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कहानी- परफेक्ट बॉय (Short Story- Perfect Boy)

"हे राम, ऐसा होता है कभी… वर्षों से लड़कों की नौकरी बस देखी जाती है. यह सब काम तो लड़कियों को ही शोभा देते हैं." वृन्दाजी ने मुंह बनाते हुए कहा, तो पूजा फिर से बोली, "वृन्दा दादी! जब हम लड़कियां घर-बाहर दोनों संभाल लेती हैं, तो लड़के क्यों नहीं? आदर्श बेटी, आदर्श बहू जैसे संबोधन हमारे लिए ही क्यों? और मैं क्या मेरी जनरेशन की हर लड़की को ऐसा ही परफेक्ट लड़का चाहिए."

दीया आजकल अपने बेटे नकुल को घर के छोटे-मोटे रोज़मर्रा के काम-काज सीखा रही थी. वह कभी उससे कपड़े तह कराती, तो कभी फल-सब्ज़ियों को धोने में उसकी मदद लेती, कभी उसे हल्का-फुल्का खाना बनाना सिखाती, तो कभी खाना परोसना. दीया की ये सारी बातें उसकी सासू मां वृन्दाजी के गले न उतरतीं.
आख़िरकार एक दिन सुबह का अख़बार खोलते हुए वे अपने सब्र का बांध तोड़ती हुई बोलीं, "बहू तुम! नकुल को इन कामों में क्यों लगाए रखती हो? वो कोई लड़की थोड़ा है, जो तुम उसे यह घर-गृहस्थी के काम सीखा रही हो."
दीया उनकी बात पर मुस्कुराकर बोली, "हां मांजी! माना कि नकुल लड़की नहीं लड़का है पर इन दिनों स्कूल की छुट्टियों में वह दिनभर यहां से वहां धमाचौकड़ी मचाता फिरता है. ऐसे में ज़रा सा मेरे कामों में हाथ बांट लेगा, तो उसके लिए अच्छा ही रहेगा और मुझे भी कुछ मदद मिल जाएगी."

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दीया की ये बातें वृन्दाजी को ज़रा भी रास न आईं. 'छुट्टी है तो क्या? वह खेले-कूदे, मौज-मस्ती करे,‌ यही तो लड़के छुट्टियों में करते हैं, ज़बरदस्ती में बहू उसे लड़की बनाने पर तुली है.' यही सोचती हुए वे नाक-मुंह सिकोड़ते हुए अख़बार पढ़ने में तल्लीन हो गईं.
 तभी पड़ोसवाली राधा काकी हैरान-परेशान सी बड़बड़ाती हुई वृन्दाजी के पास आईं.
"आजकल की लड़कियों के नखरे तो देखो!" वे कहती हुईं वृन्दाजी के बगल में पड़ी कुर्सी पर बैठीं, तो वृन्दाजी ने अख़बार से ध्यान हटाते हुए उनके ग़ुस्से का कारण पूछा, "क्या हुआ, क्यों ग़ुस्से में तमतमा रही हो राधा?"
"अरे, मैं तो  शुरू से कह रही हूं कि लड़की जात को इतना पढ़ना-लिखना ठीक नहीं है, पर मेरी सुनता ही कौन है! अब हमारी पूजा को देखो ज़्यादा पढ़-लिखकर ऐसा दिमाग़ खराब हो गया उसका कि शादी के लिए दस लड़के रिजेक्ट कर चुकी है. वह कहती है कि उसे परफ़ेक्ट बॉय चाहिए."
 परफ़ेक्ट बॉय! सुनते ही वृन्दाजी ने अख़बार की तह बनाते हुए उसे साइट में रखते हुए कहा, "परफेक्ट बॉय! मतलब?" यहां राधा काकी कुछ बोलतीं कि पीछे से उनकी नातिन पूजा आ गई, "मैं बताती हूं वृन्दा दादी आपको की कि क्या होता है परफेक्ट बॉय." उसने हाथ में पकड़े सेब को खाते हुए बेबाक़ी से कहा.
"देखो! जैसे हम लड़कियों को परफेक्ट लड़की बनने के लिए खाना बनाना, कपड़े धोना, घर सैट करना, लोगों की परवाह करना और अपनी योग्यता अनुसार अपना करियर बनाना भी आना चाहिए, तो वैसे ही लड़कों को भी यह सब आना चाहिए और जिन लड़कों को यह सब आता हो वही कहलाते हैं परफेक्ट बॉय!"
"हे राम, ऐसा होता है कभी… वर्षों से लड़कों की नौकरी बस देखी जाती है. यह सब काम तो लड़कियों को ही शोभा देते हैं." वृन्दाजी ने मुंह बनाते हुए कहा, तो पूजा फिर से बोली, "वृन्दा दादी! जब हम लड़कियां घर-बाहर दोनों संभाल लेती हैं, तो लड़के क्यों नहीं? आदर्श बेटी, आदर्श बहू जैसे संबोधन हमारे लिए ही क्यों? और मैं क्या मेरी जनरेशन की हर लड़की को ऐसा ही परफेक्ट लड़का चाहिए."

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बेफ़िक्री से अपनी बात कहती हुई पूजा वापस चली ग और उसके पीछे-पीछे उसे समझाती हुई राधा काकी भी. यहां वृन्दाजी नकुल को देखकर बोलीं, "बहू, इसकी ट्रेनिंग ज़ारी रखो, नहीं तो कहीं यह जीवनभर कुंवारा न रह जाए." और मुस्कुराती हुई दीया अपने बेटे नकुल को राई-जीरे के बीच का फ़र्क़ समझाने लगी, जो राई और जीरा दोनों को एक साथ एक ही डिब्बे में डाल रहा था.

   

writer poorti vaibhav khare
पूर्ति वैभव खरे

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Photo Courtesy: Freepik

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