कपल्स ख़ुद की आइडेंटिटी को ज़्यादा महत्व देने लगे हैं. रिश्ता टूटने के लिए कोई एक ज़िम्मेदार नहीं होता, ताली दोनों हाथों से बजती है. हो सकता है, एक 70 फ़ीसदी ज़िम्मेदार हो तो दूसरा 30 फ़ीसदी ही हो, लेकिन ग़लती दोनों की होती है.समाज व परिवार का सीमित दायरा डॉ. आनंद कहते हैं, “आजकल किसी भी कपल की ज़िंदगी में समाज और परिवार का रोल सीमित हो गया है, जिससे उनके बीच की छोटी-मोटी अनबन या झगड़ों को सुलझाने वाला कोई नहीं रहता. मनमुटाव की स्थिति में कपल्स अपना धैर्य खो देते हैं और तुरंत अलग होने का ़फैसला कर लेते हैं. आजकल के युवा बेस्ट पार्टनर चाहते हैं, जो हर चीज़ में परफेक्ट हो, लेकिन वो पार्टनर की मदद कर उसे किसी काम में परफेक्ट बनाने की ज़हमत नहीं उठाते. रिश्ते टूटने की एक बड़ी वजह धैर्य की कमी है, जिससे कुछ समय बाद कपल्स का एक-दूसरे के प्रति प्यार व आकर्षण कम हो जाता है, यही वजह है कि लव मैरिज करने वाले भी आसानी से तलाक़ ले रहे हैं.” प्यार व विश्वास में कमी आई लव यू बोल देना ही इस बात का सबूत नहीं कि पति-पत्नी के प्यार की डोर मज़बूत है. महानगरों में जहां वर्किंग कपल्स की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, उनके बीच प्यार व विश्वास उतना ही कम होता जा रहा है. घर लेट से आने या फोन न उठाने पर पति-पत्नी दोनों को ही लगने लगता है कि पार्टनर का किसी और से संबंध है इसलिए वो उन्हें नज़रअंदाज़ कर रहा है. फिर शक़ का यही बीज उनके रिश्तों को खोखला कर देता है. कई कपल्स तो अपने साथी की हर हरकत पर नज़र रखने के लिए उनके पीछे जासूस लगाने से भी नहीं हिचकिचाते. विश्वास ही शादी की बुनियाद है, अगर बुनियाद ही कमज़ोर हो जाए, तो शादी टिक पाना मुश्किल हो जाता है.- मीता दोषी, साइकोलॉजिस्ट
पहले जहां पति-पत्नी का रोल तय होता था, वहीं अब महिलाओं की भूमिका बदल रही है. उन्हें पहले से ज़्यादा अधिकार प्राप्त हैं और ये बात पुरुषों को हज़म नहीं हो रही. इसके अलावा आर्थिक, भावनात्मक और शारीरिक (सेक्सुअल) पहलू भी रिश्ता टूटने के लिए ज़िम्मेदार है. कपल्स को ढेर सारी उम्मीदें रखने की बजाय एक-दूसरे के अलग व्यक्तित्व को स्वीकारना चाहिए. शादी निभाने के लिए भव्य शादी समारोह की नहीं, बल्कि समझदारी की ज़रूरत है.बहुत ज़्यादा अपेक्षाएं डॉ. माधुरी सिंह के मुताबिक, “महिलाएं शादी निभाने की कोशिश करती हैं. कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो वर्किंग वुमन के प्रति नज़रिए में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है. आज भी पुरुष ऐसी बीवी चाहते हैं, जो अच्छी दिखती हो, अच्छा कमाती हो और जो उनके घर-परिवार को भी अच्छी तरह संभाल सके, यानी पत्नी उनकी हर कसौटी पर खरी उतरे, जो संभव नहीं है.” आजकल पुरुषों को ही नहीं, बल्कि महिलाओं को भी अपने साथी से बहुत-सी उम्मीदें रहती हैं, जैसे- पति अच्छा दिखे, अच्छा कमाए, उसकी हर बात सुने, उसके माता-पिता का ज़्यादा ध्यान रखे आदि. साइकोलॉजिस्ट दोषी कहती हैं, “आजकल कपल्स की शादी से अपेक्षाएं बहुत बढ़ गई हैं. एक-दूसरे से की गई ये अपेक्षाएं जब पूरी नहीं होतीं तो पति-पत्नी के रिश्ते में दूरियां आने लगती हैं और धीरे-धीरे ये दूरियां इस क़दर बढ़ जाती हैं कि उनके रास्ते ही अलग हो जाते हैं.” दोनों ज़िम्मेदार तलाक़ के लिए हर बार पति ही ज़िम्मेदार हो, ये ज़रूरी नहीं. 3 साल पहले लव मैरिज करने वाले मुंबई के दिनेश इन दिनों अकेले हैं. दिनेश कहते हैं, “मैं अपने माता-पिता का इकलौता बेटा हूं. शादी के बाद मेरी पत्नी को बेवजह न जाने क्यों मेरे पैरेंट्स से परेशानी होने लगी. वो चाहती थी कि मैं अपने मां-बाप को छोड़कर उसके साथ दूसरे फ्लैट में रहूं, जो संभव नहीं था. मैं अपने बूढ़े माता-पिता को अकेला नहीं छोड़ सकता, ये कहने पर वो मुझे ही छोड़कर चली गई और तलाक़ का नोटिस भेज दिया.” तलाक क़ानून हमारे देश में तलाक़ लेना आसान नहीं है. इसके लिए लंबी क़ानूनी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है, जिसमें सालों लग जाते हैं. हालांकि पिछले साल कैबिनेट ने हिंदू मैरिज एक्ट में कुछ संशोधन करके इसे आसान बनाने की कोशिश की है यानी अब पति-पत्नी यदि स्वेच्छा से अलग होना चाहें, तो ऐसे मामलों को अधिक समय तक लंबित नहीं रखा जाएगा. अदालत को ऐसे मामलों को जल्द से जल्द निपटाना होगा. पहले तलाक़ की अर्ज़ी देने के बाद पति-पत्नी को सुलह के लिए 6 महीने की समय सीमा दी जाती थी, लेकिन अब ये बाध्यता ख़त्म हो चुकी है. फिर भी अदालत को सही लगे, तो वो कपल्स को सुलह के लिए कुछ व़क्त दे सकती है.- चित्रा सावंत, मीडिया प्रोफेशनल
- कंचन सिंह
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