. मैंने काफ़ी लंबा सफ़र तय किया है, जिसमें कामयाबी और नाकामियां दोनों ही थीं. लेकिन करियर के इस मज़बूत मुक़ाम तक पहुंचने में मेरे फेलियर होने का भी बहुत बड़ा हाथ रहा.
लोग हमारी फिल्मों को अच्छा-बुरा जो भी कहते हैं, उसे गंभीरता से लेना चाहिए. इससे हमें ख़ुद को इम्प्रूव करने के साथ फिल्मों को और बेहतर बनाने में मदद मिलती है.
प मैं किसी भी फिल्म को सिलेक्ट करते समय कहानी में मनोरंजन पर अधिक ध्यान देता हूं. मेरे पापा का कहना है कि यदि आपको समाज को कोई संदेश देना है, तो डॉक्यूमेंट्री बनाएं, पर फिल्में तो एंटरटेंमेंट से भरपूर होनी चाहिए.
समय का महत्व मैंने अपने पिता से सीखा है. वे वक़्त के काफ़ी पाबंद हैं और उन्होंने ही मुझे टाइम मैनेजमेंट के बारे में समझाया भी.
- अपने हकलाने को लेकर एक घटना आज भी मुझे परेशान कर देती है. मेरी पहली फिल्म ‘कहो ना प्यार है’ के लिए दुबई में मुझे अवॉर्ड मिलनेवाला था और मुझे स्टेज पर आई लव यू दुबई… कहना था. मैं अपने होटल के कमरे, बाथरूम में इसे धाराप्रवाह बोलने की प्रैक्टिस करता रहा, पर आवाज़ रूम से बाहर जाने पर परेशानी हो रही थी. उस कमरे में एक बड़ा कबर्ड था और मैंने ख़ुद को अंदर बंद करके दुबई कहने की ख़ूब प्रैक्टिस की और अंत में पूरे फ्लो के साथ आई लव यू दुबई… कह पाया.
- स्पीच थेरेपिस्ट की सलाह पर मैं बुक, मैगजीन, नॉवेल हरेक के शब्दों को ज़ोर-ज़ोर से पढ़ता था.
यदि आप बात करते समय अटकते या फिर हकलाते हैं, तो स्पीच थेरेपी ज़रूर लें. ख़ुद पर विश्वास रखें. आपकी दृढ़ता और इच्छाशक्ति से एक फाइटर की तरह आप इस प्रॉब्लम से निकल सकते हैं.
किसी रीमेक पर मेरी कोई फिल्म बनती है, तो यह सोचकर कि उस कलाकार ने ऐसा किया था, तो मुझे भी ऐसा करना चाहिए, मैं कभी भी यह सब सोचकर एक्टिंग नहीं करता. मैं तो बस ख़ुद को क़िरदार में अपने अनुसार ढालने की कोशिश करता हूं.
- इतने बरसों बाद पीछे मुड़कर देखता हूं, तो ख़ुद को लकी मानता हूं कि सभी का इतना प्यार मिला. अपनी पुरानी फिल्मों के अभिनय को देख थोड़ी निराशा भी होती है कि मैं और भी बेहतर कर सकता था.
- फ़ुर्सत के पल में मैं एक्सरसाइज़ और डांस करना अधिक पसंद करता हूं.
- ऊषा गुप्ता
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